एक बारहसिंगा था। उसकी केवल ही एक आंख थी। एक आंख होने के कारण उसके साथ समस्या यह थी कि दूसरी ओर क्या हो रहा है, इसका उसे पता नहीं चलता था।
चूंकि वह केवल एक ओर से ही अपनी सुरक्षा कर सकता था, इसलिए वह सदा ही डरा रहता। उसे लगता कि कोई न कोई खतरा हर समय सिर पर मंडराता रहता है और इत्तफाक ही है कि मैं आज तक बचता आया हूं।
वह जब भी जंगल में चर रहा होता तो अकसर भूखा ही रहता, क्योंकि जरा सी आहट पर ही वह भाग खड़ा होता था। अतः इस समस्या से बचने के लिए उसने एक उपाय खोज निकाला। वह नदी के किनारे-किनारे घूम कर घास चरने लगा।
उसने अपना चेहरा इस प्रकार रखा था कि उसकी बंद आंख नदी की ओर रहे। उसका विश्वास था कि इस प्रकार वह मैदानी इलाके की ओर निगाह रख सकेगा और शिकारियों आदि के हमले से खुद को सुरक्षित रख पाएगा।
जहां तक नदी की ओर से खतरे का प्रश्न था, तो उसका विचार था कि इधर से उस पर कोई हमला नहीं हो सकता।
मगर कहते हैं कि मृत्यु जब आती है तो चाहे उसे रोकने की लाख कोशिश की जाए, मगर वह रूकती नहीं।
परंतु उसका विचार गलत था। कुछ शिकारियों ने जो नावों में यात्रा कर रहे थे, उसे घास चरते देख लिया, बारहसिंगा उन्हें नहीं देख सका। बस, एक शिकारी ने तीर चलाया, जो बारहसिंगे की गरदन से पार हो गया।
मरते हुए बारहसिंगे ने शिकारियों को देखा और सोचने लगा- ‘जिस नदी की ओर से मैंने अपनी आंखें फेर ली थी, यह सोच कर कि वह सुरक्षित है, वही मेरी मृत्यु का कारण बनी।’
निष्कर्ष- सभी ओर से सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि खतरा अक्सर ऐसे स्थानों से आता है, जिसे हम सुरक्षित समझते हैं।