श्लेष अलंकार Shlesh Alankar :-
इस अलंकार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनके एक नहीं वरन् अनेक अर्थ हों। श्लिष्ट पदों से अनेक अर्थों के कथन को ‘श्लेष’ कहते है। ‘श्लेष’ का अर्थ होता है- मिला हुआ, चिपका हुआ। जिस शब्द में एकाधिक अर्थ हों, उसे ही श्लेष अलंकार कहते हैं।
इनमें दो बातें आवश्यक है- (क) एक शब्द के एक से अधिक अर्थ हो (ख) एक से अधिक अर्थ प्रकरण में अपेक्षित हों।
श्लेष अलंकार का उदाहरण example of Shlesh Alankar in Hindi
माया महाठगिनि हम जानी।
तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
यहाँ ‘तिरगुन’ शब्द में शब्द श्लेष की योजना हुई है। इसके दो अर्थ है- तीन गुण-सत्त्व, रजस्, तमस्। दूसरा अर्थ है- तीन धागोंवाली रस्सी।
ये दोनों अर्थ प्रकरण के अनुसार ठीक बैठते है, क्योंकि इनकी अर्थसंगति ‘महाठगिनि माया’ से बैठायी गयी है।
श्लेष अलंकार का दूसरा उदाहरण
चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।
यहाँ ‘वृषभानुजा’ और ‘हलधर’ श्लिष्ट शब्द हैं, जिनसे बिना आवृत्ति के ही भित्र-भित्र अर्थ निकलते हैं। ‘वृषभानुजा’ से ‘वृषभानु की बेटी’ (राधा) और ‘वृषभ की बहन’ (गाय) का तथा ‘हलधर के बीर’ से कृष्ण (बलदेव के भाई) और साँड़ (बैल के भाई) का अर्थ निकलता है।
श्लेष के भेद Shlesh Alankar ke bhed (Types)
श्लेष के दो भेद होते है- (1) अभंग श्लेष Abhang Shlesh (2) सभंग श्लेष Sabhang Shlesh
अभंग श्लेष में शब्दों को बिना तोड़े अनेक अर्थ निकलते हैं किंतु सभंग श्लेष में शब्दों को तोड़ना आवश्यक हो जाता है। यथा-
अभंग श्लेष का उदाहरण example of Abhang Shlesh Alankar in Hindi –
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।। -रहीम
यहाँ ‘पानी’ अनेकार्थक शब्द है। इसके तीन अर्थ होते हैं- कांति, सम्मान और जल। पानी के ये तीनों अर्थ उपर्युक्त दोहे में हैं और पानी शब्द को बिना तोड़े हैं; इसलिए ‘अभंग श्लेष’ अलंकार हैं।
सभंग श्लेष का उदाहरण example of Sabhang Shlesh Alankar in Hindi
सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित। -तुलसीदास
यहाँ ‘सखर’ का अर्थ कठोर तथा दूसरा अर्थ खरदूषण के साथ (स+खर) है। यह दूसरा अर्थ ‘सखर’ को तोड़कर किया गया है, इसलिए यहाँ ‘सभंग श्लेष’ अलंकार है।
अलंकार की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
श्लेष अलंकार के उदाहरण
श्लेष अलंकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
चरण धरत चिंता करत,
फिर चितवत चहुँ ओर।
‘सुबरन’ को ढूढत फिरत,
कवि, व्यभिचारी, चोर।।
ऊपर दिए गए दोहे कि दूसरी पंक्तियों में में सुबरन शब्द का प्रयोग किया गया है।जिसे तीन व्यक्ति ढूंढते हैं।जो कवि व्यभिचारी और चोर हैं और सभी व्यक्तियों के लिए सुबरन का अर्थ यहां पर अलग-अलग है।
●कवि सुबरन अर्थात अच्छे शब्द
●व्यभिचारी सुबरन अर्थात अच्छा रूपरंग
●चोर सुबरन अर्थात स्वर्ण ढूंढ रहा है।
- मंगन को देखि पट देत बार-बार हैं।
ऊपर दी गयी पंक्तियों में पट शब्द के दो अर्थ है।
पट -वस्त्र।
पट- किवाड़।
इस वजह से यहां पर श्लेष अलंकार हैं।
■ विमाता बन गयी आंधी भयावह।
हुवा चंचल न फिर भी श्यामधन वह।।
ऊपर दी गयी पंक्तियों में श्यामधन के दो अर्थ है। एक श्यामधन का अर्थ है – राम, दूसरे श्यामधन का अर्थ है। बादल। इस कारण से इन पंक्तियों में श्लेष अलंकार हैं।
श्लेष अलंकार के अन्य उदाहरण
श्लेष अलंकार के उदाहरण अन्य उदाहरण निम्नलखित हैं।
■ मधुबन की छाती को देखो,
सूखी कितनी इसकी कलियां।।
ऊपर दी गयी पंक्ति में कलियां शब्द के दो अर्थ हैं पहला कलिया शब्द का अर्थ है – खिलने से पूर्व फूल की दशा दूसरी कलियां शब्द का अर्थ है -यौवन से फके की अवस्था।इस वजह से इन पंक्तियों में श्लेष अलंकार हैं।
जो रहीम गति दिप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय।।
ऊपर दी पक्ति में बारे और बढ़े दो शब्द हैं। जिनके दो अलग अलग अर्थ है।
बारे – बचपन मे, जलाने में।
बढ़े- बड़ा होने पर, बुझने में।
■ को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर।
ऊपर दी गयी पक्ति में वृषभानुजा और हलधर में श्लेष अलंकार हैं। वृषभानुजा का अर्थ है- राधा, बैल की बहन।
इस कारण से इन पंक्तियों में श्लेष अलंकार हैं।