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प्रेरणाप्रद कहानी – नटनी का चबूतरा

बहुत समय पहले की बात है। मेवाड़ में एक राणा राज्य करता था। वह बहुत ही दयालु और परोपकारी था। उसे खेल तमाषे देखने का बड़ा शौक था। उसके दरबार में दूर दूर के बाजीगर आकर तमाशा दिखाते थे।

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एक दिन मेवाड़ में एक नट परिवार आया। उस परिवार में एक मुखिया, उसकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी थी। बेटी का नाम गलकी था। गलकी बहुत ही सुंदर थी। उसके अंगों में इतनी लचक थी कि, वह उन्हें जैसा चाहती, तोड़ मरोड़ सकती थी।

गलकी चमड़े की बनी रस्सी पर इतना आकर्षक नृत्य करती थी, जितना दूसरी नटनियां जमीन पर भी न कर सकतीं। उसके नृत्य को देखकर बड़े बड़े लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे। कुछ ही दिनों में उसकी चर्चा सारे शहर में होने लगी।

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फिर तो गलकी के खेल तमाषे बड़े बड़े ठाकुरों और सामंतों की हवेलियों व डेरों में होने लगे।

एक दिन राणा का दरबार लगा हुआ था। खेल तमाशों की चर्चा चली तो चूड़ावत सरदार ने कहा, ”महाराज, आजकल हमारे शहर में एक चमत्कारी नटनी आई हुई है। वह रस्सी पर इतना अद्भूत नाच करती है कि लोग देखते ही रह जाते हैं।“

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राणा ने झट से पूछ लिया, ”कौन है वह?“

इस पर दूसरे दरबारी ने कहा, ”महाराज, वह एक नटनी है, नाच की तो वह महारानी है।“

राणा ने तुरंत हुक्म दिया कि उसे बुलाया जाए। महाराणा का हुक्म पाते ही कुछ सेवक उस नट परिवार को बुला लाए।

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गलकी को राणा के सामने हाजिर किया गया।

राणा ने उसे गौर से देखा और कहा, ”ऐ नटनी, तेरा तो बदन ही इतना नाजुक सा है, तू भला क्या नाच दिखाएगी?“

नटनी अपने फन में माहिर थी, राणा का इस तरह बोलना उसे अपमानजनक लगा। उसके खून में तो जोश था ही, वह लापरवाह और निडर भी थी। तपाक से बात बोल गई, ”माई बाप! आप हमारे अन्नदाता हैं, आपके पांवों की हम धूल चाटते हैं। लेकिन छोटे मुंह आज मैं बड़ी बात कह रही हूं। आपने अभी तक बंद महलों में ही नाच देखे हैं, खुले आकाश के नीचे जब हमारा नाच देखेंगे, तब असलियत जानेंगे।“

राणा को उस गरीब नटनी की बात लग गई। वह कड़ककर बोले, ”ऐसा तू कौन सा नाच दिखाएगी नटनी?“

नटनी ने बेधड़क होकर जवाब दिया, ”आपकी किसी झील पर एक रस्सी बंधेगी और उस पर तलवार लेकर नाचूंगी।“

सुनकर राणा भौंचक्के रह गए। बोले, ”हमें विश्वास नहीं होता।“

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गलकी महान कलाकार थी, वह गर्व से बोली, ”आप हुक्म तो दीजिए, फिर अपनी आंखों से देखिएगा।“

उसका साहस देखकर राणा ने चुनौती दी, ”यदि तूने पिछौला झील को रस्से पर नाचते हुए पार कर लिया तो हम तुम्हें मेवाड़ का आधा राज्य दे देंगे।“

इस घोषणा के साथ ही सारे सामंतों व उमरावों की आंखें फट गईं, सब सोचने लगे कि राणा जी ने यह क्या घोषणा कर दी।

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गलकी ने साहस के साथ दृढ़ स्वर में कहा, ”अन्नदाता, मुझे आपकी शर्त मंजूर है। एक ओर गलकी की जान और दूसरी ओर आपका आधा राज्य! माई बाप, आज इसमें से एक जाएगा।“

