Udhar ke pankh Rochak bal katha
किसी जंगल में एक कौआ रहता था। पूरा जंगल तरह-तरह के रंगीन पक्षियों से भरा पड़ा था। मगर पूरे जंगल में एक यही कौआ था- बिल्कुल काला भुजंग। कौआ भी अपने काले रंग के प्रति बहुत सचेत रहता था। अपने काले रंग के कारण वह हीनभावना से ग्रस्त रहता था। अपनी इस भावना से छुटकारा पाने के लिए उसने एक दिन तरह-तरह के पक्षियों के जंगल में इधर-उधर पड़े हुए पंख बटोरे। उसने वे सभी रंगीन पंख अपने शरीर में लगा लिए। उसने अपना इतना बनाव-श्रृगांर किया कि लगता था संसार की कोई अति सुंदर चिड़िया जंगल में आ गई हो।
अब काला कौआ अपने नए रूप में जंगल के अन्य पक्षियों के साथ-साथ घूमने लगा। वे पक्षी भी, जो उससे प्रतिदिन मिलते थे, उसे पहचान नहीं पाए। वे उससे बहुत अधिक प्रभावित दिख रहे थे। ऐसा आदर पाकर काला कौआ घमण्ड से चूर हो गया और सभी के सामने अकड़ कर चलने लगा। वह हमेशा गर्व में भरकर उछलता-कूदता रहता। एक दिन पक्षियों को अपनी ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखते हुए देखकर वह बोला- ”मेरा विचार है, यह स्थान मेरे रहने योग्य नहीं है। जरा मेरे रंग-रूप और मेरी प्राकृतिक छठा को देखो और अपने को देखो। भला मेरा तुम्हारा क्या मुकाबला……उ हूं।“
काले कौए की इस अशोभनीय बातों से जंगल के सभी पक्षी क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने मिलकर इस पर आक्रमण कर दिया।
उन्होंने उसके रंगीन पंख नोचने आरम्भ कर दिए।
कुछ देर बाद ही काले कौए के रंगीन पंखों के साथ उसके अपने पंख भी उखड़ गए। काला कौआ लहूलुहान हो गया। सभी पक्षी उसे घायल अवस्था में छोड़कर चले गए।
मरते-मरते काले कौए ने कहा- ‘आह! कितना अच्छा होता, अगर मैं अपना मुंह बंद रखता और अनाप-शनाप नहीं बोलता।’
निष्कर्ष- अनाप-शनाप बोलना हमेशा दुखदायी होता है।