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मुंबई कांग्रेस के मुखपत्र “कांग्रेस दर्शन” में छपे लेख से बवाल। पटेल थे नेहरू से बेहतर, सोनिया के पिता थे फासीवादी

देश की राजनीति में आज एकाएक उबाल आ गया। आखिर क्यों न आये, निशाने पर हैं कांग्रेस के भीष्मपितामह जवाहर लाल नेहरू और वर्त्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। दरअसल कांग्रेस के मुंबई यूनिट के मुखपत्र “कांग्रेस दर्शन” में छपे एक लेख को लेकर आज कांग्रेस की खासी किरकिरी हुई और भाजपा इस पर जोरदार चुटकी लेने से नहीं चुकी।

Patel Nehru Controversy in congres mouthpiece Mumbaiकांग्रेस की मुंबई यूनिट के माउथपीस ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे इस लेख में जहाँ सरदार वल्लभभाई पटेल की जमकर तारीफ की गई है वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू की देश को लेकर राजनीतिक और विदेश नीति ऊँगली उठाई गयी है। इतना ही नहीं, वर्त्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तो जबरदस्त हमला करते हुए उनके पिता को फासीवादी घोषित कर दिया गया है। जाहिर है जहाँ कांग्रेस इस लेख को लेकर डिफेंसिव हो गई वहीँ भाजपा ने आक्रामक रूख अपनाते हुए कांग्रेस, नेहरू और सोनिया गांधी पर हमला तेज कर दिया। नतीजा ये हुआ कि आज की राजनीतिक छँटाकशी के बाद कांग्रेस ने मुखपत्र के संपादक सुधीर जोशी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

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सोनिया के पिता को बताया फासीवादी, सोनिया की तारीफ़ में पढ़े कसीदे:

– ‘कांग्रेस दर्शन’ में इस विवादित लेख पार्टी अध्यक्ष को ‘कांग्रेस की कुशल सारथी सोनिया गांधी’ बताया गया है।
– इसमें कहा गया है- आर्टिकल 1997 में कांग्रेस मेंबर बनने के 62 दिन बाद ही वे पार्टी प्रेसिडेंट बन गईं। उन्होंने सरकार बनाने की नाकाम कोशिश की।
– उनके पिता इटली में फासीवादी ताकतों से जुड़े थे।

लेख में हुई है पंडित जवाहर लाल ने की जबरदस्त आलोचना

– ‘कांग्रेस दर्शन’ में नेहरू पर उनके कश्मीर, चीन और तिब्बत पर लिए गए फैसलों पर सवाल उठाया गया है।
– इस लेख के अनुसार नेहरू को फ्रीडम फाइटर और पहले होम मिनिस्टर सरदार वल्लभभाई पटेल की बात सुननी चाहिए थी। अगर नेहरू ने पटेल की सलाह पर चल कर फैसले लिए होते तो इंटरनेशनल मामलों, विशेषकर सीमविवादों पर आज इतनी दिक्कत नहीं आती।
– बता दें कि कांग्रेस इससे पहले इन दोनों नेताओं के बीच आपसी विवाद को लेकर खुलकर कुछ नहीं कहती थी।
– इस एडिशन को मुंबई कांग्रेस के माउथपीस में पटेल की पुण्यतिथि पर 15 दिसंबर को खास तौर पर निकाला गया है।

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लेख के छापने के बाद मच गयी राजनीतिक खलबली

1. ‘कांग्रेस दर्शन’ के पब्लिकेशन को मुंबई कांग्रेस के प्रेसिडेंट संजय निरुपम देखते हैं। आर्टिकल सामने आने के बाद उन्होंने तुरंत जांच के आदेश दिए। कहा- ‘‘गलती को सुधारेंगे। संपादकीय प्रभार की ओर से चूक हुई है।”
2. महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ नेताओं ने आरोप लगाया कि निरुपम ने पार्टी को शर्मसार किया है। इस घटना के लिए वे ही पूरी तरह जिम्मेदार हैं।
3. पार्टी को शर्मिंदगी होने के बाद ‘कांग्रेस दर्शन’ एडिटोरियल बोर्ड के मेंबर भूषण पाटिल ने कहा, ‘माउथपीस के कंटेंट एडिटर सुधीर जोशी को हमने बर्खास्त कर दिया है।’
4. निरुपम ने कहा, ‘हम सम्पादकीय मंडल में बदलाव करेंगे। मैं खुद मैगजीन के कंटेंट पर नजर रखूंगा।’

कुछ दिन पहले ही नियुक्त हुआ था नया संपादक मंडल

– ‘कांग्रेस दर्शन’ का एडिटोरियल बोर्ड हाल ही में बदला गया था।
– इस मुखपत्र की 200 कॉपियां छापी गई थीं। यह पार्टी के इंटरनल सर्कुलेशन के लिए थीं।
– मुखपत्र हिंदी, अंग्रेजी और मराठी में छपता है।

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इस मुखपत्र में छपे लेख में कश्मीर और नेहरू पर हुई क्या टिप्पणी ?

– मुंबई रीजनल कांग्रेस कमिटी (एमआरसीसी) ने पार्टी लाइन के खिलाफ किए कमेंट में नेहरू को कश्मीर विवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

यह भी पढ़िए – गांधी ने सरदार पटेल के बजाय क्यों चुना नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री ?

आर्टिकल में नेहरू-पटेल विवाद को लेकर क्या लिखा गया है?

– ”13 नवंबर को सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो कि पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना।”
– ”जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है, इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था। परंतु सत्य यह है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ ले जाने पर बेहद नाराज थे।”
– ”विदेश विभाग पं. नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग की समिति में सरदार पटेल दखल होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो आज भारत जिन समस्याओं से जूझ रहा है ऐसी अनेकों समस्याओं से छुटकारा मिल गया होता। ‘
– ”1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में सरदार पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्र और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था।”

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भाजपा ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि पिछले साठ से ज्यादा वर्षों से देश जो मानता आ रहा है कांग्रेस ने वही कह कर अपनी भूल सुधार कर ली है।  

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