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मनोरंजक बच्चों की कहानी – चिंतामणि

एक दिन सम्राट दुर्जय अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने वन में गया। वहां उसने एक सुंदर सरोवर देखा। सम्राट दुर्जय को वह स्थान बहुत प्रिय लगा। सरोवर के पास ही एक कुटिया थी, जिसमें गौमुख नामक ऋषि रहते थे। सम्राट दुर्जय एवं उनके सैनिकों को देख ऋषि गौमुख ने उसका खूब आदर सत्कार किया। दुर्जय ने ऋषि से वहां रात्रि विश्राम करने की इच्छा व्यक्त की। सम्राट दुर्जय की बात सुन ऋषि गौमुख प्रसन्न तो हुए, लेकिन साथ ही वह चिंतित भी हो उठे। दरअसल उनके पास न तो उनको ठहराने की उपयुक्त व्यवस्था थी और न ही पर्याप्त भोजन सामग्री।

ऋषि गौमुख इसी चिंता में परेशान थे कि तभी उन्हें भगवान नारायण का ध्यान आया। ध्यान आते ही भगवान वहां आ गए। उन्होंने ऋषि को चिंतामणि देते हुए कहा, ”ऋषिवर, आप इस चिंतामणि को रखिए, यह आपको आवश्यकतानुसार सभी चीजें उपलब्ध कराएगी।“ ऋषि ने चिंतामणि ले ली और फिर एक भव्य स्वर्ण महल की कामना की। तत्काल कुटिया के स्थान पर स्वर्ण महल साकार हो गया। ऋषि ने दुर्जय से कहा, ”महाराज, आप अपने सैनिकों सहित महल में चलिए। भोजन करने का समय हो गया है।“ सम्राट दुर्जय एवं उसके सैनिक जैसे ही महल में पहुंचे, आश्चर्य से उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। ऐसा सुंदर महल उन्होंने कभी नहीं देखा था।manoranjak bacchon ki kahani - chintamani

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ऋषि गौमुख ने पुनः चिंतामणि को भोजन की कामना की। तत्काल भोजन भी आ गया। ऋषि ने सभी को स्नेह से भोजन कराया। ऐसा स्वादिष्ट भोजन उन्होंने जीवन में कभी नहीं चखा था। रात्रि विश्राम उन्होंने उसी महल में किया। सुबह जब दुर्जय एवं उसके सैनिक वापस जाने लगे, तो स्वर्ण महल स्वतः ही गायब हो गया। यह देख सभी आश्चर्य में पड़ गए। दुर्जय ने जिज्ञासावश पूछा, ”ऋषिवर, आपने इतनी अच्छी व्यवस्था इतनी जल्दी कैसे कर ली? क्या आपके पास कोई चमत्कारी चीज है?“

”हां, यह सब प्रबंध चिंतामणि का कमाल है। यह चिंतामणि मुझे स्वयं भगवान ने दी है। इससे जो मांगा जाता है, वही चीज मिल जाती है।“ ऋषि गौमुख ने कहा।

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”क्या यह चिंतामणि मुझे मिल सकती है ऋषिवर?“ सम्राट दुर्जय ने पूछा।

ऋषि ने चिंतामणि देने से इनकार कर दिया। सुनकर दुर्जय का क्रोध भड़क उठा। वह हर स्थिति में चिंतामणि को पाना चाहता था। अहंकारी तो वह था ही। उसने ऋषि को धमकी दी, ”तुम मेरी शक्ति को नहीं जानते। या तो तुम चिंतामणि दो, अथवा प्राण त्यागने को तैयार हो जाओ।“ दुर्जय का इतना कहना था कि तभी एक चमत्कार हुआ। चिंतामणि में से सहसा असंख्य वीर योद्धा प्रकट हुए और वे ऋषि की ओर से दुर्जय एवं उसके सैनिकों के संग युद्ध करने लगे। ऋषि गौमुख ने व्याकुल हो प्रभु से प्रार्थना की, ”हे प्रभु, इन दुष्टों का विनाश करो!“ ऋषि का इतना कहना था कि भगवान नारायण वहां आ गए। उन्होंने सम्राट दुर्जय और उसके सैनिकों का पलभर में सर्वनाश कर दिया।

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