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अपठित गद्यांश – सभ्यता का विकास आदर्श चरित्र से ही संभव है

Apathit Gadyansh with Answers in Hindi unseen passage 

भारतीय धर्मनीति के प्रणेता नैतिक मूल्यों के प्रति अधिक जागरूक थे। उनकी यह धारणा थी कि नैतिक मूल्यों का दृढ़ता से पालन किए बिना किसी भी समाज की आर्थिक व सामाजिक प्रगति की नीतियाँ प्रभावी नहीं हो सकतीं। उन्होंने उच्चकोटि की जीवन-प्रणाली के निर्माण के लिए वेद की एक ऋचा के आधार पर कहा कि उत्कृष्ट जीवन-प्रणाली मनुष्य की विवेक-बुद्ध से तभी निर्मित होनी संभव है, जब सब लोगों के संकल्प, निश्चय, अभिप्राय समान हों, सबके हृदय में समानता की भव्य भावना जाग्रत हो और सब लोग पारस्परिक सहयोग से मनोनुकूलकार्य करें। चरित्र-निर्माण की जो दिशा नीतिकारों ने निर्धारित की, वह आज भी अपने मूल रूप में मानव के लिए कल्याणकारी है। प्रायः यह देखा जाता है कि चरित्र और नैतिक मूल्यों की उपेक्षा वाणी, बाहु और उदर को संबत न रखने के कारण होती है। जो व्यक्ति इन तीनों पर नियंत्रण रखने में सफल हो जाता है, उसका चरित्र ऊँचा होता है।
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सभ्यता का विकास आदर्श चरित्र से ही संभव है। जिस समाज में चरित्रवान व्यक्तियों का बाहुल्य है, वह समाज सभ्य होता है और वही उन्नत कहा जाता है। चरित्र मानव-समुदाय की अमूल्य निधि है। इसके अभाव में व्यक्ति पशुवत व्यवहार करने लगता है। आहार, निद्रा, भय आदि की वृत्ति सभी जीवों में विद्यमान रहती है. यह आचार अर्थात चरित्र की ही विशेषता है, जो मनुष्य को पशु से अलग कर, उससे ऊँचा उठा मनुष्यत्व प्रदान करती है। सामाजिक अनुशासन बनाए रखने के लिए भी चरित्र-निर्माण की आवश्यकता है। सामाजिक अनुशासन की भावना व्यक्ति में तभी जाग्रत होती है, जब वह मानव प्राणियों में ही नहीं वरन सभी जीवधारियों में अपनी आत्मा के दर्शन करता है।

उपर्युक्त अपठित गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

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प्रश्न-
(क) हमारे धर्मनीतिकार नैतिक मूल्यों के प्रति विशेष जागरूक क्यों थे?
(ख) चरित्र मानव-जीवन की अमूल्य निधि कैसे है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) धर्मनीतिकारों ने उच्चकोटि की जीवन प्रणाली के संबंध में क्या कहा?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में किन पर नियंत्रण रखने की बात कही गई है और क्यों?
(ड) कैसा समाज सभ्य और उन्नत कहा जाता है?
(च) सामाजिक अनुशासन की भावना व्यक्ति में कब जाग्रत होती है?
(छ) उत्कृष्ट और प्रगति शब्दों के विलोम तथा बाहु और वाणी’ शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
(ज) प्रस्तुत गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

उत्तर-
(क) हमारे धर्मनीतिकार नैतिक मूल्यों के प्रति विशेष जागरूक थे। इसका कारण यह था कि नैतिक मूल्यों का पालन किए बिना किसी भी समाज की आर्थिक व सामाजिक प्रगति की नीतियाँ प्रभावी नहीं हो सकी।
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(ख) चरित्र मानव जीवन की अमूल्य निधि है, क्योंकि इसके द्वारा ही मनुष्य व पशु में अंतर होता है। चरित्र सामाजिक अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

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(ग) धर्मनीतिकारों ने उच्चकोटि की जीवन-प्रणाली के संबंध में यह कहा कि परिष्कृत जीवन-प्रणाली मनुष्य के विवेक-बुद्ध से ही निर्मित हो सकती है। हालाँकि यह तभी संभव है, जब संपूर्ण मानव जाति के संकल्प और उद्देश्य समान हों। सबके अंतर्मन में भव्य भावना जाग्रत हो और सभी लोग पारस्परिक सहयोग से मनोनुकूल कार्य करें।

(घ) इस गद्यांश में वाणी, बाहु तथा उदर पर नियंत्रण रखने की बात कही गई है, क्योंकि इन पर नियंत्रण न होने से चारित्रिक व नैतिक पतन हो जाता है।

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(ड) यह सर्वमान्य तथ्य है कि सभ्यता का विकास आदर्श चरित्र से ही संभव है। आदर्श चरित्र के अभाव में सभ्यता का विकास असंभव है। अत: जिस समाज में चरित्रवान लोगों की बहुलता होती है, उसी समाज को सभ्य और उन्नत कहा जाता है।

(च) व्यापकता ही जागरण का प्रतीक है। अत. किसी व्यक्ति में अनुशासन की भावना का जाग्रत होना तभी संभव हो पाता है, जब वह व्यापक स्वरूप ग्रहण करता है, यानी समस्त जीवधारियों में अपनी आत्मा के दर्शन करता है।

(छ) विलोम शब्द- उत्कृष्ट – निकृष्ट प्रगति – अवगति
पर्यायवाची शब्द- बाहु-भुजा वाणी – वचन

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(ज) अपठित गद्यांश का शीर्षक-चरित्र निर्माण।

अपठित गद्यांश के 50 उदाहरण

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One thought on “अपठित गद्यांश – सभ्यता का विकास आदर्श चरित्र से ही संभव है

  1. Yatra Shiksha ka sadhan hai Shiksha ka uddeshy Charitra Nirman karna hai jab ham Yatra karte Hain to hamen chijen sambhalne bati hai apna ticket rakhna padta hai aur theek main per gadi pakdi bati hai dhani vyakti Apne naukari se yah sab kam karva lete Hain lekin Bharat garibon ka Desh hai Yatra mein hamen apni madad aap karni padati hai aur तरह-तरह ke logon se baat karne se hamen bahut Teri nai chijen sikhate hain prachin Bharat mein tirth Yatra ko bada mahatva Diya jata hai is Desh mein Brahman bada Anand purvak ho sakta hai

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