2014 चुनावों के दौरान, नरेंद्र मोदी के बाद अरविंद केजरीवाल एक ऐसे शख्स थे जिनका नाम देश ने सर्वाधिक बार सुना. कभी जन लोकपाल के मुद्दे पर तात्कालीन कॉंग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन में अन्ना हज़ारे का साथ देते हुए तो कभी मोदी का विरोध करते हुए. फिर आम आदमी के गठन के बाद दिल्ली की राजनीति के केंद्र बने और अंततः दिल्ली जीत कर इसके सातवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया!
अरविंद को उनकी जहाँ उनकी सादगी और सरलता के लिए भारी तादाद में समर्थक मिले तो वहीं राजनीतिक कारणों से विरोधियों की भारी फौज भी!
उनका जीवन एक आम आदमी की तरह साधारण परंतु उपलब्धियों से भरा पड़ा है! मैग्सेसे अवॉर्ड जीतने वाले अरविंद ने पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनो बदल कर रख दी! भारत की राजनीति को अधिक पारदर्शी एवं उत्तरदायी बनाने का श्रेय केजरीवाल और उनके सहयोगियों को बेशक मिलेगा!
केजरीवाल की राजनीति हो या उनका दैनिक जीवन, हमें उनसे कुछ महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलीं! हिन्दी वार्ता पर हमने ऐसी 10 महत्वपूर्ण बातों को प्रस्तुत किया है! आशा है आप इनसे सहमत होंगे!
1. इस देश का बहुत कुछ हो सकता है
केजरीवाल की ट्विटर प्रोफाइल यह कहती है कि भारत जल्दी बदलेगा और शायद यह एक हद तक बदल भी रहा है! पहली बार शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट दोगुना कर के केजरीवाल ने बड़ा साफ संदेश दिया की वो अलग तरीके की राजनीति करने आए हैं!
चाहे ACB के ज़रिए भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की बात हो या बसों में महिला सुरक्षा के लिए मार्शल तैनात करने की, केजरीवाल ने एक नये तरह की राजनीति कर के यह संदेश दे दिया है कि भारत का बहुत कुछ हो सकता है!
देश की जनता पहली बार चुनाव में होने वाले खर्चे का हिसाब पार्टियों से पूछ रही थी! राजनीतिक पार्टियों की चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता को ले कर सवाल उठने लगे हैं!
दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी की ताबड़तोड़ हुई सभाओं को केजरीवाल ने बड़े ही शानदार ढंग से मुद्दो की बहस का रूप दे दिया ! पहली बार नेता अपने चुनावी घोषणापत्र को ले कर लोगों को यह समझाने में लगे थे कि वे अपने चुनावी वादे पूरे कैसे करेंगे!
नई तरीके की राजनीति की शुरुआत दिल्ली से हो चुकी थी!
राजनीति से नफ़रत करने वाले पढ़े लिखे युवाओं को अपनी सोच दे कर अपनी पार्टी का सबसे बड़ा हथियार बनाया! सीमित संसाधानो के बावजूद केजरीवाल एंड टीम ने सफलतापूर्वक अपने मिशन को अंजाम दिया! साथ ही साथ उन्होने यह भी साबित किया कि इस देश का युवा जाग जाए तो पूरे सिस्टम को हिला कर रख सकता है! इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के आंदोलन के मंच से भारत की तात्कालीन सरकार को चुनौती देते हुए पहली बार केजरीवाल ने इस देश को यह समझाया कि इस देश का कुछ हो सकता है!
2. देश सबसे पहले-कंट्री फर्स्ट (Country First)
हर मौके पर प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने वाले केजरीवाल स्वच्छ भारत अभियान के मुद्दे पर प्रधान मंत्री के साथ नज़र आए! अपनी पार्टी के सदस्यों को इस अच्छे कदम के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया!
योग दिवस पर भी केजरीवाल मोदी के साथ दिल्ली में योग करते नज़र आए!
