एक बार जंगल में एक पेड़ पर एक कौआ बैठा था। सामने ही हरी-भरी चरागाह में कुछ भेड़ें और मेमने चर रहे थे। तभी उड़ता हुआ एक उकाब आया। थोड़ी देर तक वह पंख फैलाए आकाश में मंडराता रहा। फिर नीचे की ओर आकर मेमनों के झुण्ड पर झपटा और एक मोटे ताजे मेमने केा उठाकर ले गया।
कौआ यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया। वह उकाब को उस समय तक देखता रहा, जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गया। उसके लिए उकाब का करतब बहुत ही रोमांचकारी था। वह उसके बारे में सोच-सोचकर इतना उत्तेजित हो गया कि उसने स्वयं भी उकाब के समान ही शिकार करने का निश्चय कर लिया।
उसने मन ही मन सोचा कि जब उकाब ऐसा कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता। यह सोचकर वह हरी-भरी चरागाह की ओर उड़ चला।
कुछ ही देर में वह चरागाह में चर रही भेड़ों के सिर पर आकाश में उड़ने लगा और फिर किसी उकाब के समान ही वह एक बड़ी सी भेड़ पर लपटा। वह यह भूल गया कि उसके पंजे उतने शक्तिशाली नहीं थे, जितने उकाब के होते हैं। नतीजा यह हुआ कि उसके पंजे भेड़ के बालों में फंस गए। उसने बहुत प्रयत्न किया अपने पंजों को भेड़ के बालों से निकालने का, मगर सफल नहीं हुआ। अंत में चरवाहा आया तभी उसने उसके पंजे भेड़ के बालों से निकाले। चरवाहे ने कौए को आजाद करके उसे इतनी जोर से जकड़ लिया कि बेचारा उड़ नहीं सकता था।
चरवाहा कौए को घर लाया और उसके पंख काट दिए। अब बिना पंखों का कौआ उसके बच्चों का खिलौना बन गया। बच्चे उस कौए के इर्द-गिर्द जमा होकर तरह तरह के सवाल पूछते- ”पिताजी, यह कौन सा पक्षी है? इसका नाम क्या है?“
चरवाहा इन सवालों के उत्तर में हंसकर कहता- ”अगर इससे पूछोगे तो यह कहेगा कि मैं उकाब हूं। जबकि असलियत यह है कि यह मात्र एक कौआ है।“
शिक्षा – अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करना चाहिए।