Advertisement

Sandhi, Sandhi Vichched, Paribhasha, Prakar, Udaharan संधि , संधि विच्छेद , परिभाषा , प्रकार , उदाहरण

संधि, संधि विच्छेद, संधि की परिभाषा, संधि के प्रकार, संधि के उदाहरण

संधि (Sandhi)

संधि की परिभाषा
दो वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
दूसरे अर्थ में- संधि का सामान्य अर्थ है मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द की रचना होती है, इसी को संधि कहते हैै।

Advertisement

सरल शब्दों में- दो शब्दों या शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनने पर उनके निकटवर्ती वर्णों में होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं।

संधि का शाब्दिक अर्थ है- मेल या समझौता। जब दो वर्णों का मिलन अत्यन्त निकटता के कारण होता है तब उनमें कोई-न-कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है।

Advertisement

संधि दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना ‘। हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा पूरे शब्दों को लिखने की परम्परा नहीं है। लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। संस्कृत की व्याकरण की परम्परा बहुत पुरानी है। संस्कृत भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण को पढना जरूरी है। शब्द रचना में भी संधियाँ काम करती हैं।

Sandhi

जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। अथार्त संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनती हैं तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।

Advertisement

संधि के उदाहरण :- हिमालय = हिम + आलय, सत् + आनंद =सदानंद।

संधि विच्छेद- 

संधि के पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद हैै।
जैसे- हिम + आलय= हिमालय (यह संधि है), अत्यधिक= अति + अधिक (यह संधि विच्छेद है)

  • यथा + उचित= यथोचित
  • यशः + इच्छा= यशइच्छ
  • अखि + ईश्वर= अखिलेश्वर
  • आत्मा + उत्सर्ग= आत्मोत्सर्ग
  • महा + ऋषि= महर्षि
  • लोक + उक्ति= लोकोक्ति

संधि के प्रकार या संधि के भेद (Sandhi Ke Prakar) :

संधि तीन प्रकार की होती हैं :-

Advertisement
  1. स्वर संधि (Swar Sandhi)
  2. व्यंजन संधि (Vyanjana Sandhi)
  3. विसर्ग संधि (Visarga Sandhi)

1. स्वर संधि क्या होती है :- 

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

स्वर संधि के उदाहरण :- विद्या + आलय = विद्यालय।

स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं :-

(क) दीर्घ संधि (Deergha Sandhi)

(ख) गुण संधि (Guna Sandhi)

(ग) वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi)

Advertisement

(घ) यण संधि (Yana Sandhi)

(ड)अयादि संधि (Ayadi Sandhi)

(क) दीर्घ संधि क्या होती है:- 

जब ( अ, आ ) के साथ ( अ, आ ) हो तो ‘ आ ‘ बनता है, जब ( इ, ई ) के साथ ( इ, ई ) हो तो ‘ ई ‘ बनता है, जब ( उ, ऊ ) के साथ ( उ, ऊ ) हो तो ‘ ऊ ‘ बनता है। अथार्त सूत्र – अक: सवर्ण – दीर्घ: मतलब अक प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दो मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में हम कहें तो जब दो सुजातीय स्वर आस – पास आते हैं तब जो स्वर बनता है उसे सुजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं, इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।

Advertisement

दीर्घ संधि के उदाहरण :- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ

  • पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
  • रवि + इंद्र = रविन्द्र
  • गिरी +ईश = गिरीश
  • मुनि + ईश =मुनीश
  • मुनि +इंद्र = मुनींद्र
  • भानु + उदय = भानूदय
  • वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
  • विधु + उदय = विधूदय
  • भू + उर्जित = भुर्जित।

अ + अ= आ अत्र + अभाव= अत्राभाव
कोण + अर्क= कोणार्क
अ + आ= आ शिव + आलय= शिवालय
भोजन + आलय= भोजनालय
आ + अ= आ विद्या + अर्थी= विद्यार्थी
लज्जा + अभाव= लज्जाभाव
आ + आ= आ विद्या + आलय= विद्यालय
महा + आशय= महाशय
इ + इ= ई गिरि + इन्द्र= गिरीन्द्र
इ + ई= ई गिरि + ईश= गिरीश
ई + इ= ई मही + इन्द्र= महीन्द्र
ई + ई= ई पृथ्वी + ईश= पृथ्वीश
उ + उ= ऊ भानु + उदय= भानूदय
ऊ + उ= ऊ स्वयम्भू + उदय= स्वयम्भूदय
ऋ + ऋ= ऋ पितृ + ऋण= पितृण

2. गुण संधि क्या होती है :- 

जब ( अ, आ ) के साथ ( इ, ई ) हो तो ‘ ए ‘ बनता है, जब ( अ, आ )के साथ ( उ, ऊ ) हो तो ‘ ओ ‘बनता है, जब ( अ, आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘ अर ‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।

गुण संधि के उदाहरण :-

  • नर + इंद्र + नरेंद्र
  • सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
  • ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
  • भारत + इंदु = भारतेन्दु
  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण

अ + इ= ए देव + इन्द्र= देवन्द्र
अ + ई= ए देव + ईश= देवेश
आ + इ= ए महा + इन्द्र= महेन्द्र
अ + उ= ओ चन्द्र + उदय= चन्द्रोदय
अ + ऊ= ओ समुद्र + ऊर्मि= समुद्रोर्मि
आ + उ= ओ महा + उत्स्व= महोत्स्व
आ + ऊ= ओ गंगा + ऊर्मि= गंगोर्मि
अ + ऋ= अर् देव + ऋषि= देवर्षि
आ + ऋ= अर् महा + ऋषि= महर्षि

3. वृद्धि संधि क्या होती है :- 

जब ( अ, आ ) के साथ ( ए, ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ, आ ) के साथ ( ओ, औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।

वृद्धि संधि के उदाहरण :-

  • मत+एकता = मतैकता
  • एक +एक =एकैक
  • धन + एषणा = धनैषणा
  • सदा + एव = सदैव
  • महा + ओज = महौज

अ + ए =ऐ एक + एक =एकैक
अ + ऐ =ऐ नव + ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य
आ + ए=ऐ महा + ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य
सदा + एव =सदैव
अ + ओ =औ परम + ओजस्वी =परमौजस्वी
वन + ओषधि =वनौषधि
अ + औ =औ परम + औषध =परमौषध
आ + ओ =औ महा + ओजस्वी =महौजस्वी
आ + औ =औ महा + औषध =महौषध

4. यण संधि क्या होती है :- 

जब ( इ, ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है, जब ( उ, ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है, जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं। (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए।

यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे यण संधि कहते हैं।

यण संधि के उदाहरण :-

  • इति + आदि = इत्यादि
  • परी + आवरण = पर्यावरण
  • अनु + अय = अन्वय
  • सु + आगत = स्वागत
  • अभी + आगत = अभ्यागत

(क) इ + अ= य यदि + अपि= यद्यपि
इ + आ= या अति + आवश्यक= अत्यावश्यक
इ + उ= यु अति + उत्तम= अत्युत्तम
इ + ऊ = यू अति + उष्म= अत्यूष्म
(ख) उ + अ= व अनु + आय= अन्वय
उ + आ= वा मधु + आलय= मध्वालय
उ + ओ = वो गुरु + ओदन= गुवौंदन
उ + औ= वौ गुरु + औदार्य= गुवौंदार्य
उ + इ= वि अनु + इत= अन्वित
उ + ए= वे अनु + एषण= अन्वेषण
(ग) ऋ + आ= रा पितृ + आदेश= पित्रादेश

