आदमी में बहुत कुछ होता है
थोडा पेड़, थोड़ी घास, थोड़ी मिट्टी,
थोड़ा वसंत
थोड़ा सूखा, थोड़ी बाढ़
इस दुनिया में ऐसा कुछ नहीं
जो आदम के भीतर न हो
ऐसा कोई भाव नहीं, ऐसा कोई रस नहीं
ऐसा कोई फूल, ऐसी कोई गन्ध नहीं
आदमी में सब मिलता है
आदमी में सब खिलता है
आदमी सबमें मिलता है
आदमी सबमें खिलता है
वो स्वाद, वो मेघ, वो बूँदें, वो नदी,
वो समन्दर, वो पहाड़
वो हिरन से लेकर शेर तक से लगाव
वसंत आदमी का अपने होने से प्यार है
वसंत हमारे अस्तित्व का प्यारा गहन स्वीकार है
वसंत हमारे जिन्दा होने की गवाही है
वसंत हर दुःख से सुख की उगाही है
वसंत यूँ उगता है चेतना के संसार में
जैसे धरती डूब गयी हो सूरज के प्यार में
वसंत हमारी अनकही अभिलाषा है
वसंत बार बार लगातार ज़िन्दगी की आशा है
वसंत की लय बस यूं ही बंधी रहे
ज़िन्दगी में भूख, गम, कष्ट से दूरी रहे
हर गम की लड़ाई का जवाब हो वसंत
मेरे तुम्हारे मिलने का त्यौहार हो वसंत
संध्या जी हिन्दी की ख्याति प्राप्त कवियित्री एवं लेखिका हैं और समसामयिक विषयों पर अपनी राय बेबाकी से व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं। उनके फेसबुक पेज के लिए यहाँ से जाएँ – https://www.facebook.com/sandhya.navodita