Puja ke samay rumal se sir kyon dhakna chahiye?
पौराणिक कथाओं में नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने क लिए मुकुट पहनते थे। यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढंकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपटा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढ़ककर रखती थी। इसीलिए, मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढंकना जरूरी माना गया था। पहले सभी लोगों के सिर ढंकने का वैज्ञानिक कारण था। दरअसल, विज्ञान के अनुसार सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवदेनशील स्थान होता है। ब्रहमरंध् सिर बीचों- बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुश्प्रभाव ब्रहमरंध् के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आते हैं।
इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।
इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रार चक्र होता है। पूजा क समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है, उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नही तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।