5. अयादि संधि क्या होती है :- 

जब ( ए, ऐ, ओ, औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में, ‘ ऐ – आय ‘ में, ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य, व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।

अयादि संधि के उदाहरण :-

  • ने + अन = नयन
  • नौ + इक = नाविक
  • भो + अन = भवन
  • पो + इत्र = पवित्र

ए + अ= य ने + अन= नयन
ऐ + अ= य गै + अक= गायक
ओ + अ= व भो + अन= भवन
औ + उ= वु भौ + उक= भावुक

2. व्यंजन संधि क्या होती है :- 

व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

व्यंजन संधि के उदाहरण :-

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • अभी + सेक = अभिषेक

व्यंजन संधि के 13 नियम होते हैं :-

व्यंजन संधि का नियम (1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द्, और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे।

क् के ग् में बदलने के उदाहरण :-

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • वाक् +ईश = वागीश

च् के ज् में बदलने के उदाहरण :-

  • अच् +अन्त = अजन्त
  • अच् + आदि =अजादी

ट् के ड् में बदलन के उदाहरण :-

  • षट् + आनन = षडानन
  • षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
  • षड्दर्शन = षट् + दर्शन
  • षड्विकार = षट् + विकार
  • षडंग = षट् + अंग

त् के द् में बदलने के उदाहरण :-

  • तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
  • सदाशय = सत् + आशय
  • तदनन्तर = तत् + अनन्तर
  • उद्घाटन = उत् + घाटन
  • जगदम्बा = जगत् + अम्बा

प् के ब् में बदलने के उदाहरण :-

  • अप् + द = अब्द
  • अब्ज = अप् + ज

व्यंजन संधि का नियम (2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है।

क् के ङ् में बदलने के उदाहरण :-

  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
  • प्राङ्मुख = प्राक् + मुख

ट् के ण् में बदलने के संधि के उदाहरण :-

  • षट् + मास = षण्मास
  • षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • षण्मुख = षट् + मुख

त् के न् में बदलने के संधि के उदाहरण :-

  • उत् + नति = उन्नति
  • जगत् + नाथ = जगन्नाथ
  • उत् + मूलन = उन्मूलन

प् के म् में बदलने के संधि के उदाहरण :-

  • अप् + मय = अम्मय

व्यंजन संधि का नियम (3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।

म् + के संधि के उदाहरण :-

  • सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
  • सम् + ख्या = संख्या
  • सम् + गम = संगम
  • शंकर = शम् + कर

म् + , , , , के संधि के उदाहरण :-

  • सम् + चय = संचय
  • किम् + चित् = किंचित
  • सम् + जीवन = संजीवन

म् + , , , , के उदाहरण :-

  • दम् + ड = दण्ड/दंड
  • खम् + ड = खण्ड/खंड

म् + , , , , के संधि के उदाहरण :-

  • सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
  • किम् + नर = किन्नर
  • सम् + देह = सन्देह

म् + , , , , के उदाहरण :-

  • सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
  • सम् + भव = सम्भव/संभव

त् + , , , , , ,, , व् के उदाहरण :-

  • सत् + भावना = सद्भावना
  • जगत् + ईश =जगदीश
  • भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
  • तत् + रूप = तद्रूपत
  • सत् + धर्म = सद्धर्म

व्यंजन संधि का नियम (4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।

+ , , , व्, , , , के उदाहरण :-

  • सम् + रचना = संरचना
  • सम् + लग्न = संलग्न
  • सम् + वत् = संवत्
  • सम् + शय = संशय

त् + , , , , , के उदाहरण :-

  • उत् + चारण = उच्चारण
  • सत् + जन = सज्जन
  • उत् + झटिका = उज्झटिका
  • तत् + टीका =तट्टीका
  • उत् + डयन = उड्डयन
  • उत् +लास = उल्लास

व्यंजन संधि का नियम (5) जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • उत् + चारण = उच्चारण
  • शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
  • उत् + छिन्न = उच्छिन्न

त् + श् के संधि के उदाहरण :-

  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
  • सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

व्यंजन संधि का नियम (6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • सत् + जन = सज्जन
  • जगत् + जीवन = जगज्जीवन
  • वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार

त् + के संधि के उदाहरण :-

  • उत् + हार = उद्धार
  • उत् + हरण = उद्धरण
  • तत् + हित = तद्धित

व्यंजन संधि का नियम (7) स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • तत् + टीका = तट्टीका
  • वृहत् + टीका = वृहट्टीका
  • भवत् + डमरू = भवड्डमरू

, , , , , , + के संधि के उदाहरण :-

  • स्व + छंद = स्वच्छंद
  • आ + छादन =आच्छादन
  • संधि + छेद = संधिच्छेद
  • अनु + छेद =अनुच्छेद

व्यंजन संधि का नियम (8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • उत् + लास = उल्लास
  • तत् + लीन = तल्लीन
  • विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा

म् + च्, , , , के संधि के उदाहरण :-

  • किम् + चित = किंचित
  • किम् + कर = किंकर
  • सम् +कल्प = संकल्प
  • सम् + चय = संचयम
  • सम +तोष = संतोष
  • सम् + बंध = संबंध
  • सम् + पूर्ण = संपूर्ण

व्यंजन संधि का नियम (9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है।

उदाहरण :-

  • उत् + हार = उद्धार/उद्धार
  • उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
  • पद् + हति = पद्धति

म् + के संधि के उदाहरण :-

  • सम् + मति = सम्मति
  • सम् + मान = सम्मान

व्यंजन संधि का नियम (10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है।

उदाहरण :-

  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • उत् + शृंखल = उच्छृंखल
  • शरत् + शशि = शरच्छशि

म् + , , व्,, , , के संधि के उदाहरण :-

  • सम् + योग = संयोग
  • सम् + रक्षण = संरक्षण
  • सम् + विधान = संविधान
  • सम् + शय =संशय
  • सम् + लग्न = संलग्न
  • सम् + सार = संसार

व्यंजन संधि का नियम (11) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है।

उदाहरण :-

  • आ + छादन = आच्छादन
  • अनु + छेद = अनुच्छेद
  • शाला + छादन = शालाच्छादन
  • स्व + छन्द = स्वच्छन्द

र् + , के संधि के उदाहरण :-

  • परि + नाम = परिणाम
  • प्र + मान = प्रमाण

व्यंजन संधि का नियम (12) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • वि + सम = विषम
  • अभि + सिक्त = अभिषिक्त
  • अनु + संग = अनुषंग

भ् + स् के संधि के उदाहरण :-

  • अभि + सेक = अभिषेक
  • नि + सिद्ध = निषिद्ध
  • वि + सम + विषम

व्यंजन संधि का नियम (13)यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है।

संधि के उदाहरण :-

  • राम + अयन = रामायण
  • परि + नाम = परिणाम
  • नार + अयन = नारायण
  • संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
  • तद् + पर = तत्पर
  • सद् + कार = सत्कार

