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NCERT Solutions Class 12 Silver Wedding Manohar Shyam Joshi Chapter 1 Hindi Vitan

Silver Wedding Manohar Shyam Joshi (सिल्वर वेडिंग मनोहर श्याम जोशी) NCERT Solutions Class 12

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

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प्रश्न 1:यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ऐसा क्यों?

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अथवा 

‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर बताइए कि यशोधर बाबू समय के अनुसार क्यों नहीं ढल सके?
उत्तरयशोधर बाबू की पत्नी समय को अच्छी तरह पहचानती हैं। वह जानती है कि बच्चों की सहानुभूति तभी प्राप्त की जा सकेगी जब बच्चों की सोच के अनुसार चला जाए। व्यवहार भी यही कहता है। दूसरे उसके व्यक्तित्व के विकास पर किसी व्यक्तिविशेष या वाद का प्रभाव नहीं है। तीसरे, संयुक्त परिवार के साथ उसका अनुभव सुखद नहीं रहा। उसकी इच्छाएँ अतृप्त रही। उसके अनुसार, “मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी।” अब वह बेटी के कहने के हिसाब से कपड़े पहनती है। वह बेटों के मामले में भी दखल नहीं देती।

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दूसरी तरफ, यशोधर बाबू स्वयं को बदल नहीं पाते। वे सदैव किसी-न-किसी उलझन के शिकार हैं। वे सिद्धांतवादी हैं। इस कारण वे परिवार के सदस्यों से तालमेल नहीं बिठा पाते। उन पर किशनदा का प्रभाव है जो परंपरा को ढोते हुए अंत में फटेहाल मरे। वे संयुक्त परिवार, भारतीय परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं, परंतु परिवार उन्हें निरर्थक मानता है। यशोधर बाबू पार्टीबाजी, फैशन, अच्छे मकान में रहना आदि को पसंद नहीं करते। वे आधुनिक भौतिक वस्तुओं को बंधन मानते हैं। फलतः वे अलग-थलग हो जाते हैं। अंत में, उन्हें परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है।

प्रश्न 2: पाठ में ‘जो हुआ होगा ‘ वाक्य की आप कितनी अर्थ छवियाँ खोज सकते/सकती हैं?

अथवा 

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‘जो हुआ होगा ‘ की दो अर्थ छवियाँ लिखिए।
उत्तरपाठ में ‘जो हुआ होगा।’ वाक्य पहली बार तब आता है जब यशोधर किशन दा के किसी जाति-भाई से उनकी मौत का कारण पूछते हैं तो उत्तर मिलता है-जो हुआ होगा अर्थात पता नहीं, क्या हुआ। इसका अर्थ यह है कि किशन दा की मृत्यु का कारण जानने की इच्छा भी किसी में नहीं थी। इससे उनकी हीन दशा का पता चलता है। दूसरा अर्थ किशन दा ही उपयोग करते हैं। वे इसे अपनों से मिली उपेक्षा के लिए करते हैं। वे कहते हैं-“भाऊ सभी जन इसी ‘जो हुआ होगा’ से मरते हैं-गृहस्थ हों, ब्रहमचारी हों, अमीर हों, गरीब हों, मरते ‘जो हुआ होगा।’ से ही हैं। हाँ-हाँ, शुरू में और आखिर में, सब अकेले ही होते हैं। अपना कोई नहीं ठहरा दुनिया में, बस अपना नियम अपना हुआ।”

प्रश्न 3: ‘समहाउ इप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग यशोधर बाबू लगभग हर वाक्य के प्रारंभ में तकिया कलाम की तरह करते हैं। इस वाक्यांश का उनके व्यक्तित्व और कहानी के कथ्य से क्या सबध बनता है?
उत्तर समहाउ इंप्रापर का अर्थ है – कुछ-न-कुछ गलत जरूर है। यशोधर बाबू द्वारा इस वाक्यांश का प्रयोग करना वास्तव में आज की स्थिति का सच्चा वर्णन करना है। आज परिवार, समाज और राष्ट्र में कहीं-कहीं कुछ-न-कुछ गलत ज़रूर हो रहा है। फिर यशोधर बाबू जैसे सिद्धांतवादी लोगों के लिए ऐसी स्थिति को स्वीकारना सहज नहीं है। उनका तकियाकलाम निम्न संदर्भो में प्रयुक्त हुआ है|

  1. साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलना
  2. दफ्तर में सिल्वर वैडिंग
  3. स्कूटर की सवारी पर
  4. अपनों से परायेपन का व्यवहार मिलने पर
  5. डीडीए फ्लैट का पैसा न भरने पर
  6. छोटे साले के ओछेपन पर
  7. शादी के संबंध में बेटी द्वारा स्वयं निर्णय लेने पर
  8. खुशहाली में रिश्तेदारों की उपेक्षा करने पर
  9. केक काटने की विदेशी परंपरा पर आदि।

इन संदर्भो से स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू समय के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं, इस कारण वे अपेक्षित रह गए।

प्रश्न 4: यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आपके जीवन की दिशा देने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा और कैसे?
उत्तरयशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशन दा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मेरे जीवन पर मेरे बड़े भाई साहब का प्रभाव है। वे बड़े शिक्षाविद हैं। उन्होंने हर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। उन्हें कई विषयों का गहन ज्ञान है। परिवार वाले उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, परंतु उन्होंने साफ़ मना कर दिया तथा शिक्षक बनना स्वीकार किया। आज वे विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं। उनके विचार व कार्यशैली ने मुझे प्रभावित किया। मैंने निर्णय किया कि मुझे भी उनकी तरह मेहनत करके आगे बढ़ना है। मैंने पढ़ाई में मेहनत की तथा अच्छे अंक प्राप्त किए। मैंने स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेना शुरू कर दिया। कई प्रतियोगिताओं में मुझे इनाम भी मिले। मेरे अध्यापक प्रसन्न हैं। मैं बड़े भाई की सरलता, व सादगी से बहुत प्रभावित हूँ।

प्रश्न 5:वर्तमान समय में परिवार की सरंचना, स्वरूप से जुड़ आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामजस्य बैठा पाते है?
उत्तरयह कहानी आज के समय की पारिवारिक संरचना और उसके स्वरूप का सही अंकन करती है। आज की परिस्थितियाँ इस कहानी की मूल्य संवेदना को प्रस्तुत करती हैं। आज के परिवारों में सिद्धांत और व्यवहार का अंतर दिखाई देता है। आज के परिवारों में भी यशोधर बाबू जैसे लोग मिल जाते हैं जो चाहकर भी स्वयं को बदल नहीं सकते। दूसरे को बदलता देख कर वे क्रोधित हो जाते हैं। उनका क्रोध स्वाभाविक है क्योंकि समय और समाज का बदलना जरूरी है। समय परिवर्तनशील है और व्यक्ति को उसके अनुसार ढल जाना चाहिए। यह कहानी वर्तमान समय की पारिवारिक संरचना और स्वरूप को अच्छे ढंग से प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 6:निम्नलिखित में से किस आप कहानी की मूल सवेदना कहगे/कहगी और क्यों?