देखते देखते पिछौला झील पर रस्सा बंध गया।

राणाजी के लिए तंबू ताना गया। उसमें एक ऊंचे स्थान पर उनका सिंहासन रखा गया। उसके आस पास सामंत, ठाकुर और उमराव विराजमान थे।

नटों ने ढोल बजाने शुरू कर दिए। इस नाच की चर्चा जंगल की आग की तरह सारे शहर में फैल गई। भीड़ इकट्ठी होने लगी, ढोल और जोर से बजने लगे। गलकी को पहनने के लिए नई पोशाक दी गई, लाल साटन का घाघरा और केसरिया चोली, कनार के फूलों से जड़ा ओढ़ना, वह अप्सरा सी दिख रही थी।

गलकी बांस पर चढ़ने लगी। उसके मुंह में तलवार थी, जो धूप में चमक रही थी। उसकी चमक से गलकी का चेहरा दपदपा रहा था। थोड़ी ही देर में गलकी रस्से के पास पहुंच गई। उसने हाथ में तलवार लेकर नचाई। फिर सिर नवाकर हनुमान बाबा को नमस्कार किया।

मुंह में तलवार और पांवों में बिजली सी थिरकन लिए गलकी ने पहला पांव जैसे ही रस्से पर रखा, वैसे ही उपस्थित लोगों ने तालियां बजाई।

राणा ने अपने दीवान से कहा कि बेचारी बातों ही बातों में हठ कर बैठी, इसकी मौत का हमें दुख होगा।

झील पानी से भरी हुई थी, रस्से पर लहराती गलकी और नीचे लहराता हुआ अथाह जल। गलकी नाच नाचकर आगे बढ़ने लगी। लग रहा था, जैसे वह कोई जादूगरनी हो, जब वह मुंह से तलवार पकड़ कर रस्सी पर पलटा खाती तो लोगों के मुंह से चीख निकल जाती और एक वाक्य हवा में तैरत ‘गिरी अब गिरी’।

गलकी ने आधा रस्सा पार कर लिया। अब सामंतों, ठाकुरों और उमरावों का माथा ठनका। उन्होंने सोचा कि यदि इस नटनी ने बाजी जीत ली, तो आधे मेवाड़ की महारानी बन जाएगी। हम सब ऊंचे कुल के लोग ताबेदार होंगे। फिर बड़े लोगों में इशारे होने लगे।

दीवान ने राणा के नजदीक आकर कहा, ”अन्नदाता, लगता है कि इस नटनी को कोई सिद्धि मिली हुई है, यह तो रस्सा पार कर लेगी और हम बाजी हार जाएंगे।“

”तो क्या हुआ?“ राणा ने लापरवाही से कहा, ”हम इसे आधा राज्य दे देंगे, नटनी तो कमाल कर रही है।“

दीवान ने चूड़ावत सरदार से कहा, चूड़ावत ने शक्तावत सरदार से कहा। उन्हें पूरा यकीन हो गया कि अब हमें इस तुच्छ नटनी के अधीन रहना पड़ेगा। उसके दरबार में सिर झुकाना पड़ेगा। भला बड़े लोग इसे सहन कैसे करते? तुरंत ही गुपचुप बातें हुई। बड़े लोग गए और उन्होंने रस्से को काट डाला। गलकी चीख पड़ी। उसकी करूण चीख से लोग कांप उठे।

गलकी छपाक से पानी में गिर पड़ी। उसके परिवार वाले तूफानी वेग से झपटे, लेकिन वे गलकी के प्राण न बचा सके।

गलकी की लाश देखकर राणा की आंखें भर आईं पर वे भी सामंतों के विद्रोह के भय से न्याय नहीं कर सके।

गलकी के बाप ने रोते रोते कहा, ”अन्नदाता, मुझे न्याय मिलना चाहिए, मेरी बेटी की हत्या की गई है।“

राणा कुछ बोलते, इससे पहले ही सामंतों ने उसको घेर लिया और नटों के मुखिया को धन की एक थैली देकर मामला रफा दफा कर दिया।

गरीब असहाय नट परिवार भला क्या करता? रोता बिलखता चला गया।

आज भी उदयपुर की झील में नटनी की याद में एक चबूतरा बना हुआ है। एक असाधारण नटनी का साधारण चबूतरा।

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