3. विसर्ग संधि क्या होती है :-

विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

संधि के उदाहरण :-

  • मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
  • नि:+अक्षर = निरक्षर
  • नि: + पाप =निष्पाप

विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं :-

विसर्ग संधि के का नियम (1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।

संधि के उदाहरण :-

मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ; अधः + गति = अधोगति ; मनः + बल = मनोबल

  • निः + चय = निश्चय
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
  • निः + छल = निश्छल

विच्छेद

  • तपश्चर्या = तपः + चर्या
  • अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
  • हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
  • अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु

विसर्ग संधि के का नियम (2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।

  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • यशः + शरीर = यशश्शरीर
  • निः + शुल्क = निश्शुल्क

विच्छेद

  • निश्श्वास = निः + श्वास
  • चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
  • निश्शंक = निः + शंक
  • निः + आहार = निराहार
  • निः + आशा = निराशा
  • निः + धन = निर्धन

विसर्ग संधि के का नियम (3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • चतुः + टीका = चतुष्टीका
  • चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
  • निः + चल = निश्चल
  • निः + छल = निश्छल
  • दुः + शासन = दुश्शासन

विसर्ग संधि के का नियम (4) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।

  • निः + कलंक = निष्कलंक
  • दुः + कर = दुष्कर
  • आविः + कार = आविष्कार
  • चतुः + पथ = चतुष्पथ
  • निः + फल = निष्फल

विच्छेद

  • निष्काम = निः + काम
  • निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
  • बहिष्कार = बहिः + कार
  • निष्कपट = निः + कपट
  • नमः + ते = नमस्ते
  • निः + संतान = निस्संतान
  • दुः + साहस = दुस्साहस

विसर्ग संधि के का नियम (5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।

  • अधः + पतन = अध: पतन
  • प्रातः + काल = प्रात: काल
  • अन्त: + पुर = अन्त: पुर
  • वय: क्रम = वय: क्रम

विच्छेद

  • रज: कण = रज: + कण
  • तप: पूत = तप: + पूत
  • पय: पान = पय: + पान
  • अन्त: करण = अन्त: + करण

अपवाद

  • भा: + कर = भास्कर
  • नम: + कार = नमस्कार
  • पुर: + कार = पुरस्कार
  • श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
  • बृह: + पति = बृहस्पति
  • पुर: + कृत = पुरस्कृत
  • तिर: + कार = तिरस्कार
  • निः + कलंक = निष्कलंक
  • चतुः + पाद = चतुष्पाद
  • निः + फल = निष्फल

विसर्ग संधि के का नियम (6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।

  • अन्त: + तल = अन्तस्तल
  • नि: + ताप = निस्ताप
  • दु: + तर = दुस्तर
  • नि: + तारण = निस्तारण

विच्छेद

  • निस्तेज = निः + तेज
  • नमस्ते = नम: + ते
  • मनस्ताप = मन: + ताप
  • बहिस्थल = बहि: + थल
  • निः + रोग = निरोग
  • निः + रस = नीरस

विसर्ग संधि के का नियम (7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।

  • नि: + सन्देह = निस्सन्देह
  • दु: + साहस = दुस्साहस
  • नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
  • दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न

विच्छेद

  • निस्संतान = नि: + संतान
  • दुस्साध्य = दु: + साध्य
  • मनस्संताप = मन: + संताप
  • पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
  • अंतः + करण = अंतःकरण

विसर्ग संधि के का नियम (8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।

  • नि: + रस = नीरस
  • नि: + रव = नीरव
  • नि: + रोग = नीरोग
  • दु: + राज = दूराज

विच्छेद

  • नीरज = नि: + रज
  • नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
  • चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
  • दूरम्य = दु: + रम्य

विसर्ग संधि के का नियम (9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।

  • अत: + एव = अतएव
  • मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
  • पय: + आदि = पयआदि
  • तत: + एव = ततएव

विसर्ग संधि के का नियम (10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।

  • मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
  • सर: + ज = सरोज
  • वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
  • यश: + धरा = यशोधरा
  • मन: + योग = मनोयोग
  • अध: + भाग = अधोभाग
  • तप: + बल = तपोबल
  • मन: + रंजन = मनोरंजन

विच्छेद

  • मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
  • मनोहर = मन: + हर
  • तपोभूमि = तप: + भूमि
  • पुरोहित = पुर: + हित
  • यशोदा = यश: + दा
  • अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र

अपवाद

  • पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
  • पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
  • पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
  • पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
  • अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
  • अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
  • अन्त: + यामी = अन्तर्यामी

हिन्दी की स्वतंत्र संधियाँ

उपर्युक्त तीनों संधियाँ संस्कृत से हिन्दी में आई हैं। हिन्दी की निम्नलिखित छः प्रवृत्तियोंवाली संधियाँ होती हैं-

(1) महाप्राणीकरण (2) घोषीकरण (3) ह्रस्वीकरण (4) आगम (5) व्यंजन-लोपीकरण और (6) स्वर-व्यंजन लोपीकरण

इसे विस्तार से इस प्रकार समझा जा सकता है-

(क) पूर्व स्वर लोप : दो स्वरों के मिलने पर पूर्व स्वर का लोप हो जाता है। इसके भी दो प्रकार हैं-

(1) अविकारी पूर्वस्वर-लोप : जैसे- मिल + अन =मिलन
छल + आवा =छलावा

(2) विकारी पूर्वस्वर-लोप : जैसे- भूल + आवा =भुलावा
लूट + एरा =लुटेरा

(ख) ह्रस्वकारी स्वर संधि : दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड का अंतिम स्वर ह्रस्व हो जाता है। इसकी भी दो स्थितियाँ होती हैं-

1. अविकारी ह्रस्वकारी : जैसे- साधु + ओं= साधुओं
डाकू + ओं= डाकुओं

2. विकारी ह्रस्वकारी :
जैसे- साधु + अक्कड़ी= सधुक्कड़ी
बाबू + आ= बबुआ

(ग) आगम स्वर संधि : इसकी भी दो स्थितियाँ हैं-

1. अविकारी आगम स्वर : इसमें अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं होता।
जैसे- तिथि + आँ= तिथियाँ
शक्ति + ओं= शक्तियों

2. विकारी आगम स्वर: इसका अंतिम स्वर विकृत हो जाता है।
जैसे- नदी + आँ= नदियाँ
लड़की + आँ= लड़कियाँ

(घ) पूर्वस्वर लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाया करता है।
जैसे- तुम + ही= तुम्हीं
उन + ही= उन्हीं

(ड़) स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है।
जैसे- कुछ + ही= कुछी
इस + ही= इसी

(च) मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है।
जैसे- वह + ही= वही
यह + ही= यही

(छ) पूर्व स्वर ह्रस्वकारी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड का प्रथम वर्ण ह्रस्व हो जाता है।
जैसे- कान + कटा= कनकटा
पानी + घाट= पनघट या पनिघट

(ज) महाप्राणीकरण व्यंजन संधि:- यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ‘ब’ हो तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ हो तो ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है।
जैसे- अब + ही= अभी
कब + ही= कभी
सब + ही= सभी

(झ) सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड के अनुनासिक स्वरयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है।
जैसे- जहाँ + ही= जहीं
कहाँ + ही= कहीं
वहाँ + ही= वहीं