भाजपा प्रशासित दिल्ली नगर निगम से अनेको मुद्दों पर अनबन के बावजूद जब बात दिल्ली की सफाई की आई तब केजरीवाल ने उनसे हाथ मिलाया और संयुक्त रूप से दिल्ली को स्वच्छ बनाने के लिए स्वच्छ दिल्ली अभियान शुरू किया! पढ़ें- अरविन्द केजरीवाल की आप सरकार ने शुरु किया स्वच्छ दिल्ली अभियान
3. सच्चाई के लिए आवाज़ उठाओ. फ़र्क नही पड़ता कि विरोधियों की संख्या कितनी है
जीवन के एशोआराम को छोड़ कर सरकार और व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाना बड़ी बात है!
केजरीवाल ने एक IRS की नौकरी छोड़ी और अपने NGO परिवर्तन के माध्यम से भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुहीम छेड़ी ! 13 सालों तक दिल्ली और दिल्ली वासियों के हक के लिए लड़ाई लड़ी!
एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अरविंद द्वारा उठाए गये मुद्दे यह साबित करते हैं की उन्होने आरोप लगाए और देर सवेर वो आरोप सही साबित भी हुए! साथ ही साथ यह बात नोट करने लायक है कि अरविंद देश की बड़ी से बड़ी ताकतों के सामने निडरता के साथ खड़े हुए! कुछ प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं:-
- RTI के माध्यम से MCD, PDS, Income Tax Dept, Electricity Board में अनेकों घोटालों का पर्दाफाश किया
- बिजली कंपनियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद की (CAG ऑडिट में यह साफ हो गया कि बिजली कंपनियाँ धोखाधड़ी कर रही हैं)
- तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ खड़े हुए और बाद में कॉम्नवेल्थ खेलों में हुए घोटाले के खिलाफ FIR भी दर्ज कराई!
- 2004 में सशक्त लोकपाल के लिए कॉंग्रेस सरकार के सामने खड़े हुए और अन्ना हज़ारे के साथ देशव्यापी जनआंदोलन लिया!
- चुनाव के दौरान शीला दीक्षित को उनके ही निर्वाचन क्षेत्र में चुनौती दी और हराया! उसी प्रकार लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को वाराणसी में चुनौती दी!
- नरेंद्र मोदी का विरोध उस समय भी किया जब मोदी के कद के सामने मीडिया तक छोटा पड़ गया था!
- मुकेश अंबानी के खिलाफ आवाज़ उठाई (हालिया रिपोर्ट में यह साफ हुआ की अंबानी के खाते स्विस बैंक में मिले)
और हाँ, अरविंद को अवसरवादी कहने से पहले ये सोचना ज़रूरी है कि क्या 1999 में जब अरविंद ने जब Indian Revenue Service की नौकरी छोडी और अगले 13 सालों तक समाजसेवा करने का रास्ता अपनाया तब क्या उन्हें ये पता था कि वो राजनीति में आने वाले हैं? और अगर आने भी वाले हैं तो मुख्यमंत्री बन कर आएँगे? अगर हाँ तो भगवान ऐसी दूरदर्शिता हम सभी को दे!
4. व्यवस्था को बदलने के लिए सिर्फ़ एक आम आदमी ही काफ़ी है!
व्यवस्था से परेशान हो कर एक आम आदमी व्यवस्था ही बदल देगा यह शायद कॉंग्रेस के नेताओं ने भी नही सोचा था !
शुरुआत अरविंद नें दिल्ली के इनकम टॅक्स विभाग में लोगों की समस्याओं का समाधान ढूँढने से की थी! फिर समस्याएँ आती गयी और काफिला बढ़ता चला गया परंतु पीछे कभी नही हटे!
दिल्ली वासियों को मुफ़्त पानी और सस्ती बिजली देने का सपना केजरीवाल ने दिखाया और उसे पूरा भी किया!
दिल्ली वालों के लिए तीन स्तरीय आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था (मोहल्ला क्लिनिक, पॉली क्लिनिक एवं बड़े अस्पताल) का सफल संचालन कर केजरीवाल अपनी छवि ऐसे नेता की बनाना चाहते हैं जो वास्तव में एक आम आदमी की समस्याओं को समझता है!
