वे नफरत के व्यापारी हैं साज़िश के पापड़ बेलेंगे
वे जितनी गोली दागेंगे हम उतने नाटक खेलेंगे
हैं दिल में बेहद डरे हुए काले कानूनों के निर्माता
वे जितना हमको रोकेंगे हम उतने ज़्यादा फैलेंगे
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उनके हाथों में बन्दूकें उनकी फितरत में हिंसा है
हम कब तक चुप रह पाएंगे हम कब तक उनको झेलेंगे
अब गोलबन्द होना होगा करना होगा प्रतिरोध हमें
जो ताकत हमने दी उनको वो ताकत वापस ले लेंगे
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हम ऐसे ही चुपचाप रहे तो नंगे होकर नाचेंगे
”सुगम”सोच लो ज़ुल्मों के वे डंड यहीं पर पेलेंगे
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