(ञ) आकारागम व्यंजन संधि:- इसमें संधि करने पर बीच में ‘आकार’ का आगम हो जाया करता है।
जैसे- सत्य + नाश= सत्यानाश
मूसल + धार= मूसलाधार

हिंदी की संधियां
स्वर संधि
दीर्घ संधि
गुण संधि
वृद्धि संधि
यण संधि
अयादि संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
हिंदी की संधियों का विस्तार से वर्णन और उदाहरण

स्वर संधि विच्छेद के उदाहरण

(अ, आ)

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
अभ्युदयअभि +उदयइ + उ= यु (यण)
अत्याचारअति+आचारइ + आ= या (यण)
अन्वेषणअनु +एषणउ + ए= वे (यण)
अभ्यागतअभि +आगतइ + आ= या (यण)
अभीष्टअभि + इष्टइ + इ= ई (दीर्घ)
अत्यन्तअति + अन्तइ + अ= य (यण)
अधीश्र्वरअधि + ईश्र्वरइ + ई= ई (दीर्घ)
आद्यन्तआदि+अन्तइ + अ= य (यण)
अत्युत्तमअति+उत्तमइ +उ= यु (यण)
अतीवअति + इवइ + इ= ई (दीर्घ)
अन्यान्यअन्य + अन्यअ + अ= आ (दीर्घ)
असुरालयअसुर + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
आनन्दोत्सवआनंद + उत्सवअ + उ= ओ (गुण)
आशातीतआशा + अतीतआ + अ= आ (दीर्घ)
अन्वीक्षणअनु + ईक्षणउ + ई= वी (यण)
अन्नाभावअन्न + अभावअ + अ= आ (दीर्घ)
अक्षौहिणीअक्ष + ऊहिणीअ + ऊ= औ (यण)
अल्पायुअल्प + आयुअ + अ= आ (दीर्घ)
अनावृष्टिअन + आवृष्टिअ + इ= य (दीर्घ)
अत्यावश्यकअति + आवश्यकइ + अ= य (यण)
अत्युष्मअति +उष्मइ + अ= य (यण)
अनुपमेयअन् + उपमेयअ + इ= य (दीर्घ)
अन्योक्तिअन्य + उक्तिअ + इ= य (दीर्घ)
अधीश्वरअधि + ईश्वरइ + ई= ई (दीर्घ)

(इ, उ, ए)

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
इत्यादिइति + आदिइ + आ= या (यण)
ईश्वरेच्छाईश्वर + इच्छाअ + इ= ए (गुण)
उपेक्षाउप + ईक्षाअ + ई= ए (गुण)
उर्मिलेशउर्मिला + ईशआ + ई= ए (गुण)
ऊहापोहऊह + अपोहऊ + अ= आ (दीर्घ)
उत्तरायणउत्तर + अयनअ + अ= आ (दीर्घ)
उपर्युक्तउपरि + उक्तइ + उ= यु (यण)
उमेशउमा + ईशआ + ई= ए (गुण)
एकैकएक + एकअ + ए= ऐ (वृद्धि)
एकांकीएक + अंकीअ + अ= आ (दीर्घ)
एकाननएक + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
एकेश्वरएक + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
ऐतयारण्यकऐतरेय + आरण्यकअ + आ= आ (दीर्घ)

( क, ख )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
कमलेशकमल + ईशअ + ई= ए (गुण)
कपीशकपि + ईशइ + ई= ई (दीर्घ)
करुणामृतकरुण + अमृतअ + अ= आ (दीर्घ)
कामान्धकाम + अन्धअ + अ= आ (दीर्घ)
कामारिकाम + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
कृपाचार्यकृपा + आचार्यआ + आ= आ (दीर्घ)
कृपाकांक्षीकृपा + आकांक्षीआ + आ= आ (दीर्घ)
कृष्णानन्दकृष्ण + आनंदअ + आ= आ (दीर्घ)
केशवारिकेशव + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
कोमलांगीकोमल + अंगीअ + अ= आ (दीर्घ)
कंसारिकंस + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
कवीन्द्रकवि + इन्द्रइ + इ= ई (दीर्घ)
कवीशकवि + ईशइ + ई= ई (दीर्घ)
कल्पान्तकल्प + अन्तअ + अ= आ (दीर्घ)
कुशासनकुश + आसनअ + आ= आ (दीर्घ)
कुलटाकुल + अटानिपात से संधि
कर्णोद्धारकर्ण + उद्धारअ + उ= ओ (गुण)
कौरवारिकौरव + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
केशान्तकेश + अन्तअ + अ= आ (दीर्घ)
खगेश्वरखग + ईश्वरअ + ई ए (गुण)
खगेशखग + ईशअ + अ= ए (गुण)
खगेन्द्रखग + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)

( ग, घ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
गंगोदकगंगा + उदकआ + उ= ओ (गुण)
गजेन्द्रगज + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
गत्यवरोधगति + अवरोधइ + अ= य (यण)
गायकगै + अकऐ + अ= आय (अयादि)
गायिकागै + इकाऐ + इ= आयि (अयादि)
ग्रामोद्धारग्राम + उद्धारअ + उ= ओ (गुण)
गिरीशगिरि + ईशइ + ई= ई (दीर्घ)
गजाननगज + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
गणेशगण + ईशअ + ई= ए (गुण)
गिरीन्द्रगिरि + इन्द्रइ + इ= ई (दीर्घ)
ग्रामोद्योगग्राम + उद्योगअ + उ= ओ (गुण)
गुरूपदेशगुरु + उपदेशउ + उ= ऊ (दीर्घ)
गायनगै + अनऐ + अ= आय (अयादि)
गत्यात्मकतागति + आत्मकताइ + आ= या (यण)
गंगौघगंगा + ओघआ + ओ= औ (वृद्धि)
गंगोर्मिगंगा + ऊर्मिआ + ऊ= ओ (गुण)
गीतांजलिगीत + अंजलिअ + अ= आ (दीर्घ)
गंगैश्वर्यगंगा + ऐश्वर्यआ + ऐ= ऐ (वृद्धि)
गवाक्षगो + अक्षओ + अ= व
गीत्युपदेशगीति + उपदेशइ + उ=यु (यण)
गेयात्मकतागेय + आत्मकताअ + आ= आ (दीर्घ)
गोत्राध्यायगोत्र + अध्यायअ + अ= आ (दीर्घ)
गौर्यादेशगौरी + आदेशई + आ= या (यण)
गंगेशगंगा + ईशआ + ई= ए (गुण)
गुरवेगुरो + ए
गृहौत्सुक्यगृह + औत्सुक्यअ + औ= औ (वृद्धि)
गव्यमगो + यम्ओ + य= 
घनानंदघन + आनंदअ + आ= आ (दीर्घ)
घनान्धकारघन + अन्धकारअ + अ= आ (दीर्घ)