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  1. हाशिए पर धकेल जाते मानवीय मूल्य
  2. पीढ़ी का अतराल
  3. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

उत्तरइस कहानी में, मानवीय मूल्यों-भाईचारा, प्रेम, रिश्तेदारी, बुजुर्गों का सम्मान आदि-को हाशिए पर दिखाया गया है। यशोधर पुरानी परंपरा के व्यक्ति हैं, जबकि उनके बच्चे पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हैं। वे ‘सिल्वर वैडिंग’ जैसी पाश्चात्य परंपरा का निर्वाह करते हैं। इन सबके बावजूद यह कहानी पीढ़ी के अंतराल को स्पष्ट करती है। यशोधर बाबू स्वयं पीढ़ी के अंतराल को स्वीकार हैं। वे मानते हैं कि दुनियादारी के मामले में उनकी संतान व पत्नी उससे आगे हैं। वह पुराने आदशों व मूल्यों जुडे हुए हैं। ऑफ़िस में भी वे कर्मचारियों के साथ ऐसे ही संबंध बनाए हुए हैं। चड्ढा की चौड़ी मोहरी वाली उन्हें ‘समहाउ इंप्रॉपर’ लगती है। उन्हें अपनी बीवी व बच्चों का रहन-सहन भी अनुपयुक्त जान पड़ता है। वे जिन सामाजिक मूल्यों को बचाना चाहते हैं, नयी पीढ़ी उनका पुरजोर विरोध करती है। नयी पीढ़ी पुरानी सादगी को फटीचरी सिल्वर वैडिंग के मानती है। वह रिश्तेदारी निभाने को घाटे का सौदा बताती है। इन्हीं सब मूल्यों से प्रभावित होकर यशोधर बाबू के पिता के लिए नया गाउन लाते हैं ताकि फटे पुलोवर से उन्हें शर्मिदा न होना पड़ा। उन्हें अपने मान-सम्मान की है।

प्रश्न 7:अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रह उन बदलावों के बारे में लिख जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुगों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण होंगे?
उत्तरपरिवर्तन प्रकृति का नियम है। बदलना ही समय की पहचान है। आज घर का परिवेश बिलकुल बदल चुका है। एकल परिवार प्रणाली प्रचलन में आ चुकी है यद्यपि यह सुविधाजनक है किंतु इसके बुरे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। विद्यालय आज आधुनिक रूप धारण कर चुके हैं लेकिन यह रूप बुजुर्गों को बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा। कारण स्पष्ट है कि आधुनिकता के नाम पर इन विद्यालयों में पाश्चात्य संस्कृति का खुलकर समर्थन किया जा रहा है। शिक्षा और परिवार में परिवर्तन के नाम पर संस्कृति का परित्याग होता जा रहा है।

प्रश्न 8:यशोधर बाबू के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? दिए गए तीन कथनों में से आप जिसके समर्थन में हैं, अपने अनुभवों और सोच के आधार पर उसके लिए तर्क दीजिए

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  1. यशोधर बाबू के विचार पूरी तरह से पुराने हैं और वे सहानुभूति के पात्र नहीं हैं।
  2. यशोधर बाबू में एक तरह का द्ववद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है पर पुराना छोड़तानहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत हैं।
  3. यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नयी पीढ़ी द्वारा उनके विचारों का अपनाना ही उचित हैं।

उत्तरप्रस्तुत कथा में यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी-कभी खींचता तो है, पर पुराना छोड़ता नहीं। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। ये बातें कहानी पढ़ने के बाद यशोधर बाबू पर पूर्णत: लागू होती हैं। वे पुरानी सोच के व्यक्ति हैं। समाज को वे अपने मूल्यों के हिसाब से चलाना चाहते हैं। वे अपने बच्चों की तरक्की से खुश हैं। उन्हें किशन दा की मौत का कारण समझ में आता है। वह स्वयं को को छोड़ नहीं पाते। वे स्वयं को उपेक्षित मानने लगते हैं। वे चाहते हैं कि नई में उन्हें खुशी होती है, परंतु यह भी दुख है कि इस ली गई। ऐसे व्यक्तियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार जरूरी है।

अन्य हल प्रश्न

  1. बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर बाबू के अतद्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरयशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। वे आधुनिकता व प्राचीनता में समन्वय स्थापित नहीं कर पाते। नए विचारों को संशय की दृष्टि से देखते हैं। इस तरह वे ऑफ़िस व घर-दोनों से बेगाने हो जाते हैं। वे मंदिर जाते हैं। रिश्तेदारी निभाना चाहते हैं, परंतु अपना मकान खरीदना नहीं चाहते। वे अच्छे मकान में जाने को तैयार नहीं होते। वे बच्चों की प्रगति से प्रसन्न हैं, परंतु कुछ निर्णयों से असहमत हैं। वे सिल्वर वैडिंग के अयोजन से बचना चाहते हैं। 

प्रश्न 2:यशोधर बाबू बार-बार किशन दा को क्यों याद करते हैं? इसे आप उनका सामथ्र्य मानते हैं या कमजोरी?
उत्तरयशोधर बाबू किशन दा को बार-बार याद करते हैं। उनका विकास किशन दा के प्रभाव से हुआ है। वे किशन दा की प्रतिच्छाया हैं। यशोधर छोटी उम्र में ही दिल्ली आ गए थे। किशन दा ने उन्हें घर में आसरा दिया तथा नौकरी 

प्रश्न 3:अपने घर में अपनी ‘सिल्वर वैडिंग’ के आयोजन में भी यशोधर बाबू को अनेक बातें ‘समहाउ इप्रॉपर’ लग रही थीं। ऐसा क्यों?
उत्तरअपने घर में अपनी ‘सिल्वर वैडिंग’ के आयोजन में भी यशोधर बाबू को अनेक बातें ‘समहाउ इंप्रॉपर’ लग रही थीं। इसका कारण उनकी परंपरागत सोच थी।  वे इन चीजों को पाश्चात्य संस्कृति की  देन मानते हैं। वे पुराने संस्कारों में विशवास रखते हैं। वे केक काटना थी पसंद नहीं करते। दूसरे, उनसे इस पर्टी के आयोजन के विषय में पूछा तक नहीं गयी।  इस बात की उन्हे कसक थी और वे पुरे कार्यक्रम में बेगाने से बने रहे। 

प्रश्न 4:“सिल्यर वेडिंग’ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या सदैश दंने का प्रयास किया हैं?
उत्तरइस कहानी में ‘मीही का अंतराल‘ सबसे प्रमुख है। यही मूल संवेदना है क्योकि कहानी में प्रत्येक कठिनाई इसलिए आ रही है क्योंकि यशोधर बाबू अपने पुराने संर–कारों, नियमों व कायदों से बाँधे रहना चाहते है और उनका परिवार, उनके बच्चे वर्तमान में जी रहै है जो ऐसा कुछ गलत भी नहीं है। यदि यशोधर बाबू थोहं–से लचीले स्वभाव के हो जाते, तो उम्हें बहुत सुख मिलता और जीवन भी खुशी से व्यतीत करते।

प्रश्न 5:पार्टी में यशांयर बाबू का व्यवहार आपकां केसा लगा? ‘सिल्वर वेडिंग‘ कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर“सिंल्बर वेडिंग‘ इस पार्टी में यशोधर बाबू का व्यवहार बड़ा अजीब लगा। उन्हें पाटों इंप्रॉपर लगी, क्योंकि उनके अनुसार ये सब अग्रेजी के चोंचले के अपनी पत्नी और पुत्री की हंस इंप्रॉपर लगी, व्हिस्की इंप्रॉपर लगी, केक भी नहीं खाया, क्योंकि उसमें अडा होता है। लडूडू भी नहीं खाया, क्योंकि शाम को पूजा नहीं की थी। पूजा में जाकर बैठ गए ताकि मेहमान चले जाएँ। उनका ऐसा व्यवहार बड़। ही सुन्दर लग रहा था। यदि वे कहीं किसी जगह पर भी ज़रा–सा समझोता कर लेते, तो शायद इतना बुरा न लगता।

प्रश्न 6:“सिल्वर वेडिंग’ के पात्र वशांपर बाबू बार-बार किशन दा की क्यो’ याद करते हैं?