अरविंद आज भी यह बात साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि देश को बदलने के लिए पैसे की नही, नीयत की ज़रूरत है!
5. चाहे कितनी भी अड़चनें या समस्याएं आपका रास्ता रोकें! अपने सिद्धांतो के साथ समझौता कभी ना करो
याद कीजिए दिल्ली चुनाव से ठीक पहले का वो दिन जब दिल्ली के शाही इमाम ने केजरीवाल को समर्थन की पेशकश की थी! तब केजरीवाल ने बड़ी विनम्रता से इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि वो किसी खास समुदाय से नही वरन पूरी दिल्ली से सहयोग चाहते हैं!
बात जब पैसे जुटाने की आई तब भी केजरीवाल ने सिद्धांतो से समझौता ना करते हुए पुरी प्रक्रिया को पारदर्शी रखा और एक एक रुपए का हिसाब पार्टी की वेबसाइट पर दर्शाया! साथ ही साथ दूसरी पार्टियों को भी ऐसा करने के लिए ललकारा!
49 दिनों में दिल्ली की गद्दी छोड़ कर जनता को सीधा संदेश देने की कोशिश की कि यदि हम वादे पूरे करने में असमर्थ हैं तो फिर कुर्सी पर बैठने का कोई फ़ायदा नही! हालाँकि इस कदम का भारी विरोध हुआ!
सरकार बन जाने के बाद भी अपने मंत्रियों के ग़लत साबित होने पर उनका इस्तीफ़ा लिया! चाहे वो केजरीवाल के क़ानून मंत्री सोमनाथ भारती हों या फिर फर्जी डिग्री केस में फँसे तोमर या फिर भ्रष्टाचार के आरोपों पर घिरे मंत्री आसिम अहमद ख़ान.
संदेश साफ था, ईमानदारी ही एकमात्र विकल्प है!
6. अपनी ग़लती सुधारने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि अपनी ग़लती को पहचानो, उसे मानो, उसके लिए क्षमा माँगो! और फिर उसे दुबारा दुहराने से बचो
दिल्ली की गद्दी छोड़ने के बाद केजरीवाल का विरोध शुरू हुआ! जनमत संग्रह कराए बिना केजरीवाल ने गद्दी छोड़ दी जिसके खामियाजे के रूप में उन्हें विरोधियों से ‘भगोड़े’ की उपाधि मिली! केजरीवाल ने उस ग़लती को पूरे देश के सामने बेझिझक स्वीकार किया और ऐसा ना करने का प्रण लिया!
जनता को उनकी यह सादगी पसंद आई, फलस्वरूप आम आदमी पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली!
अभी हाल ही में पुलिस वालों को ‘ठुल्ला’ कहने पर जब कुछ पुलिस वालों ने विरोध किया तब केजरीवाल ने अपनी ग़लती मानते हुए उनसे बेझिझक माफी माँगी!
अपनी ग़लती मानने और माफी माँगने का यह सरल अंदाज उन्हें दूसरे आम नेताओं से अलग करता है !
7. विफलताएँ हमें बड़ी सफलता की तरफ ले जाती हैं !
सफलता रातों रात नही मिलती! इसके लिए अथक प्रयास, लगन एवं कभी कभी असफलता का मूह भी देखना पड़ता है!
मुख्यमंत्री बनने से पहले केजरीवाल को नक्सली, आतंकी, पाकिस्तानी एजेंट, AK-47, देशद्रोही, भगोड़ा, खुजलीवाल और ना जाने क्या क्या कहा गया! इतना ही नही, चेहरे पर स्याही फेकी गयी. यहाँ तक की थप्पड़ भी पड़े!
खुद केजरीवाल के अनुसार, उनके अपने ही सेक्यूरिटी गार्ड ने लोकसभा चुनाव हारने के बाद ताने देते हुए कहा था- “बड़ा हीरो बनना चाहता था. प्रधान मंत्री बनने चला था लौट के बुद्धू घर को आए”
लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद 67 सीटो के साथ वापसी करना अभूतपूर्व था! परंतु अंततः अपार बहुमत के साथ केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे!