( च, छ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
चतुराननचतुर + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
चन्द्राकारचन्द्र + आकारअ + आ= आ (दीर्घ)
चतुराननचतुर + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
चन्द्राकारचन्द्र + आकारअ + आ= आ (दीर्घ)
चन्द्रोदयचन्द्र + उदयअ + उ= ओ (गुण)
चरणायुधचरण + आयुधअ + आ= आ (दीर्घ)
चरणामृतचरण + अमृतअ + अ= आ (दीर्घ)
चरणारविंदचरण + अरविंदअ + अ= आ (दीर्घ)
चमूत्साहचमू + उत्साहऊ + उ= ऊ (दीर्घ)
चयनचे + अनए + अ= अय (अयादि)
चरित्रांकनचरित्र + अंकनअ + अ= आ (दीर्घ)
चिरायुचिर + आयुअ + आ= आ (दीर्घ)
चिन्तोन्मुक्तचिन्ता + उन्मुक्तआ + उ= ओ (गुण)
छात्रावस्थाछात्र + अवस्थाअ + अ= आ (दीर्घ)
छात्रावासछात्र + आवासअ + आ= आ (दीर्घ)

( ज, झ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
जलौघजल + ओघअ + ओ= औ (वृद्धि)
जलाशयजल + आशयअ + आ= आ (दीर्घ)
जन्मान्तरजन्म + अन्तरअ + अ= आ (दीर्घ)
जनाश्रयजन + आश्रयअ + आ= आ (दीर्घ)
जनकांगजाजनक + अंगजाअ + अ= आ (दीर्घ)
जलोर्मिजल + उर्मिअ + ऊ= ओ (गुण)
जन्मोत्सवजन्म + उत्सवअ + उ= ओ (गुण)
जानकोशजानकी + ईशई + ई= ई (दीर्घ)
जितेन्द्रियजित + इन्द्रियअ + इ= ए (गुण)
जीर्णांचलजीर्ण + अंचलअ + अ= आ (दीर्घ)
जिह्वाग्रजिह्वा + अग्रआ + अ= आ (दीर्घ)
झंझानिलझंझा + अनिलआ + अ= आ (दीर्घ)
झण्डोत्तोलनझंडा + उत्तोलनआ + उ= ओ (गुण)
टिकैतटिक + ऐतअ + ऐ=ऐ (वृद्धि)
डिम्बोद्घोषडिम्ब + उद्घोषअ + उ= ओ (गुण)

( त, थ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
तथागततथा + आगतआ + आ= आ (दीर्घ)
तथापितथा + अपिआ + अ= आ (दीर्घ)
तथैवतथा + एवआ + ए= ऐ (वृद्धि)
तिमिराच्छादिततिमिर + आच्छादितअ + आ= आ (दीर्घ)
तारकेश्वरतारक + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
तारकेशतारक + ईशअ + ई= ए (गुण)
तपेश्वरतप + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
तमसाच्छन्नतमस + आच्छन्नअ + आ= आ (दीर्घ)
तिमिरारितिमिर + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
तुरीयावस्थातुरीय + अवस्थाअ + अ= आ (दीर्घ)
तुषारावृत्ततुषार + आवृत्तअ + आ= आ (दीर्घ)
त्रिगुणातीतत्रिगुण + अतीतअ + अ= आ (दीर्घ)
थानेश्वरथाना + ईश्वरआ + ई= ए (गुण)

( द )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
दर्शनार्थदर्शन + अर्थअ + अ= आ (दीर्घ)
दावाग्निदाव + अग्निअ + अ= आ (दीर्घ)
दावानलदाव + अनलअ + अ= आ (दीर्घ)
देवर्षिदेव + ऋषिअ + ऋ= अर् (गुण)
देवेशदेव + ईशअ + ई= ए (गुण)
देवेन्द्रदेव + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
देवागमनदेव + आगमनअ + आ= आ (दीर्घ)
देव्यागमदेवी + आगमई + आ= या (यण)
दूतावासदूत + आवासअ + आ= आ (दीर्घ)
देशाटनदेश + अटनअ + अ= आ (दीर्घ)
दीपावलीदीप + अवलीअ + अ= आ (दीर्घ)
द्रोणाचार्यद्रोण + आचार्यअ + आ= आ (दीर्घ)
दंडकारण्यदंडक + अरण्यअ + अ= आ (दीर्घ)
दक्षिणायनदक्षिण + अयनअ + अ= आ (दीर्घ)
दध्योदनदधि + ओदनइ + ओ= यो (यण)
दर्शनेच्छादर्शन + इच्छाअ + इ= ए (गुण)
दशाननदश + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
दयानंददया+ आनंदआ + आ= आ (दीर्घ)
दानवारिदानव + अरिअ + अ=आ (दीर्घ)
दासानुदासदास + अनुदासअ + अ=आ (दीर्घ)
दिनांकदिन + अंकअ + अ=आ (दीर्घ)
दिनांतदिन + अन्तअ + अ=आ (दीर्घ)
दिव्यास्त्रदिव्य + अस्त्रअ + अ=आ (दीर्घ)
दीक्षान्तदीक्षा + अन्तआ + अ= आ (दीर्घ)
दीपोत्सवदीप + उत्सवअ + उ= ओ (गुण)
दूरागतदूर + आगतअ + आ= आ (दीर्घ)
देवालयदेव + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
देवांगनादेव + अंगनाअ + अ= आ (दीर्घ)
देवोत्थानदेव + उत्थानअ + उ= ओ (गुण)
देशांतरदेश + अन्तरअ + अ=आ (दीर्घ)
दैत्यारिदैत्य + अरिअ + अ=आ (दीर्घ)
द्वाराकाधीशद्वारका + अधीशआ + अ= आ (दीर्घ)
दर्शनाचार्यदर्शन + आचार्यअ + आ= (दीर्घ)
दुग्धाहारदुग्ध + आहारअ + आ= आ (दीर्घ)
देवांशुदेव + अंशुअ + अ= आ (दीर्घ)

( ध )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
धर्माधिकारीधर्म + अधिकारीअ + अ=आ (दीर्घ)
धर्मांधधर्म + अन्धअ + अ=आ (दीर्घ)
धर्मात्माधर्म + आत्माअ + आ= आ (दीर्घ)
धर्मोपदेशधर्म + उपदेशअ + उ= ओ (गुण)
धर्मार्थधर्म + अर्थअ + अ= आ (दीर्घ)
धनेशधन + ईशअ + इ=ए (गुण)
धनाधीशधन + अधीशअ + अ= आ (दीर्घ)
धनादेशधन + आदेशअ + आ= आ (दीर्घ)
घनानंदघन + आनंदअ + आ= आ (दीर्घ)
धर्माधर्मधर्म + अधर्मअ + अ=आ (दीर्घ)
धर्माचार्यधर्म + आचार्यअ + आ= आ (दीर्घ)
धर्मावतारधर्म + अवतारअ + अ= आ (दीर्घ)
धारोष्णधारा + ऊष्णआ + ऊ= ओ (गुण)
धीरोदात्तधीर + उदात्तअ + उ= ओ (गुण)
धीरोद्धतधीर + उद्धतअ + उ= ओ (गुण)
धूमाच्छन्नधूम + आच्छन्नअ + आ= आ (दीर्घ)
ध्वजोत्तोलनध्वजा + उत्तोलनआ + उ= ओ (गुण)
ध्वन्यर्थध्वनि + अर्थइ + अ= य (यण)
ध्वन्यात्मकध्वनि + आत्मकइ + आ= या (यण)
धावकधौ + अकऔ + अ= आव (अयादि)