अथवा

सिल्वर वेडिंग में यशांधर बाबू किशन दा के आर्दश’ की त्याग क्यो’ नहीं पाते?
उत्तर‘सिल्वर वेडिंग’ के पात्र यशोधर वाबू बर-चार किशन डा को याद करते हैं। इसका कारण किशन दा के उन पर अहसान हैं। जब वे दिल्ली आए तो किशन दा ने उम्हें आश्रय दिया तथा उन्हें नौकरी दिलवाई। उन्होंने यशोधर को सामाजिक व्यवहार सिखाया किशन दा उन्हें जिदगी के हर मोड़ पर सलाह देते थे। इस कारण उन्हें किशन दा क्री याद बार-बार आती थी।

प्रश्न 7:“सिल्वर वेडिंग‘ में लेखक का मानना है कि रिटायर होने के बाद सभी “जां हुआ हांगा” से मरते हँ। कहानी के अनुसार यह ‘जां हुआ हटेगा‘ क्या हैं? इसके क्या लक्षण हैं?
उत्तर’जो हुआ होगा‘ का अर्थ है–ब पता नहीं। यह मनुष्य की सामाजिक उपरान्त को दशांती है। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को नये विचार व नयी बातें अच्छी नहीं लगतीं। उन्हें हर कार्य में कमी नजर आती है। युवाओं के काम पर वे पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव मलते हैं। युवा मीही के साथ वे अपना तालमेल नहीं वेठा पाते। ऐसे लोग डेबाओँ, यहाँ तक कि अपने बच्चे के कामों में भी दोष निकालने लगते हैं। इस कारण वे समाज है कट जाते ‘।

प्रश्न 8: यशोधर बाबू की पानी के व्यक्तित्व और व्यवहार के उन परिवर्तनों का उल्लेख र्काजिए जी यजा/धर बाबू की ‘समहाउ इ‘प्रर्मिर‘ लगते हैं?
उत्तर यशोधर काबू को अपनी पत्नी का बुढापे में सजनश्नसँवरना तथा नए फैशन वाले कपडे पहनना पसंद नहीं है। उनका मानना है कि समय आने पर मनुष्य में बुंजुगिंयत भी आनी चाहिए। वे पत्नी दवारा बजार का खाना और ऊँची एडी के सैडैल पहनना पसंद नहीं करते। ये सब बाते उसे “समहाउ इ‘प्रॉपर‘ लगती हैं।

प्रश्न 9:‘सिल्वर वेडिंग‘ के आधार पर थशांधर बाबू के सामने आईं किन्ही‘ दो ‘ममहाल इप्रॉपर‘ स्थितियाँ का उल्लेख र्काजिए।
उत्तरयशोधर बाबू को अपने बेटे की प्रतिभा साधारण लगती है, परंतु उसे प्रसिदूध विज्ञापन कपनी में डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह वेतन की नौकरी मिलती है। यह बात यशेधिर बाबूकौ समक्ष में नहीं आती कि उसे इतना वेतन क्यों मिलता है? उन्हें इसमें कोई कमी प्यार आती है। दूसरी स्थिति ‘सिलवर वेडिंग‘ पार्टी की है। इस पार्टी में दिखावे व पाश्चात्य प्रभाव से वे दुखी हैं। उम्हें यह भी उपयुक्त नहीं लगती।

प्रश्न 10:यशोधर बाबू अपने रोल मॉडल किशन दा से क्यों प्रभावित हैं?
उत्तर‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर लिखिए। यशोधर बाबू पर किशन दा का पूर्ण प्रभाव था, क्योंकि उन्होंने यशोधर बाबू को कठिन समय में सहारा दिया था। यशोधर भी उनकी हर बात का अनुकरण करते थे। चाहे ऑफ़िस का कार्य हो, सहयोगियों के साथ संबंध हों, सुबह की सैर हो, शाम को मंदिर जाना हो, पहनने-ओढ़ने का तरीका हो, किराए के मकान में रहना हो, रिटायरमेंट के बाद गाँव जाने की बात हो आदि-इन सब पर किशन दा का प्रभाव है। बेटे द्वारा ऊनी गाउन उपहार में देने पर उन्हें लगता है कि उनके अंगों में किशन दा उतर आए हैं।

प्रश्न 11:‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू एक ओर जहाँ बच्चों की तरक्की से खुश होते हैं, वहीं कुछ ‘समहाउ इप्रॉपर‘ भी अनुभव करते तो एंसा क्यो?
उत्तरयशोधर बाबू अंतद्र्वद्व से ग्रस्त व्यक्ति हैं। वे पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। वे पुराने मूल्यों को स्थापित करना चाहते हैं, परंतु बच्चे उनकी बातों को नहीं मानते। वे अपने बेटे की नौकरी से खुश हैं, परंतु अधिक वेतन पर उन्हें संशय है। वे नयापन पूरे आधे-अधूरे मन से अपनाते हैं। साथ-साथ उन्हें अपनी सोच व आदशों के प्रति भी संशय है। वे अकसर नकली हँसी का सहारा लेते हैं।

प्रश्न 12:‘सिल्चर वैडिंग‘ के आधार पर सैक्शन अग्रसर वाहँ०डाँ० पंत और उनके सहयीगौ कर्मचारियो‘ के परस्पर स‘बंर्धा पर टिप्पणी र्काजिए।

अथवा

कार्यालय में अपने सहकर्मियों के साथ सैक्शन उन्हों१पेन्यर त्नार्ह०डाँ० की के व्यवहार पर टिप्पणी र्काजिसा।
उत्तर सेक्शन अक्तिसर वाइं०डी० पंत का व्यवहार आँफिस में शुष्क था। वे किशन दा को परंपराओं का पालन कर रहे थे। वे सहयोगी कर्मचारियों रने बग–मिलना पसंद नहीं करत्ते थे। उनके साथ बैठकर चाय–पनी पीना व गप्प मारना उनके अनुसार समय को बरबादी थी। वे उनके साथ जलपान के लिए भी नहीं रुकते। वे समय हैं अधिक प्यार में रुकते थे। इससे भी उनके सहयोगी उनसे नाराज़ रहते थे।

प्रश्न 13:यशांधर पंत अपने कार्यालय क्रं सायरेगियों के साथ स‘ब‘ध–निवद्वि में किन बातों में अपने राल मा‘डल किशन दा को परंपरा का नियति करते हैं?
उत्तर सैक्शन अक्तिसर यशीधर पंत अपने कार्यालय के सहयोगियों के साथ संबंध–निर्वाह में अपने रोल मंडियों किशन दा को निम्नलिखित परंपरा का निर्वाह करते हैं–

  1. अपने अधीनस्यों से दूरी बनाए रखना।
  2. कर्यालय में तय समय से अधिक बैठना।
  3. अधीनस्यों रने हिन-भर शुष्क व्यवहार करना, परंतु शाम को चलते समय उनरनै थोड़ा हास–परिहास करना।

प्रश्न 14:यशांधर बाबू एंसा क्यों सोचते हैं‘ कि वं भी किशन दा की तरह घर–गृहस्थी का बवाल न पालते तो अच्छा था?
उत्तर यशोधर बाबू परंपरा को मानने तथा बनाए रखने वाले इन्सग्न थे। उन्हें पुराने रीति–रिवाजों से लगाव या वे संयुवत्त परिवार के समर्थक थे। उनकी पुरानी सोच बच्चों को अच्छी नहीं लगती। बच्ची” का आचरण और व्यवहार देखकर उन्हें दुख होता है। उनकी पत्नी भी बच्चों का ही पक्ष लेती है और ज्यादा समय बच्चों के साथ बिताती हैं। इसके अलावा यशोधर बाब्रूको घर के कई काम करने होते हैं। घर में अपनी ऐसी स्थिति देखकर वे सोचते है कि किशन दा की तरह घर–गृहस्थी का बवाल न पालते तो अच्छा आ।

