Vasant Ritu par laghu nibandh
प्रस्तावना- भारत महान है। इसकी प्राकृतिक शोभा निराली है। उत्तर में हिमालय पर्वत और दक्षिण में उसके चरणों को पखारता सागर बहुत ही मनोरम है। यहाँ एक के बाद अनेक ऋतुएँ भारत को अपनी शोभा प्रदान करती हैं। ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शिशिर ऋतु, हेमन्त ऋतु, शरद ऋतु और इन सब ऋतुओं की सरताज वसन्त ऋतु जन जीवन में आनंद घोलती है।
ऋतुराज वसन्त- छः ऋतुओं का प्राकृतिक सौंदर्य संसार के किसी अन्य देश को प्राप्त नहीं है। उत्तरी धु्रवों में बारह महीने सर्दी रहती है। अफ्रीका में गर्मी ही गर्मी होती है। पर हमारे देश में सारी ऋतुएँ अपने साथ नया आनंद और खुशी लेकर आती हैं। पर वसन्त इन सारी ऋतुओं का राजा है। इसीलिए इसे ‘ऋतुराज’ वसन्त कहते हैं। बसन्त ऋतु की शोभा वास्तव में निराली है।
वसन्त का आगमन- बसन्त ऋतु से पहले होता है शिशिर का मौसम। शिशिर ऋतु में पेड़ पौधों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं। बसन्त आते ही प्रकृति में नया जीवन आ जाता है। प्रकृति का आँचल नई नई कोंपलों, कोमल कोमल पत्तों रंग बिरंगे फूलों और फलों से भर जाता है। बागों में कोयल कूकने लगती है। सरसों के खेत पीले पीले फूलों से खिल उठते हैं। आमों की मंजरियों से आम के पेड़ लहरा उठते हैं। चम्पा, चमेली, गुलाब, गैंदा- अनेक प्रकार के फूल, रंग बिरंगे फूल प्रकृति की शोभा बढ़ा देते हैं। सुगंधित हवा के झोंके मन को प्रसन्न कर देते हैं।
बसन्त ऋतु का वर्णन- बसन्त ऋतु की शोभा का वर्णन अनेक कवियों ने किय है। एक कवि ने तो बसन्त को महत्व का नाम दिया है। उन्होंने बसन्त की शोभा के वर्णन में जो कविता लिखी है, उसका शीर्षक ही रखा है-
आए महन्त बसन्त।
होली- होली का त्योहार भी बसन्त ऋतु में आता है। मस्ती भरा यह त्योहार बसन्त की मस्ती को और बढ़ा देता है। होली की स्थापना बसन्त पंचमी के दिन होती है। लोग ईंधन डाल डालकर इसे बढ़ाते रहते हैं और फाल्गुन की पूर्णमासी को होलिका दहन किया जाता है।
बसन्त आते ही सचमुच प्रकृति आनंद से झूम उठती है। उसकी शोभा इतनी बढ़ जाती है कि उसका वर्णन करना सरल कार्य नहीं होता। चारों ओर नया जीवन जाग उठता है। जड़ पदार्थों में चेतना आ जाती है। चारों ओर का मादक वातावरण मन में उल्लास भर देता है।
हिन्दी के प्रसिद्ध कविवर सेनापति ने ऋतु राज बसन्त का बहुत सुन्दर चित्रण किया है। उनकी लिखी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
चहकि चकारे उठे, करि करि जोर उठे।
टेर उठीं सारिका, विनोद उपजावने।
चटकि गुलाब उठे, लटकि सरोज पुंज।
खटकि भराल रितुराज सुनि आवने।।