( न )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
नागेन्द्रनाग + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
नागेशनाग + ईशअ + ई= ए (गुण)
नरेशनर + ईशअ + ई= ए (गुण)
नरेन्द्रनर + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
नदीशनदी + ईशई + ई= ई (दीर्घ)
नयनने + अनए + अ= अय (अयादि)
नायकनै + अकऐ + अ= आय (अयादि)
नायिकानै + इकाऐ + इ= आयि (अयादि)
नवोदयनव + उदयअ + उ= ओ (गुण)
नारायणनर + अयनअ + अ= आ (दीर्घ)
नारीश्वरनारी + ईश्वरई + ई= ई (दीर्घ)
निरानंदनिरा + आनंदआ + आ= आ (दीर्घ)
नीचाशयनीच + आशयअ + आ= आ (दीर्घ)
नीलांबरनील + अम्बरअ + अ= आ (दीर्घ)
नीलांजलनील + अंजलअ + अ= आ (दीर्घ)
नीलोत्पलनील + उत्पलअ + उ= ओ (गुण)
न्यूननि + ऊनइ + ऊ= यू (यण)
नयनाम्बुनयन + अम्बुअ + अ= आ (दीर्घ)
नयनाभिरामनयन + अभिरामअ + अ= आ (दीर्घ)
नवोढ़ानव + ऊढ़ाअ + ऊ= ओ (गुण)
नाविकनौ + इकऔ + इ आवि (अयादि)
न्यायालयन्याय + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
न्यायाधीशन्याय + अधीशअ + आ= आ (दीर्घ)
नक्षत्रेशनक्षत्र + ईशअ + ई= ए (गुण)
नृत्यालयनृत्य + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
निम्नांकितनिम्न + अंकितअ + अ= आ (दीर्घ)
निम्नानुसारनिम्न + अनुसारअ + आ= आ (दीर्घ)

( प )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
पंचाननपंच + आननअ + आ= आ (दीर्घ)
पंचामृतपंच + अमृतअ + अ= आ (दीर्घ)
पंचाग्निपंच + अग्निअ + अ= आ (दीर्घ)
पत्राचारपत्र + आचारअ + आ= आ (दीर्घ)
पदोन्नतिपद + उन्नतिअ + उ= ओ (गुण)
परमार्थपरम + अर्थअ + अ= आ (दीर्घ)
परमौषधपरम + औषधअ + औ= औ (वृद्धि)
परमौषधिपरम + ओषधिअ + ओ= औ (वृद्धि)
परीक्षापरि + ईक्षाइ + ई= ई (दीर्घ)
परोपकारपर+ उपकारअ + उ= ओ (गुण)
परीक्षार्थीपरीक्षा + अर्थीआ + अ= आ (दीर्घ)
पवनपो + अनओ + अ=अव (अयादि)
पावनपौ + अनऔ + अ= आव (अयादि)
पावकपौ + अकऔ + अ= आव (अयादि)
पवित्रपो + इत्रओ + इ= अवि (अयादि)
पदाक्रांतपद + आक्रांतअ + आ= आ (दीर्घ)
पदाधिकारीपद + अधिकारीअ + अ= आ (दीर्घ)
पदावलिपद + अवलिअ + अ= आ (दीर्घ)
पद्माकरपद्म + आकरअ + अ= आ (दीर्घ)
परार्थपर + अर्थअ + अ= आ (दीर्घ)
परमेश्वरपरम + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
पराधीनपर + अधीनअ + अ= आ (दीर्घ)
परमात्मापरम + आत्माअ + आ= आ (दीर्घ)
पर्वतेश्वरपर्वत + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
पश्चिमोत्तरपश्चिम + उत्तरअ + उ= ओ (गुण)
पाठान्तरपाठ + अन्तरअ + अ= आ (दीर्घ)
पित्रादेशपितृ + आदेशऋ + आ= रा (यण)
पीताम्बरपीत + अम्बरअ + अ= आ (दीर्घ)
पुंडरीकाक्षपुंडरीक + अक्षअ + अ= आ (दीर्घ)
पुण्यात्मापुण्य + आत्माअ + आ= आ (दीर्घ)
पुस्तकालयपुस्तक + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
पुरुषोत्तमपुरुष + उत्तमअ + उ= ओ (गुण)
पूर्वानुरागपूर्व + अनुरागअ + अ= आ (दीर्घ)
पूर्वोदयपूर्व + उदयअ + उ= ओ (गुण)
प्रांगणप्र + आंगणअ + आ= आ (दीर्घ)
प्रत्ययप्रति + अयइ + अ= य (यण)
प्रत्युत्तरप्रति + उत्तरइ + उ= यु (यण)
प्रत्येकप्रति + एकइ + ए= ये (यण)
प्रत्युपकारप्रति + उपकारइ + उ= यु (यण)
प्रत्यक्षप्रति + अक्षइ + अ= य (यण)
प्रोत्साहनप्र + उत्साहनअ + उ= ओ (गुण)
पुष्पोद्यानपुष्प + उद्यानअ + उ= ओ (गुण)
पृथ्वीशपृथ्वी + ईशई + ई= ई (दीर्घ)
प्राणाधारप्राण + आधारअ + आ= आ (दीर्घ)
प्राणेश्वरप्राण + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
पश्वादिपशु + आदिउ + अ= वा (यण)
पश्वधमपशु + अधमउ + अ= व (यण)
परमौदार्यपरम + औदार्यअ + औ= औ (वृद्धि)
प्राचार्यप्र + आचार्यअ + आ= आ (दीर्घ)
प्राध्यापकप्र + अध्यापकअ + आ= आ (दीर्घ)
प्रधानाचार्यप्रधान + आचार्यअ + आ= आ (दीर्घ)

( फ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
फणीन्द्रफणी + इन्द्रई + इ= ई (दीर्घ)
फलेच्छाफल + इच्छाअ + इ= ए (गुण)
फलाहारफ़ल + आहारअ + आ= आ (दीर्घ)
फलादेशफल + आदेशअ + आ= आ (दीर्घ)
फलाकांक्षाफल + आकांक्षाअ + आ= आ (दीर्घ)
फलोदयफल + उदयअ + उ= ओ (गुण)
फेनोज्ज्वलफेन + उज्ज्वलअ + उ= ओ (गुण)
फलाफलफल + अफलअ + अ= आ (दीर्घ)
फलागमफल + आगमअ + आ= आ (दीर्घ)

( ब )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
बद्धानुरागबद्ध + अनुरागअ + अ= आ (दीर्घ)
बहुलांशबहुल + अंशअ + अ= आ (दीर्घ)
बालेन्द्रबाल + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
ब्रजेशब्रज + ईशअ + ई= ए (गुण)
बह्मर्षिब्रह्म + ऋषिअ + ऋ=अर (गुण)
ब्रह्मचर्याश्रमब्रह्मचर्य + आश्रमअ + आ= आ (दीर्घ)
ब्रह्मास्त्रब्रह्म + अस्त्रअ + आ= आ (दीर्घ)
बिम्बौष्ठबिम्ब + ओष्ठअ + ओ= औ (वृद्धि)