प्रश्न 15:वाइं०डॉ० पंत की पत्सी पति र्का अपेक्षा संतान की और वयां‘ पक्षपाती दिखाईं पड़ती हैं?
उत्तरवाई०डी० पंत की पत्नी पति की अपेक्षा संतान की और इसलिए पक्षपाती दिखाई देती है क्योंकि वह जीवन के सुखों का भरपूर आनंद उठाना चाहती थो। उसने युवावस्था में संयुक्त परिवार के कारण अपने मन को यारों था वह पत से इस बात पर नाराज थी कि उसने खुलकर खानेमीने नहीं दिया । वह जवानी में फैशन करना चाहती थी पर पति ने नहीं करने दिया। उसे अपने पति के परंपरावादी होने यर भी क्रोध आता था, जिनके कारण वह अपनी मर्जी से खेल–खा नहीं सकी थी

  1. निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:यशांधर बाबू का अपने बच्चप्रे‘ के साथ कैसा व्यवहार था? ‘सिल्वर वैर्डिग” क्रं आधार पर बताड़ए।
उत्तरयर्शधिर बाबू डेमोक्रैट काबू थे। वे यह दुराग्रह हरगिज़ नहीं करना चाहते थे कि बच्चे उनके कहे को पत्थर की लकीर मानें। अत: बच्चों को अपनी इच्छा से काम करने की पा आजादी थी। यशोधर बाबू तो यह भी मानते थे कि आज बच्चों को उनसे कहीं ज्यादा ज्ञान है, मगर एवस्पीरिएंस का कोई सब्लोटूयूट नहीं होता। अता वे सिर्फ इतना भर चाहते थे कि बच्चे जो कुछ भी करें, उनसे पूछ जरूर लें। इस तरह हम यह कह सकते है कि वे स्वयं चाहे जितने पुराणपंथी थे, बच्चों को स्वतंत्र जीबन देते थे।

प्रश्न 2:यशांधर बाबू की पलों मुख्यत: पुराने सरकारो‘ वाली थीं, फिर किन कारणों से वं आधुनिक बन यहीं “सिल्वर वैर्डिरा” पाट के आधार पर बताहए।

अथवा

‘सिल्चहँर वैर्डिरा‘ पाठ के आलांक में स्पष्ट र्काजिए कि यशांधर बाबू की यानी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है।
उत्तर यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल सरकारों रने किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, पर अब बच्चों का पक्ष लेने को भातृ–सुलभ मज़बूरी ने उन्हें आधुनिक बना दिया है। वे बच्चों के साथ खुशी से समय बिताना चाहती हैं। यशोधर काबू का समय तो दफ्तर में कट जाता है, लेकिन उनकी पत्मी क्या करे? अता बच्चों का साथ देना ही उम्हें अच्छा लगता है। इसके अतिरिक्त, उनके मन में इस बात का भी बड़ा मलाल था कि जब वे शादी करके आई थीं, त्तो संयुक्त परिवार में उन पर बहुत कुछ थोपा गया और उनके पति यशोधर बाबू ने कभी भी उनका पक्ष नहीं लिया युवावस्था में ही उन्हें बुढिया वना दिया गया । अब तो कम–से–कम बच्चे के साथ रहकर कुछ मन को कर लें।

प्रश्न 3:अपने निवास के निकट पहुँचकर वाहँ०डॉ‘० पते की क्यो‘ लगा कि वे किसी गलत जगह पर आ गए हैं? पूर आयांजन में उनकी पनास्थिति पर प्रकाश डालिया।
उत्तर सब्जी लेने के बाद जब यशोघर अपने घर के पास पहुंचते है तो उनके क्वार्टर पर उनकी नेमप्लेट लगी हुईं होती है। घर के बाहर एक कार, कुछ स्कूटर व मोटरसाइकिल तथा बहुत–रने सांग खडे हैं। घर में रंग–बिरंपी लहियाँ लगी हैं। यह देखकर उन्हें लगा कि शायद वे गलत जगह पर आ गए हैं। हालाँकि तभी उन्हें अपना बेटा भूषण तथा पत्नी व बेटी नए ढंग के कपडों में मेहमानों को विदा करती दिखाई दीं, तब उन्हें विश्वास हुआ कि यही उनका धर है। यशीधर वाबू का बेमन से केक काटना, पूजा के बहाने अंदर चले जाना, मेहमानों के जाने के बाद बाहर निकलना आदि को देखकर उनके मन: स्थिति के विषय में यह निश्चत रूप सै कहा जा सकता है कि ‘सिलवर बैडिग‘ का आयोजन उन्हें पसंद नहीं आ रहा था।

प्रश्न 4:क्या पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव को “सिल्वर वेंर्डिप‘ कहानी की मूलं सवेंदना कहा जा सकता हैं? तर्क सहित उतार दीजिए।
उत्तर ‘सिल्चर बैडिग‘ कहानी में युवा पीढी क्रो पाश्चात्य रंग में रंगा हुआ दिखाया गया है। इस मीही की नज़र में भारतीय मूल्य व परंपराओं के लिए कोईस्थान नहीं है। वे रिश्तेदारी, रीतिरिवाज, वेश–धुम आदि सबको छोड़कर पश्चिमी परंपरा को अपना रहे है, परंतु यह कहानी की मूल सवेदना नहीं है। कहानी के पात्र यशोधर पुरानी परंपराओं क्रो जीवित ररट्टो हुए हैं, भले ही उम्हें घर में अकेलापन सहन करना पड़ रहा ही। वे अपने दफ्तर व घर में विदेशी परंपरा पर टिदुपणी करते रहते हैं। इससे तनाव उत्पन्न होता है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव मीही अंतराल के कारण ज्यादा रहता ।

प्रश्न 5:
यशांधर पते र्का तीन चारित्रिक विशेषताएँ सांदाहरण सपझाड़ए।
उत्तर यशोधर बाबू के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ है –

  1. यरंयराजाबी यलधिर बाबू परंपरावादी हैं। उन्हें पुराने रीति–रिवाज अच्छे लगते हैं। वे संयुक्त परिवार क समर्थक हैं। उन्हें पत्नी व बेटी का सँवरना अच्छा नहीं लगता। घर में भौतिक चीजो से उन्हें चिढ है।
  2. आनुष्ट्रयशोधर असंतुष्ट व्यक्तित्व के हैँ। उम्हें अपनी संतानों की विचारधारा पसंद नहीं। वे घर रने बाहर जान…बूझकर रहते हैं। उम्हें बेटों का व्यवहार व बेटी का पहनावा अच्छा नहीं लगता। हालस्कि घर में उनसे कोई राय नहीं लेता।
  3. रूढिवादीयश–धर कहानी के नायक हैं। वे सेक्शन अस्किसर हैं, परंतु नियमो से बँधे हुए। वस्तु., वे नए परिवेश में मिसफिट हैं। वे नए को ले नहीं सकते, तथा पुराने को छोड़ नहीं सकते।

प्रश्न 6:“सिल्वर र्वर्डिग‘ कहानी के यात्र किशन दा के उन जीवन–मूल्यां‘ कां चर्चा र्काजिए जो यशांधर बाबू काँ सक्ति में आजीवन बने रहा।
उत्तर‘सिल्वर वेडिंग‘ कहानी के पात्र किशन दा के अनेक जीवन–मूल्य ऐसै थे जो यशंधिर बाबूको सोच में आजीवन वने रहे। उनमें रने कुछ जीवन–मूल्य निम्नलिखित हैं –

