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मन्द -मन्द आवत चल्यो कुंजरू कुंज समीर।। में कौन सा अलंकार है?

मन्द -मन्द आवत चल्यो कुंजरू कुंज समीर।। में कौन सा अलंकार है?

ranit bhrug ghantavali jharit dan madhuneer mand mand aavat chalyo kunjru kunj sameer mein kaun sa alankar hai

रनित भृग घन्टावली झरित दान मधुनीर। मन्द -मन्द आवत चल्यो कुंजरू कुंज समीर।।

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इस पंक्ति में यमक अलंकार है , जब काव्य में किसी पद की आवृति हो और आवृत शब्द का अर्थ अलग अलग हो तो वहाँ यमक अलंकार होता है। इस काव्य पंक्तिके कुंजरू में यमक अलंकार है। कुंजरूँ शब्द के दो अर्थ है- हाथी और कुंज अर्थात लता।

प्रस्तुत पंक्ति में यमक अलंकार का भेद:

इस पंक्ति में सभंग पद यमक अलंकार है। कुंजरू के उच्चारण और लिखावट में अंतर के कारण इसमें सभंग पद यमक अलंकार है।

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यमक अलंकार का अन्य उदाहरण:

आप यमक अलंकार को अच्छी तरह से समझ सकें इसलिए यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं:

‘ ऊंचे घोर मंदर के रहनवारी ऊंचे घोर मंदर में रहाती है। ‘’

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मालाफेरत जग मुआ मिटा न मन का फेर। कर का मनका छोड़ के मन का मनका फेर.। इस पंक्ति में मनका शब्द की आवृति हुई है और दोनों बार अलग अलग अर्थमें प्रयुक्त हुआ है। अतः; यह यमक अलंकार का उदाहरण है।

काव्य पंक्ति में अन्य अलंकार –

अलंकार के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ:

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अलंकार – परिभाषा, भेद एवं उदाहरण 

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