( भ )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
भवनभो + अनओ + अ= अव (अयादि)
भानूदयभानु + उदयउ + उ= ऊ (दीर्घ)
भोजनालयभोजन +आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
भाग्योदयभाग्य + उदयअ + उ= ओ (गुण)
भद्रासनभद्र + आसनअ + आ= आ (दीर्घ)
भयातुरभय + आतुरअ + आ= आ (दीर्घ)
भवेशभव + ईशअ + इ= ए (गुण)
भावावेशभाव + आवेशअ + आ= आ (दीर्घ)
भावान्तरभाव + अन्तरअ + अ= आ (दीर्घ)
भाषान्तरभाषा + अन्तरआ + अ= आ (दीर्घ)
भावुकभौ + उकऔ + उ= आवु (अयादि)
भूर्ध्वभू + ऊर्ध्वऊ + ऊ= ऊ (दीर्घ)
भुजगेन्द्रभुजग + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
भुवनेश्वरभुवन + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
भूतेशभूत + ईशअ + ई= ए (गुण)
भूतेश्वरभूत + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)

( म )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
मतानुसारमत + अनुसारअ + आ= आ (दीर्घ)
मदिरालयमदिरा + आलयआ + आ= आ (दीर्घ)
मंदाग्निमंद + अग्निअ + अ= आ (दीर्घ)
मदांधमद + अंधअ + अ= आ (दीर्घ)
मदोन्मत्तमद + उन्मत्तअ + उ= ओ (गुण)
मध्यांतरमध्य + अन्तरअ + अ= आ (दीर्घ)
मतैक्यमत + ऐक्यअ + ऐ= ऐ (वृद्धि)
महोत्सवमहा + उत्सवआ + उ= ओ (गुण)
महर्षिमहा + ऋषिआ + ऋ= अर् (गुण)
महाशयमहा + आशयआ + आ= आ (दीर्घ)
महात्मामहा + आत्माआ + आ= आ (दीर्घ)
मरणासन्नमरण + आसन्नअ + आ= आ (दीर्घ)
मरणोपरान्तमरण + उपरान्तअ + उ= ओ (गुण)
मल्लिकार्जुनमल्लिक + अर्जुनअ + आ= आ (दीर्घ)
मलयानिलमलय + अनिलअ + अ=आ (दीर्घ)
महेन्द्रमहा + इन्द्रआ + इ= ए (गुण)
महेशमहा + ईशआ + ई= ए (गुण)
महीश्वरमही + ईश्वरई + ई= ई (दीर्घ)
मध्वाचार्यमधु + आचार्यउ + आ= वा (यण)
मातृणमातृ + ऋणऋ + ऋ= ऋ (दीर्घ)
महैश्वर्यमहा + ऐश्वर्यआ + ऐ=ऐ (वृद्धि)
मुनीशमुनि + ईशइ = ई = ई (दीर्घ)
मुनीन्द्रमुनि + इन्द्रइ + इ= ई (दीर्घ)
मुखाकृतिमुख + आकृतिअ + आ= आ (दीर्घ)
मुखाग्निमुख + अग्निअ + अ= आ (दीर्घ)
महोदयमहा + उदयआ + उ= ओ (गुण)
महोपदेशमहा + उपदेशआ + उ= ओ (गुण)
महौजमहा + ओजआ + ओ= औ (वृद्धि)
महौषधमहा + औषधआ + औ= औ (वृद्धि)
मेघाच्छन्नमेघ + आच्छन्नअ + आ= आ (दीर्घ)
मन्वंतरमनु + अन्तरउ + अ= व (यण)
मध्वासवमधु + आसवउ + आ= वा (यण)
मध्यावकाशमध्य + अवकाशअ + अ= आ (दीर्घ)
मार्तण्डमार्त + अण्डअ + अ= आ (दीर्घ)
मृगेन्द्रमृग + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
मृगांकमृग + अंकअ + अ= आ (दीर्घ)
मात्रानंदमातृ + आनंदऋ + आ= रा (यण)

( य )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
यथेष्टयथा + इष्टआ + इ= ए (गुण)
यथोचितयथा +उचितआ + उ= ओ (गुण)
यद्यपियदि + अपिइ + अ= य (यण)
यज्ञाग्नियज्ञ + अग्निअ + आ= आ (दीर्घ)
यज्ञोपवीतयज्ञा + उपवीतअ + उ= ओ (गुण)
योगेन्द्रयोग + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)

( र )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
रक्ताभरक्त + आभअ + आ= आ (दीर्घ)
रमेशरमा+ईशआ + ई= ए (गुण)
रमेन्द्ररमा + इन्द्रआ + इ= ए (गुण)
रसास्वादनरस + आस्वादनअ + आ= आ (दीर्घ)
रजनीशरजनी + ईशई + ई= ई (दीर्घ)
रवींद्ररवि + इंद्रइ + इ= ई (दीर्घ)
रवीशरवि + ईशइ + ई= ई (दीर्घ)
रत्नाकररत्न + आकरअ + आ= आ (दीर्घ)
रसात्मकरस + आत्मकअ + आ= आ (दीर्घ)
रसानुभूतिरस + अनुभूतिअ + अ= आ (दीर्घ)
रसाभासरस + आभासअ + आ= आ (दीर्घ)
राकेशराका + ईशआ + ई= ए (गुण)
राजर्षिराजा + ऋषिआ + ऋ= अर (गुण)
रामायणराम + अयनअ + आ= आ (दीर्घ)
राजेन्द्रराजा + इन्द्रआ + इ= ए (गुण)
रामावतारराम + अवतारअ + अ= आ (दीर्घ)
रामाधारराम + आधारअ + आ= आ (दीर्घ)
राजाज्ञाराजा + आज्ञाआ + आ= आ (दीर्घ)
राघवेन्द्रराघव + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
राज्याभिषेकराज्य + अभिषेकअ + अ= आ (दीर्घ)
रामेश्वरराम + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
रावणेश्वररावण + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
रत्नावलीरत्न + अवलीअ + आ= आ (दीर्घ)
रूद्राक्षरूद्र + अक्षअ + अ= आ (दीर्घ)
रेखांकितरेखा + अंकितअ + अ= आ (दीर्घ)
रेखांशरेखा + अंशअ + अ= आ (दीर्घ)
रोमावलिरोम + अवलिअ + अ= आ (दीर्घ)
रावणरौ + अनऔ + अ= आव (अयादि)
रामानन्दराम + आनंदअ + आ= आ (दीर्घ)

( ल )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
लघूर्मिलघु + ऊर्मिउ + ऊ= ऊ (दीर्घ)
लम्बोदरलम्ब + उदरआ + उ= ओ (गुण)
लोकोत्तरलोक + उत्तर
लंकेश्वरलंका + ईश्वरआ + ई= ए (गुण)
लघ्वाहारलघु + आहारउ + आ= वा (यण)
लाटानुप्रासलाट + अनुप्रासअ + आ= आ (दीर्घ)
लिंगानुशासनलिंग + अनुशासनअ + अ= आ (दीर्घ)
लोकोक्तिलोक + उक्तिअ + उ= ओ (गुण)
लोकेशलोक + ईशअ + ई= ए (गुण)
लोकायतनलोक + आयतनअ + आ= आ (दीर्घ)
लीलागारलीला + आगारआ + आ= आ (दीर्घ)
लोपामुद्रालोप + आमुद्राअ + आ= आ (दीर्घ)
लोहिताश्वलोहित + अश्वअ + अ= आ (दीर्घ)
लेखाधिकारीलेखा + अधिकारीआ + अ= आ (दीर्घ)
लुप्तोपमालुप्त + उपमाअ + उ= ओ (गुण)
लोकाधिपतिलोक + अधिपतिअ + अ= आ (दीर्घ)
लोकोत्तरलोक + उत्तरअ + उ= ओ (गुण)
लोटालृ + ओटालृ + ओ= लो (यण)