  1. सादगीपूर्ण यशंधिर बाबू अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। वे सुबिधा के साधनों के फ्रेर में नहीं पडे। वे साइकिल पर अक्तिस जाते है तथा फटा देवर पहनकर दूध लाते हैं।
  2. हैनिन/रियर धिर आबू सरलता की मूर्ति है। वे छल–कपट या दूसरों को धोखा देने जैसे कुंल्सित विचारों सै दूर ।
  3. भारतीय संस्कृति से १नगाव – यशेधिर बाबूर्का भारतीय संस्कृति रने गहरा लगाव हैं। उनके बच्ची पर पाश्चात्यसभ्यता से लगाव है फिर भी वे पुरानी प्यारा और भारतीय संस्कृति के पक्षधर हैं।
  4. आत्मीयतयशोधर बाबू अपने परिवारिक सदस्यों के अलावा अन्य लोगों रने भी आत्मीय संबंध रखते हैं और यह संबंध बनाए रखते हैं।
  5. परिवारिक जीबनशैली– यशोघर बाबू सहज पारिवारिक जीवन जीना चाहते हैँ। वे निकट स्रबधियों से रिरते बनाए रखना चाहते हैं तथा यह इच्छा रखते हैं कि सब उम्हें परिवार के मुखिया के रूप में जानें।

उपर्युक्त जीवन–मूल्य उन्हें किशन दा से मिले थे जिन्हें उन्होंने आजीवन बनाए रखा।

प्रश्न 7:‘सिल्चर बैडिरा‘ के अमर पर उन जीबन–मूल्यों र्का सांदाहरण समीक्षा र्काजिए जाँ समय के साथ बदल रह हैं।
उत्तर‘सित्त्वर वेडिंग‘ पाठ में यशोघर बाबू और उनके बच्चों के आचार–विचार, सोच, रहन–सहन आदि देखकर ज्ञात होता है कि नई पीढी और पुरानी पीढी के बीच अनेक जीबन–मूल्यों में बदलाव आ गया है। उनमें हैं कुछ चौवन–मृत्य हैँ–

  1. सामूहिक्ता यशीघर बाबू अपनी उन्नति के लिए जितना चिंतित रहते थे, उतना ही अपने धर–परिवार, साथियों और सहकर्मियों की उन्नति के बारे में भी, पर नई मीही अकेली उन्नति करना चाहती है।
  2. परंपराओं से लगावपुरानी मीही अपनी संस्कृति , पापा, रीति–रिवाज से लगाव रखती थी, पर समय के साथ इसमें बदलाव आ गया है और परंपराएँ दकियानूसी लगने लगी हैँ।
  3. पूर्वजों का आदर – पुरानी मीही अपने बडों तथा पूर्वजों का बहुत आदर करती थी पर समय में बदलाव केसाथ ही इस जीबन-मूल्य में छोर गिरावट आई है। आज़ बुजुर्ग अपने ही घर में अपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।
  4. त्याग की भावना – पूरानी मीही के लोगों में त्याग की भावना मजबूत थी। वे दूसरों को पुती देखने के लिएअपना सुख त्याग देते थे। पर बदलते समय में यह भावना विलुप्त होती जा रही है और स्वार्थ-प्रवृस्ति प्रबल होती जा रही है। यह मनुष्यता के लिए हितकारी नहीं है।

प्रश्न 7:‘सिल्वर बैर्डिरा‘ के आधार पर उन जीवन–ब‘ पर विचार र्काजिए, जाँ यशांधर बाबू की किशन दा से उन्तराधिकार में मिले के आप उनमें से किम्हें अपनाना चाहने?
उत्तर‘सिल्वर वेडिंग‘ कहानी से ज्ञात होता है कि यशोधर बाबू के जीवन की कहानी कॉ दिशा देने में किशन दा की महत्त्वपूर्ण सारिका रही है। खुद यशोधर बाबू स्वीकारते है कि “मेरे जीवन पर मेरे बहै भाई साहब का प्रभाव है। वे की शिक्षाविद हैं। उन्होंने हर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की श्री। उन्हें कई विषयो का गहन ज्ञान हैं। परिवार वाले उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, परंतु उन्होंने साफ़ मना कर दिया तथा शिक्षक बनना स्वीकार किया। आज वे विश्वविदूयालय में हिंदी के प्रोफेसर हैँ।”
यशीधर बाबूकी इस स्वीकारोक्ति से हमें ज्ञात होता है कि उन्हें किशन दा से अनेक जीवनद्देमूल्य प्राप्त हुए है जैसे–

  1. परिश्रमशीलता – केशन दा के परिश्रमी स्वभाव को देखकर यशोधर काबू ने यह निश्चय कर लिया कि उन्हींको तरह वे भी मेहनत करके आगे बन्हेंगें।
  2. सरलतायशंधिर बाबू किशन दा के जीवन की सरलता से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने जीबन–भर सरलता का साथ नहीं छोड़ा।
  3. सादगी यशोघर बाबू को किशन दा के आदमी–भरे जीवन ने बहुत प्रभावित किया वे भी सादगीपूर्ण जीवन जी र ।

मैं खुद भी यशोधर वाबूटूवारा अपनाए गए जीबन–मूल्यों को अपनाना चाहूँगा, ताकि मैँ भी परिश्रमी, विनम्र, सहनशील, सरल और सादगीपूर्ण जीवन जी सकूँ।

III. मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1:
निम्नलिखित गन्यांशों तथा इनपर आधारित प्रश्तोंत्तरों को ध्यानपूर्वक पढिए- ”

() सीधे ‘असिस्टेंट ग्रेड’ में आए नए छोकरे चड्ढा ने, जिसकी चौड़ी मोहरी वाली पतलून और ऊँची एड़ी वाले जूते पंत जी को, ‘समहाउ इंप्रॉपर’ मालूम होते हैं, थोड़ी बदतमीजी-सी की। ‘ऐज यूजुअल’ बोला, “बड़े बाऊ, आपकी अपनी चूनेदानी का क्या हाल है? वक्त सही देती है?” पंत जी ने चड्ढा की धृष्टता को अनदेखा किया और कहा, “मिनिट-टू-मिनिट करेक्ट चलती है।” चड्ढा ने कुछ और धृष्ट होकर पंत जी की कलाई थाम ली। इस तरह की धृष्टता का प्रकट विरोध करना यशोधर बाबू ने छोड़ दिया है। मन-ही-मन वह उस जमाने की याद जरूर करते हैं जब दफ़्तर में वह किशन दा को भाई नहीं ‘साहब’ कहते और समझते थे। घड़ी की ओर देखकर वह बोला, “बाबा आदम के जमाने की है बड़े बाऊ यह तो! अब तो डिजिटल ले लो एक जापानी। सस्ती मिल जाती है।”
प्रश्न:

 

  1. नए छोकरे ‘चड्ढा’ ने ‘पत’ के साथ जैसा व्यवहार किया उसे आप कितना उचित मानते हैं?
  2. कहानी की शेष परिस्थितियाँ वही होतीं और आप ‘चड्ढा’ की जगह होते तो कैसा व्यवहार करते और क्यों?
  3. किन्हीं दो मानवीय मूल्यों का उल्लेख कीजिए जिन्हें आप ‘पत’ के चरित्र से अपनाना चाहगे और क्यों?