8. विनम्र बनो और सदैव विनम्र ही रहो
दिल्ली की सीट छोड़ने के बाद चुनाव प्रचार के दौरान लाली नाम के एक ऑटो ड्राइवर ने केजरीवाल को थप्पड़ जड़ दिया! प्रतिक्रिया स्वरूप केजरीवाल ने उस व्यक्ति से मिल कर उस थप्पड़ की वजह जानी और सीट छोड़ने के लिए क्षमा भी माँगी! इसे चुनावी स्टंट तो बिलकुल नही कहा जा सकता!
दिल्ली चुनावों में 70 मे से 67 सीटें जीत कर इतिहास रचने के बावजूद भी जब केजरीवाल ने अपना पहला इंटरव्यू बरखा दत्त को दिया तब टीवी पर अपनी जीत का जश्न मानने या विरोधियों को ताने मारने के बजाए केजरीवाल ने दिल्ली के बारे में बात करना पसंद किया! उन्होने दिल्ली के विकास एवं दिल्ली के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बात की!
खुद को केजरीवाल ने अहंकार से दूर रखा तथा स्वाभाव की विनम्रता को आज भी बनाए रखा!
9. एक सफल नेता यदि चाहे तो एक अच्छा पिता, अच्छा बेटा और एक अच्छा पति भी साबित हो सकता है!
एक सफल पुरुष को अपने काम और अपने दैनिक जीवन के बीच के सामंजस्य को प्राप्त करने में कोई समस्या नही होगी! दिल्ली वालों के इस मफ्लर मैंन ने इसे यथार्थ कर दिखाया!
चाहे वो दिल्ली की ऐतिहासिक जीत के बाद अपनी पत्नी को धन्यवाद देना हो या फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने परिवार के साथ फ़िल्मे देखने का शौक पाले रखना! अरविंद ने खुद को एक अच्छा पुरुष साबित किया!
बदले में उन्हें अपनी पत्नी और परिवार का भरपूर सहयोग मिला और रही सही कसर बेटी ने IIT की परीक्षा उत्तीर्ण कर के पूरी पर दी!
10. पढ़े लिखे लोग भी राजनीति कर सकते हैं!
एक प्रश्न के जवाब में एक बार केजरीवाल ने कहा था- “इसे देश के सबसे बड़ी समस्या ना तो ग़रीबी है, ना अज्ञानता है, ना ही जातिवाद है और ना ही भ्रष्टाचार है! इस देश की समस्या वो लोग हैं जो इस देश के संसाधानो पर पलते हैं! इस देश की रोटी खा कर बड़े होते हैं! इस देश में शिक्षा ग्रहण करते हैं और फिर कहते हैं कि मुझे राजनीति से नफ़रत है!”
राजनीति यदि कीचड़ है तो नाक पर रुमाल रख कर इससे दूर भागने के बजाए इसमें कूदो और पूरे लगन और ईमानदारी के साथ सफाई करो!
ये मत भूलो कि राजनीति इस देश की जड़ में है! भारत एक विशाल जनतंत्र है! और जनतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है! जिस दिन जनता जनतंत्र से अलग हो जाएगी, यह तंत्र अर्थविहीन हो जाएगा! उठो और देश के लिए राजनीति से प्यार करो ठीक वैसे ही जैसे तुम्हे अपने परिवार के लिए अपनी नौकरी से प्यार करना पड़ता है!
राजनीति केजरीवाल ने भी की और बाकियों ने भी! परंतु एक रचनात्मक राजनीति क्या होती है यह केजरीवाल ने सबको सिखाया, जिसका लोहा राहुल गाँधी ने भी माना! मर्यादाओं एवं शब्दों के सीमा में रहकर मुद्दों के राजनीति कर के केजरीवाल ने मोदी जैसे जादुई व्यक्तित्व वाले शख्स को भी पटखनी दे दी!
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