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छत्रपति शिवाजी पर लघु निबंध Short Essay on Chtarpati Shivaji in Hindi

Chtarpati Shivaji par laghu nibandh

प्रस्तावना- आवश्यकता आविष्कार की जननी है। जब आवश्यकता होती है तो उसे पूरा करने का कोई न कोई साधन भी मिल जाता है। इसी प्रकार जब देश और समाज में अत्याचार बढ़ जाते हैं तो उन्हें दूर करने वाला कोई न कोई वीर अवश्य जन्म लेता है। मुग़ल अत्याचार बढ़ रहे थे। हिन्दुओं से कर लिया जाता था। उन्हें अपमानित किया जाता था। राजपूत राजा भी बहुत कमजोर थे। उनमें मुग़ल बादशाहों का मुकाबला करने की शक्ति नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में हिन्दू धर्म के रक्षक शिवाजी का जन्म हुआ था।Short Essay on Chtarpati Shivaji

जन्म- शिवाजी का जन्म सन् 1672 ई. में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। यह स्थान पूना में है। इनके पिता जी का नाम शाहजी भौंसला था। वे बीजापुर रियासत में एक ऊँचे सैनिक पद पर नियुक्त थे। इनकी माता का नाम जीजाबाई था। वह साध्वी, सदाचारिणी और गुणवती स्त्री थीं।

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पालन-पोषण- शिवाजी का पालन-पोषण जीजाबाई ने किया था। वह शिवाजी को महापुरूषों की कथाएँ सुनाती थीं। उसने धर्म और जाति की रक्षा का भाव शिवाजी में कूट कूट कर भर दिया था। शिवाजी पर उनकी माता की शिक्षाओं का बहुत प्रभाव पड़ा।

बाल्य काल- शिवाजी ने बचपन से ही तीर-तलवार चलाना, भाले बरछे चलाना, घुड़सवारी करना और नकली युद्ध करना शुरू कर दिया था। उनके दादा कोंडदेव ने इस युद्ध कौशल और शासन प्रबंध में निपुण कर दिया था। 19 वर्ष की छोटी सी आयु में शिवाजी ने बीजापुर के आस पास के कई किले जीत लिए थे।

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अफज़ल खाँ की हत्या- शिवाजी की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए बीजापुर के शासक ने अपने सेनापति अफज़ल खाँ को भेजा। अफज़ल खाँ ने शिवाजी को पकड़ने का प्रयत्न किया, पर वह इसमें सफल नहीं हुआ। अफज़ल खाँ ने छल कपट से शिवाजी को पकड़ने की चाल चली। शिवाजी को इसका पता चल गया। उन्होंने अफज़ल खाँ पर छुरे से वार कर उसे मार गिराया।

शिवाजी की शक्ति को कुचलने के लिए औरंगजेब ने अपने सेनापति शाइस्ता खाँ को भेजा। शिवाजी ने उसे भी मार दिया। औरंगजेब ने इस बार अपने सेनापति जयसिंह को भेजा। जयसिंह के कहने पर शिवाजी आगरा जाने के लिए तैयार हो गए। वहाँ औरंगजेब ने उन्हें बन्दी बना लिया, पर शिवाजी बड़ी चतुराई से औरंगजेब के बन्दी गृह से भाग गए।

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शिवाजी ने आगरा से लौटकर बहुत से और प्रदेश जीत लिए। उन्होंने सन् 1676 में अपना राज्य तिलक करवाया। रायगढ़ को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। सन् 1680 ई. में 53 वर्ष की आयु में रायगढ़ में ही उनका निधन हो गया।

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