उत्तर

  1. नए छोकरे ‘ ‘ ने ‘पंत’ के साथ धृष्टतापूर्ण व्यवहार किया। उसके व्यवहार में अपने वरिष्ठ पंत के प्रतिस्नेह, सम्मान और आदर न था। मैं इस तरह के व्यवहार को मैं तनिक भी उचित नहीं मानता।
  2. यदि मैं चड्ढा की जगह होता और अन्य परिस्थितियाँ समान होतीं तो मैं अपने वरिष्ठ सहयोगी पंत का भरपूर आदर करता। उनसे स्नेह एवं सम्मानपूर्ण व्यवहार करता जिससे उन्हें अपनापन महसूस होता। मेरी बातों में व्यंग्यात्मकता की जगह शालीनता होती, क्योंकि बड़ों का सम्मान करना मेरे संस्कार में शामिल है।
  3. मैं पंत के चरित्र एवं व्यवहार से जिन मानवीय मूल्यों को अपनाना चाहता उनमें प्रमुख हैं-(क) सहनशीलता (ख) मृदुभाषिता। इन मूल्यों को मैं इसलिए अपनाता क्योंकि आज युवाओं में इन दोनों का अभाव दिखता है, इससे थोड़ी-थोड़ी-सी बात पर युवा लड़ने-झगड़ने लगते हैं तथा मार-पीट पर उतर आते हैं। इसके अलावा इससे मेरे व्यवहार का भी परिमार्जन होता।

() इस तरह का नहले पर दहला जवाब देते हुए एक हाथ आगे बढ़ा देने की परंपरा थी, रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा में जहाँ से कभी यशोधर बाबू ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इस तरह के आगे बढ़े हुए हाथ पर सुनने वाला बतौर दाद अपना हाथ मारा करता था और वक्ता-श्रोता दोनों ठठाकर हाथ मिलाया करते थे। ऐसी ही परंपरा किशन दा के क्वार्टर में भी थी जहाँ रोजी-रोटी की तलाश में आए यशोधर पंत नामक एक मैट्रिक पास बालक को शरण मिली थी कभी। किशन दा कुंआरे थे और पहाड़ से आए हुए कितने ही लड़के ठीक-ठिकाना होने से पहले उनके यहाँ रह जाते थे। मैसे जैसी थी। मिलकर लाओ, पकाओ, खाओ। यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। कोशिश करने पर भी ‘बॉय सर्विस’ में वह नहीं लगाए जा सके। तब किशन दा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर को पचास रुपये उधार भी दिए कि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके। बाद में इन्हीं किशन दा ने अपने ही नीचे नौकरी  दिलवाई और दफ़्तरी जीवन में मार्ग-दर्शन किया। चड्ढा ने जोर से कहा, “बड़े बाऊं आप किन खयालों में खो गए? मेनन पूछ रहा है कि आपकी शादी हुई कब थी?”
प्रश्न:

  1. स्कूली दिनों की कौन-सी आदत यशोधर बाबू आज भी नहीं छोड़ पाए थे? यह आदत किन मूल्यों कोबढ़ाने में सहायक थी?
  2. किशन दा के किन मानवीय मूल्यों के कारण उनका उल्लख गद्यांश में किया गया हैं? वर्तमान में वे , मूल्य कितने प्रासगिक हैं?
  3. क्या चड्ढा का व्यवहार अवसर के अनुकूल था? कारण सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर

  1. यशोधर बाबू रेम्जे स्कूल की उस आदत को आज भी नहीं छोड़ पाए थे जब उचित जवाब देने वाला अपना एक हाथ आगे बढ़ाता था और दूसरा उस पर अपना हाथ जोर से मारता था। इस पर दोनों हँस पड़ते थे। यह आदत आपसी मेलजोल और समरसता बढ़ाने वाली है। बात का व्यंग्य या कटुता इस हँसी में दबकर रह जाती है।
  2. पारस्परिक मेलजोल, सद्भाव और सहायता जैसे मानवीय मूल्य किशन दा में भरे थे जिनके कारण उनका यहाँ उल्लेख हुआ है। इसका प्रमाण स्वयं यशोधर बाबू और पहाड़ से आने वाले युवाओं के साथ किया गया व्यवहार है। वर्तमान में इन मूल्यों की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। यदि हर व्यक्ति इन मूल्यों को अपना ले तो सामाजिक समस्याएँ कम हो जाएँगी।
  3. चड्ढा का व्यवहार बिलकुल भी अनुकूल न था, क्योंकि बतौर दाद पाने की अपेक्षा में हाथ बढ़ाए यशोधर बाबू को निराशा ही मिली। उसने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि वह यशोधर बाबू के प्रति सम्मान और आदर भाव नहीं रखता था।

() जब तक किशन दा दिल्ली में रहे तब तक यशोधर बाबू ने उनके पट्टशिष्य और उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। किशन दा के चले जाने के बाद उन्होंने ही उनकी कई परंपराओं को जीवित रखने की कोशिश की और इस कोशिश में पत्नी और बच्चों को नाराज किया। घर में होली गवाना, ‘जन्यो पुन्यूँ’ के दिन सब कुमा. ऊँनियों को जनेऊ बदलने के लिए अपने घर आमंत्रित करना, रामलीला की तालीम के लिए क्वार्टर का एक कमरा देना और काम यशोधर बाबू ने किशन दा से विरासत में लिए थे। उनकी पत्नी और बच्चों पर होने वाला खर्च और इन आयोजनों में होने वाला शोर, दोनों ही सख्त नापसंद थे। बदतर यही के लिए समाज में भी कोई खास उत्साह रह नहीं गया है।
प्रश्न:

  1. यशोधर बाबू ने उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका कैस निभाई और क्यों?
  2. यशोधर बाबू ने किशन दा से किन मूल्यों को विरासत में प्राप्त किया? आप यशोधर बाबू की जगह होते तो क्या करती?
  3. यदि आप यशोधर बाबू के बच्चे (बेट) होते तो उनके साथ आपका व्यवहार कैसा होता और क्यों?

उत्तर

  1. यशोधर बाबू ने किशन दा के मूल्यों को अपने मन में बसाया और उनको अपने आचरण में उतारकर उत्साही कार्यकर्ता की भूमिका पूरी निष्ठा से निभाई। इसका कारण यह है कि यशोधर बाबू में कृतज्ञता, आदर, स्नेह, सम्मान जैसे मूल्यों का भंडार था। वे किशन दा से पूरी तरह प्रभावित थे।
  2. यशोधर बाबू ने किशनदा से सहनशीलता, विनम्रता, अपनी संस्कृति एवं विरासत से प्रेम एवं लगाव जैसेमूल्यों को प्राप्त किया। उन्होंने किशन दा की जीवित रखकर प्रगाढ़ किया। यदि मैं यशोधर बाबू की जगह होता तो उन्हीं जैसा आचरण करता।
  3. यदि मैं यशोधर बाबू का बेटा होता तो उनके किए जा उपेक्षित न करता और मूल्यों तथा परंपराओं को जीवित रखने में योगदान देता।

() भूषण सबसे बड़ा पैकेट उठाकर उसे खोलते हुए बोला, “इसे तो ले लीजिए। यह मैं आपके लिए लाया हूँ। ऊनी ड्रेसिंग गाउन है। आप सवेरे जब दूध लेने जाते हैं बब्बा, फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं जो बहुत ही बुरा लगता है। आप इसे पहन के जाया कीजिए।” बेटी पिता का पाजामा-कुर्ता उठा लाई कि इसे पहनकर गाउन पहनें। थोड़ा-सा ना-नुच करने के बाद यशोधर जी ने इस आग्रह की रक्षा की। गाउन का सैश कसते हुए उन्होंने कहा, ‘अच्छा तो यह ठहरा ड्रेसिंग गाउन।” उन्होंने कहा और उनकी आँखों की कोर में जरा-सी नमी चमक गई। यह कहना मुश्किल है कि इस घड़ी उन्हें यह बात चुभ गई कि उनका जो बेटा यह कह रहा है कि आप सवेरे ड्रेसिंग गाउन पहनकर दूध लाने जाया करें, वह यह नहीं कह रहा कि दूध मैं ला दिया करूंगा या कि इस गाउन को पहनकर उनके अंगों में वह किशन दा उतर आया है जिसकी मौत ‘जो हुआ होगा’ से हुई।
प्रश्न:

  1. आपके विचार से परिवार में बहीं के प्रति स्नेह, सामान और आदर प्रदर्शित करने के और वया–वया तरीके हाँसकते हैं। 
  2. यशांधरहँपत की आँखां’ में नमी जाने का कारण आपके विचार से क्या हरे सकता हैं? आप एंसा क्यो‘  मानते हैं। 
  3. यदि” भूषण की जगह अम होते और शंष परिस्थितियाँ कहानी की तरह हाती” तो आपका व्यवहार अपने“वब्बा‘ के प्रति केसा होता, क्यो‘?