( व )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
वंशांकुरवंश + अंकुरअ + अ= आ (दीर्घ)
वंशानुक्रमवंश + अनुक्रमअ + अ= आ (दीर्घ)
वघूत्सववघू + उत्सवऊ + उ= ऊ (दीर्घ)
वज्रांगवज्र + अंगअ + अ= आ (दीर्घ)
वज्राघातवज्र + आघातअ + आ= आ(दीर्घ)
वज्रायुधवज्र + आयुधअ + आ= आ (दीर्घ)
वनोत्सववन + उत्सवअ + उ= ओ (गुण)
व्यर्थवि + अर्थइ + अ= य (यण)
वसंतोत्सववसंत + उत्सवअ + उ= ओ (गुण)
वसुधैववसुधा + एवआ + ए= ऐ (वृद्धि)
वार्तालापवार्ता + आलापआ + आ= आ (दीर्घ)
वामेश्वरवाम + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
व्यापकवि + आपकइ + आ= या (यण)
व्याप्तवि + आप्तइ + आ= या (यण)
व्याकुलवि + आकुलइ + आ= या (यण)
व्यायामवि + आयामइ + आ= या (यण)
व्याधिवि + आधिइ + आ= या (यण)
व्याघातवि + आघातइ + आ= या (यण)
व्युत्पत्तिवि + उत्पत्तिइ + उ= यु (यण)
व्यूहवि + ऊहइ + ऊ= यू (यण)
विद्योपार्जनविद्या + उपार्जनआ + उ= ओ (गुण)
विधूदयविधु + उदयउ + उ= ऊ (दीर्घ)
विकासोन्मुखविकास + उन्मुखअ + उ= ओ (गुण)
विजयेच्छाविजय + इच्छाअ + इ= ए (गुण)
विचारोचितविचार + उचितअ + उ= ओ (गुण)
विकलांगविकल + अंगअ + अ= आ (दीर्घ)
वीरांगनावीर + अंगनाअ + अ= आ (दीर्घ)
वेदान्तवेद + अन्तअ + अ= आ (दीर्घ)
वेदाध्ययनवेद + अध्ययनअ + अ= आ (दीर्घ)
वनौषधिवन + ओषधिअ + ओ= औ (वृद्धि)
वध्वागमनवधू + आगमनऊ + आ= वा (यण)
वध्वैश्वर्यवधू + ऐश्वर्यऊ + ऐ= वै (यण)
वस्त्रालयवस्त्र + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
वर्णनातीतवर्णन + अतीतअ + अ= आ (दीर्घ)
वर्णाश्रमवर्ण + आश्रमअ + आ= आ (दीर्घ)
वर्गाकारवर्ग + आकारअ + आ= आ (दीर्घ)

( श )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
शताब्दीशत + अब्दीअ + अ= आ (दीर्घ)
शकारिशक + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
शब्दालंकारशब्द + अलंकारअ + अ= आ (दीर्घ)
शयनशे + अनए + अ= अय (अयादि)
शरणागतशरण + आगतअ + आ= आ (दीर्घ)
शरणार्थीशरण + अर्थीअ + अ= आ (दीर्घ)
शायकशै + अकऐ + अ= आप (अयादि)
शावकशौ + अकऔ + अ= आव (अयादि)
शास्त्रानुसारशास्त्र + अनुसारअ + अ= आ (दीर्घ)
शास्त्रार्थशास्त्र + अर्थअ + अ= आ (दीर्घ)
शिष्टाचारशिष्ट + आचारअ + आ= आ (दीर्घ)
शिवालयशिव + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
शिलासनशिला + आसनआ + आ= आ (दीर्घ)
शिक्षालयशिक्षा + आलयआ + आ= आ (दीर्घ)
शिक्षार्थीशिक्षा + अर्थीआ + अ= आ (दीर्घ)
शिवेन्द्रशिव + इन्द्रअ + इ= ए (गुण)
शिवाम्बुशिव + अम्बुअ + अ= आ (दीर्घ)
शुद्धोदनशुद्ध + ओदनअ + ओ= 
शुभारंभशुभ + आरंभअ + आ= आ (दीर्घ)
शुभ्रांशुशुभ + अंशुअ + आ= आ (दीर्घ)
शुभेच्छाशुभ + इच्छाअ + इ= ए (गुण)
श्वेताम्बरश्वेत + अम्बरअ + अ= आ (दीर्घ)
श्रवणश्रो + अनओ + अ= अव (अयादि)
श्रावणश्रौ + अनऔ + अ= आव (अयादि)
श्लोकाबद्धश्लोक + आबद्धअ + आ= आ (दीर्घ)
षोड्शोपचारषोड्श + उपचारअ + उ= ओ (गुण)
सत्याग्रहसत्य+आग्रहअ + आ= आ (दीर्घ)
सभाध्यक्षसभा + अध्यक्षअ + अ= आ (दीर्घ)
सावधानस + अवधानअ + अ= आ (दीर्घ)
स्वल्पसु + अल्पउ + अ= व (यण)

( ह )

संधिपदविच्छेदजिन स्वरों में संधि हुई
हरीशहरि + ईशइ + ई= ई (दीर्घ)
हर्षोल्लासहर्ष + उल्लासअ + उ= ओ (गुण)
हताशहत + आशअ + आ= आ (दीर्घ)
हरिणाक्षीहरिण + अक्षीअ + अ= आ (दीर्घ)
हताहतहत + आहतअ + आ= आ (दीर्घ)
हितोपदेशहित + उपदेशअ + उ= ओ (गुण)
हिमालयहिम + आलयअ + आ= आ (दीर्घ)
हितैषीहित + ऐषीअ + ऐ= ऐ (वृद्धि)
हीनावस्थाहीन + अवस्थाअ + अ= आ (दीर्घ)
हास्यास्पदहास्य + आस्पदअ + आ= आ (दीर्घ)
क्षुधातुरक्षुधा + आतुरआ + आ= आ (दीर्घ)
त्रिपुरारित्रिपुर + अरिअ + अ= आ (दीर्घ)
त्रिभुजाकारत्रिभुज + आकारअ + आ= आ (दीर्घ)
ज्ञानेशज्ञान + ईशअ + ई= ए (गुण)
ज्ञानेश्वरज्ञान + ईश्वरअ + ई= ए (गुण)
ज्ञानांजनज्ञान + अंजनअ + अ= आ (दीर्घ)
ज्ञानेन्द्रियज्ञान + इन्द्रियअ + इ= ए (गुण)
क्षुद्रात्माक्षुद्र + आत्माअ + आ= आ (दीर्घ)
क्षुधार्त्तक्षुधा + आर्त्तआ + आ= आ (दीर्घ)

हिंदी की संधियां
स्वर संधि
दीर्घ संधि
गुण संधि
वृद्धि संधि
यण संधि
अयादि संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
हिंदी की संधियों का विस्तार से वर्णन और उदाहरण

Advertisement

Leave a Reply