किसी समय अबू दानिश नाम का एक फकीर था। वह बड़ा मस्तमौला था। दिन भर इधर उधर घूमता रहता और अल्लाह का नाम लेता। तो मिल जाता, खा लेता। रात होने पर मस्जिद के एक कोने में पड़कर सो जाता। उसे किसी चीज की इच्छा नहीं थी।
गांव में सभी लोग उसका आदर करते थे। वे अपना दुख दर्द भी उसे बताते और उससे राय मांगते। अबू दानिश के मन में जो आता कह देता। गांव वाले उसी को ईश्वर के शब्द मान लेते।
इसी गांव में मिर्जा नाम का एक व्यापारी भी रहता था। वह बड़ा स्वार्थी और लालची था। फकीर अबू जब भी उसकी दुकान के आगे से गुजरता, वह मुंह फेर लेता। उसे डर रहता कि फकीर कुछ मांग न ले।
एक बार दुकान पर आए ग्राहक ने अबू दानिश के बारे में मिर्जा को बताया। मिर्जा का मन हुआ कि वह भी अपने व्यापार के लिए अबू फकीर से पूछे। कई दिन मौका तलाशने के बाद एक शाम मिर्जा मस्जिद जा पहुंचा। वह अपने साथ कुछ फल और मिठाई भी ले गया था। दानिश फकीर उस समय अल्लाह के ध्यान में आंखें बंद किए बैठा था।
मिर्जा ने कहा, ”ऐ अल्लाह के नेक बंदे, इसे कबूल करें।“
फकीन ने आंखें खोलीं। मिर्जा को देखकर मुस्कराया और बोला, ”पूछ क्या पूछना चाहता है?“
मिर्जा हैरान कि मन की बात फकीर कैसे जान गया। उसने दानिश के आगे झुककर कहा, ”मैं किस चीज का व्यापार करूं कि कुछ पैसा बने।“
अबू दानिश ने बिना रूके, बिना सोचे कहा, ”लहसुन और लोहे का।“
मिर्जा दानिश को सलाम कर वापस आ गया। सुबह होते ही उसने अपने आधे धन से लहसुन खरीदा और बाकी आधे को लोहे क व्यापार में लगा दिया।
अबू दानिश का कहा सच हुआ। उस वर्ष लहसुन की फसल अच्छी हुई और मिर्जा का खरीदा हुआ सारा लहसुन तिगुने चौगुने दामों में बिक गया। इसी तरह लोहे का काम भी खूब चमका। पैसा आते ही मिर्जा का दिमाग बदल गया। वह किसी से सीधे मुंह बात भी न करता। यहां तक कि उसने अबू दानिश को शुक्रिया भी न कहा।
कुछ समय बाद फकीर दानिश उसकी दुकान के सामने से जा रहा था कि मिर्जा ने उसे पुकारा, ”अरे अबू फकीर, बता तो इस वर्ष पैसा किस व्यापार में लगाऊं?“
दानिश ने मुस्करा कर बिना सोचे कहा, ”प्याज और सोने में।“
मिर्जा ने अगले ही दिन सारी कमाई दौलत के आधे धन से प्याज खरीद डाली और आधा सोने के व्यापार में लगा दिया। कई महीने बीत गए प्याज के गोदाम के गोदाम भरे पड़े थे, लेकिन प्याज का दाम न बढ़ा, बल्कि उस साल प्याज की फसल इतनी ज्यादा हुई कि दाम बिलकुल नीचे आ गए। मिर्जा के गोदामों में प्याज की जड़ें फूल आई और वो सड़ गई। उधर सोने के व्यापार में भी घाटा पड़ गया। सारा पैसा बरबाद हो गया। उसे इतना घाटा हुआ कि खाने पीने को भी मोहताज हो गया। परेशानी में पड़े मिर्जा को अबू दानिश की याद आई। वह उसे गली गली ढूंढ़ने लगा। दानिश के मिलने पर मिर्जा ने उसके पांव पकड़ लिए और रोने लगा।
अबू दानिश ने कहा, ”यह सब तुम्हारी जुबान की वजह से हुआ है। जब तुमने मुझे मीठी जुबान से पुकारा तो तुम्हारे व्यापार में बढ़ोतरी हुई और जब तुमने कड़वी जुबान से पुकारा तो तुम्हें उसका उत्तर भी कड़वा ही मिलना चाहिए था।“
मिर्जा अपना सा मुंह लेकर रह गया।