उतार

  1. मेरे विचार से बडों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के अनेक तरीके हो सकते है; जैसे-उनकी बातें मानकर, उनसे अपनत्व भाव दिखाकर, उनके पथ कुछ समय बिताकर तथा उनकी छोटी-छोटी आवश्यकताओं का ध्यान रखकर आदि।
  2. मेरे विचार से यशीधर पत की आँखों में नमी आने का कारण यह रहा होगा कि उनका बेटा उपहार तो है सकता है पर काम में हाथ नहीं बँटा सकता। वह एक बार भी उन्हें दूध लाने के लिए मना नहीं करता।
  3. यदि मैं भूरे की जगह होता तो –
    1. अपने ‘बब्बा’ की विगत परिस्थितियों को ध्यान में रखता तथा वर्तमान परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाने को कोशिश करता
    2. मैं उनकी उम और शारीरिक अवस्था को ध्यान में रखकर उनरनै कोई काम करने के लिए कहना तो दूर, उनके कामों को भी स्वय करता।

प्रश्न 2:
यशीधर बाबू पुरानी परंपरा को नहीं छोड़ या रहे हैँ। उनके ऐसा करने को आप वर्तमान में कितना प्रासंगिक समझ ‘? ”
उतार
यशीधर बाबू पुरानी मीही के प्रतीक हैं। वे रिसते–नाती के माथ–माथ पुरानी परंपराओं सै अपना विशेष जुड्राब महसूस करते हैँ। वे पुरानी परंपराओं को चाहकर भी नहीं छोड़ पते यदूयपि वे प्रगति के पक्षधर है, फिर भी पुरानी परंपराओं के निर्वहन में रुचि लेते हैं। यशेधिर बाबू किशन की को अपना मार्गदर्शक मानते हैं और उन्हें के बताए–सिखाए आदशों को जीना चाहते हैं। आपसी मेलजोल बढाना, रिश्तों को गर्मजोशी से निभाना, होती के आयोजन के लिए उत्साहित रहना, रामलीला का आयोजन करवाना उनका स्वभाव बन गया है। इससे स्पष्ट है कि वे अपनी परंपराओं रने अब भी जुहं हैं। यदूयपि उनके बच्चे आधुनिकता के पक्षधर होने के कारण इन आदतों पर नाक–भी सिकोड़ते है, फिर भी यशोधर बाबू ड़न्हें निभाते आ रहै हैं। इसके लिए उन्हें अपने धर में टकराव झेलना पड़ता है।
यशोधर काबू जैसै पुरानी मीही के लोगों को परंपरा से मोह बना होना स्वाभाविक है। उनका यह मोह अचानक नहीं समाप्त ढो सकता। उनका ऐसा करना वर्तमान में भी प्रासंगिक है, क्योकि रानी परंपराएँ हमारी संस्कृति का अंग होती हैं। इन्हें एकदम रने त्यागना किसी समाज के लिए शुभ लक्षण नहीं दु। हाँ, यदि पुरानी परंपराएँ रूहि बन गई हों तो उन्हें त्यागने में ही भलाई होती है। युवा मीही में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ बनाने में परंपराएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अत: मैं इन्हें वर्तमान में भी प्रासंगिक समझता हू।

प्रश्न 3:
यशोधर बाबू के बच्चे युवा पीढी और नई सोच के प्रतीक हैं। उनका लक्ष्य प्रगति करना है। आप उनकी सोच और जीवा–शेली को भारतीय संस्कृति के कितना निकट पाते हैं?
उतार
यशोधर बाबू जहाँ पुरानी पीढी के प्रतीक और परंपराओं की निभाने में विश्वास रखने वले व्यक्ति है, वहीँ उनके बच्चे की सोच एकदम अलग है। वे युवा पीढी और नई सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे आधुनिकता में विश्वास रखते हुए प्रगति की राह पर आगे बढ़ रहे है। वे अपने पिता की अपेक्षा एकाएक खूब धन कमा रहे है और उच्च पदों पर आसीन तो हो रहै है, किंतु परिवार से, समाज से, रिरतेदारियो से, परंपराओं रने वे विमुख हगे रहै हैं। वे प्रगति को अंधी दोइ में शामिल होकर जीवन रने किनारा का बैठे है। प्रगति को पाने के लिए उन्होंने प्रेम, सदभाव, आत्मीयता, परंपरा, संस्कार रने दूरी बना ली है। वे प्रगति और सुख को अपने जीवन का लक्ष्य भान बैठे हैं। इस प्रगति ने उम्हें मानसिक स्तर पर भी प्रभावित किया है, जिससे वे अपने पिता जी की ही पिछडा, परंपरा को व्यर्थ की वस्तु और मानवीय संबंधों की बोझ मानने लगे हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह लक्ष्य से भटकाव है।
भारतीय संस्कृति में भौतिक सुखों को अपेक्षा सबके कल्याण की कामना की गई है। इस संस्कृति में संतुष्टि को महत्ता दी गई है। प्रगति की भागदौड़ से सुख तो माया जा सकता है पर संतुष्टि नहीं, इसलिए उनके बच्चे की सोच और उनकी जीवन–शैली भारतीय संस्कृति के निकट नहीं पाए जाते। इसका कारण यह है कि भौतिक सुखों को ही इस पीढी ने परम लक्ष्य मान लिया है।

प्रश्न 4:
यशोधर बाबू  और उनके बच्चों के व्यवहार एक–दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। खाए इनमें से क्लिका व्यवहार अपनाना और वयो?
उतार
यशोधर बाबू पुरानी पीढी के प्रतीक और पुरानी सोच वाले व्यक्ति हैँ। वे अपनी परंपरा के प्रबल पक्षधर हैं। वे रिशते–नातों और परंपराओं को बहुत महत्त्व देते है और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के पक्ष में हैं। उनकी सोच भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। वे परंपराओं को निभाना जाते है तथा इनके साथ ही प्रगति भी चाहते हैं। इसके विपरीत, यशोधर बाबू के बच्चे रिरते–नस्ते और परंपराओं की उपेक्षा करते हुए प्रगति की अंधी दौड़ मैं शामिल हैं। वे परंपराओं और रिश्तों को बलि देकर प्रगति करना चाहते हैं। इससे उनमें मानवीय मूल्यों का हास हो रहा है। वे अपने पिता को ही पिछड़ा, उनके विचारों को दकियानूसी और पुरातनपंथी मानने लगे हैँ। उनकी निगाह में भौतिक सुख ही सर्वापरि है। इस तरह दोनों के विचारों में दृवंदूव और टकराव है।
यदि मुझे दोनों में से किसी के व्यवहार को अपनाना पडे तो मैं यशीधर बाबू के व्यवहार को अपनाना चाहूँगा, यर कुछ सुधार के साधा इसका कारण यह है कि यशीधर बाबू के विचार चीवामून्दी को मज़बूत बनाते है तथा हमें भारतीय संस्कृति के निकट ले जाते हैं। मानव–जीवन में रिरते–नातों तथा संबंधों का बहुत महत्त्व है। प्रगति से हम भौतिक सुख तो पा सकते है, पर जाति और संतुष्टि नहीं। यशीधर बाबू के विचार और व्यवहार हमे संतुष्टि प्रदान करते हैं। मैँ प्रगति और परंपरा दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए व्यवहार करना चाहूँगा।

प्रश्न 5:
सामान्यतया लोग अपने बच्चों की आकर्षक आय यर गर्व करते है, यर यशीधर बाबूऐसी आय को गलत मानते हैँ।तेआपके विचार से इसके जया कारण हो सकते हैं? यदि आप यशोधर बाबू को जगह होते तो क्या करते?
उतार
यदि पैसा कमाने का साधन मर्यादित है तो उससे होने वाली आय पर सभी को गर्व होता है। यह आय यहि बच्चों की हो तो यह गवांनुभूति और भी बढ जाती है। यशीधर बाबू की परिस्थितियों इससे हटकर थी। वे सरकारी नौकरी करते थे, जहाँ उनका वेतन बहुत औरे–धीरे बहुल था। उनका वेतन जितना बढ़ता था, उससे अधिक महँगाई बढ़ जाती थी। इस कारण उनकी आय में हुईं बृदृधि का असर उनके चौवन–स्तर को सुधार नहीं पता था। नौकरी को आय के सहारे वे जैसे–भि गुजारा करते थे। समय का चक़ घूमा और यशोधर बाबू के बच्चे किसी बडी विज्ञापन अपनी में नौकरी पाकर रातों–रात मोटा वेतन कमाने लगे। यशीधर बाबू को इतनी मोटी तनख्वाह का  रहस्य समझ में नहीं आता था स्ने समझते थे कि इतनी मोटी तनख्वाह के पीछे कोई गलत काम अवश्य किया जा रहा है। उन्होंने सारा जीवन कम वेतन में जैसै–तैरने गुजारा था, जिससे इतनी शान–शौकत्त को पचा नहीं या रहैं के जं। उनके जैसे मानवीय मूल्य एवं परंपरा के पक्षधर व्यक्ति को बहुत कुछ सोचने पर विवश करती थी। यदि ये यशीधर यत् की जगह होता तो बच्चे को मोटी तनख्वाह पर शक करने की बजाय वास्तविकता जाने का सायास करता और अपनी सादगी तथा बच्ची की तड़क–भड़क–भरी जिदगी के चीज सामंजस्य बनाकर खुशी–रवुशी जीवन बिताने का प्रयास करता।

प्रश्न 6:
यशोधर बाबू अपने जीवन के आरंभिक दिनों से ही आत्मीय और परिवारिक जीवा–कैली के समर्थक थे। इससे आप कितना सहमत हैँ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यशोधर बाबू पहाड़ से रोटी…रोजी की तलाश में आए थे। तब उन्हें किशन दा के क्वार्टर में शरण मिली थी। किशन दा कुँआरे थे और पहाड़ से आए कितने ही लड़के ठीक टिकाना पाने से यहाँ रहते के मिलकर लाओ, खाओ–पकाओ। बाद में यशेधिर बबू की नौकरी भी किशन दा ने लगवाई। इतना ही नहीं, उन्होंने यशीधर बाबू को पचास रुपये भी दिए थे ताकि वे कपडे बनवा सके और घर रुपये भेज सके। इस प्रकार उन्हें जो आत्मीय और परिवारिक वातावरण मिला, उसका असर उनकी जीवा–शेली पर पड़ना ही था । इससे आगे चलकर उम्हें सहज परिवारिक जीवन की तलाश रहती थी, जिसमें वे अपनेपन से रह सके। इस अपनेपन की परिधि मे वे अपने परिवार के सदस्यों को ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों को भी शामिल करना चाहते थे। वे अपनी बहन की मदद किया करते थे तथा बहनोई से मिलने अहमदाबाद जाया करते थे। वे ऐसी ही अपेक्षा अपने बच्चों रने भी करते थे। यशोधर बाबू रिश्तों को निभाने में खुखानु१हीं करते थे, जबकि उनकी पत्नी और बच्चे इसे बोझ मानते थे तथा इसे मूर्खतापूर्ण कार्य कहते के यशोधर बाबू की आकांक्षा थी कि उनके बच्चे उन्हें अपना बुजुर्ग मने और वे परिवार का मुखिया बनकर रहैं। इससे स्पष्ट होता है कि यशंधिर बाबू आत्मीय और परिवारिक चौवन–शेली के समर्थक थे और इस जात से मैं सहमत हूँ।

 स्वयं करें 

प्रश्न
निम्नलिखित गन्याश क्रो पढकर पूछे गए मूल्यपरक प्रश्नों के उतार दीजिए

 

  1. यशोधर बाबू बात आगे बढाते लेकिन उनकी घरवाली उम्हें झिड़कते हुए आ पहुंची कि यया आज पूजा में ही बैठेरहोगे। यशेधिर बाबू आसन से उठे और उन्होंने दबे स्वर में पूल, “मेहमान गए? ” पत्नी ने बताया, “कुछ गए है, कुछ हैँ। ” उन्होंने जानना चाहा कि कौन–कौन हैं? आश्वस्त होने पर कि सभी रिश्तेदार ही है यह उसी लाल गमछे में बैठक में चले गए जिसे पहनकर वह संध्या करने बैठे थे। यह गमछा पहनने को आदत भी उन्हें किशन दा से विरासत में मित्रों है और उनके बच्चे इसके सख्त खिलाफ हैं।
    “एवरीबडी गान, पार्टी ओवर?” यशीधर बाबू ने मुसकृराकर अपनी बेटी रने पूछा , ” अब गोया गमछा पहने रखा जा सकता हैं?
    ” उनकी बेटी इरल्लाईं, “लोग चले गए, इसका मतलब यह थोडी है कि आप गमछा पहनकर बैठक में आ जाएँ। बच्चा, यू आर द लिमिटा ” “जेसी, हमें जिसमें सज आएगी वही करेंगे ना, तुम्हारी तरह जीन पहनकर हमें तो सज आती नहीं।”
    1. यशांधर बाबू काँ पत्नी के बात करने के ढ‘ग की आप कितना उक्ति मानते हैं? आपके विचार से वं एंसाव्यवहार क्यो‘ कर रहीं ?
    2. यशांधर बाबू के मुत्र-बंटाँ तथा यशांधर बाबू में आप क्या कभी महसूस करते हैं जो छोटों तथा की उनसेसामंजस्य नहीं बैठा पातै? इसके लिए किस बदलाव लाना चाहिए?
    3. अम यशांधर बाबू की जगह होते तो क्या करतै और वयां?
  2. ऐसी दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जो सैक्शन अक्तिसर वाई०डौ० पंत को अपने रोल मॉडल किशन दा सेउत्तराधिकार में मिली थी।
  3. ‘सिल्वर वैडिंग‘ कहानी को मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
    अथवा
    ‘सिल्वर वेडिंग‘ की मूल संवेदना बया है? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
  4. ‘सिल्चर वेडिंग‘ के कथानायक यशीधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व के स्वामी हैं और नयी पीढी दवारा उनके विचारोंकी अपनाना ही उचित है।–इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तके दीजिए।
  5. वया पीढी के अंतराल को “सिल्वर वेडिंग‘ की मूल मवेदना कहा जा सकता हैं? तके–सहित उत्तर दीजिए।
  6. सित्त्वर वैडिंग’ में एक और स्थिति को ज्यो–का–त्यों स्वीकार लेने का भाव है तो दूसरी और अनिर्णय की स्थितिभी है। कहानी के इस दूवदव को स्पष्ट कीजिए।
  7. ‘सिल्वर वेडिंग‘ कहानी के आधार पर पीढियों के अंतराल के कारणों यर प्रकाश डालिए। बया इस अंतराल कोकुछ पाटा जा सकता है? केसे? स्पष्ट कीजिए।
  8. “सिल्वर बैडिग‘ कहानी का कथ्य क्या है?

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