क्रिया की परिभाषा भेद उदाहरण (Kriya ki Paribhasha, Bhed Udaharan)
किसी भी कार्य को करने या होने को क्रिया कहते हैं। संज्ञा या सर्वनाम द्वारा किया गया कार्य क्रिया कहलाता है। उदाहरण स्वरुप: राम पढ़ता है, मोहन खाता है, सीता गाती है इत्यादि।
क्रिया के मूल रूप को मुख्य धातु कहाँ जाता हैं। धातु से ही क्रिया शब्द का निर्माण होता हैं।
क्रिया के भेद :
क्रिया के वर्गीकरण के मुख्यत: दो भेद हैं:
- कर्म के आधार पर (प्रयोग के आधार पर)
- रचना के आधार पर (बनावट के आधार पर)
कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
प्रयोग के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं:
1 . अकर्मक क्रिया
2 . सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया में कर्म नहीं होता उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं अर्थात वाक्य की बनावट सिर्फ कर्ता और क्रिया के रूप में होती है, जैसे: राम खाता है, मोहन गाता है।
अकर्मक क्रिया की पहचान यह है कि यदि हम कर्ता से “क्या ” प्रश्न करें तो हमारा प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है। उपरोक्त वाक्यों में राम क्या खाता है और मोहन क्या गाता है, इसका उत्तर हमें नहीं मिलता ।
इसकी दूसरी पहचान है कि यदि हम कौन का प्रश्न करते हैं तो हमें उत्तर मिल जाता है, जैसे: कौन खाता है, कौन गाता है, तो इसका उत्तर हमें राम और मोहन के रूप में मिल जाता है।
सकर्मक क्रिया:
जिस वाक्य की बनावट कर्ता+ कर्म+ क्रिया के रूप में हो वह सकर्मक क्रिया का उदाहरण है, अर्थात कर्म के साथ जु़ड़ी हुईं क्रिया सकर्मक क्रिया कहलाती है।
उदाहरण स्वरुप:: सोहन क्रिकेट खेलता है, सीता स्कूल जाती है।
सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं:
एक कर्मक क्रिया:
जिस क्रिया में सिर्फ एक कर्म हो उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं।।, जैसे: कोयल गीत गाती है, राजेश गेंद से खेलता है।इन वाक्यों में हम देखते हैं कि कर्ता कर्म के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन उसके कर्म की संख्या एक है, इसलिए एक कर्म होने के कारण इसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं।
द्विकर्मक क्रिया:
जिस क्रिया में कर्ता के साथ दो कर्म जुड़े हुए हों उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं जैसे: राम मैदान में गेंद से खेलता है। सीता साबुन से कपड़े धोती है। पहले वाक्य से हमें यह पता चलता है कि कर्ता के साथ दो कर्म जुड़े हुए हैं, मैदान और गेंद इसलिए यहां कर्म की संख्या दो होने के कारण इसे हम द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
अकर्मक क्रिया से सकर्मक क्रिया बनाने के नियम :
- दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है। जैसे-
अकर्मक – सकर्मक
उखड़ना – उखाड़ना
कटना – काटना
कढ़ना – काढ़ना
गड़ना – गाड़ना
टलना – टालना
निकलना – निकालना
पिटना – पीटना
पिसना – पीसना
फँसना – फाँसना
बिगड़ना – बिगाड़ना
मरना – मारना
लदना – लादना
लुटना – लूटना
सँभलना – सँभालना
- यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’ या ‘उ’ स्वर रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं। जैसे
अकर्मक – सकर्मक
खुलना – खोलना
घिरना – घेरना
छिदना – छेदना
दिखना – देखना।
फिरना – फेरना
मुड़ना – मोड़ना
- ‘ट’ अन्तवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं।
अकर्मक – सकर्मक
छूटना – छोड़ना
जुटना – जोड़ना
टूटना – तोड़ना
फटना – फोड़ना
कर्म के आधार पर क्रिया के कुछ अन्य भेद
कर्म के आधार पर क्रिया के तीन अन्य भेद होते है।
सहायक क्रिया:
सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर वाक्य के अर्थ को स्पष्ट एवं पूर्ण करती हैं।
सहायक क्रिया के उदाहरण:
वे हँसते हैं।
हम घर जाते हैं।
पूर्णकालिक क्रिया:
जब कर्ता के द्वारा एक क्रिया को पूर्ण करने के बाद दूसरी क्रिया सम्पन्न की जाती हैं तो पहले वाली क्रिया को पूर्णकालिक क्रिया कहाँ जाता हैं।
पूर्णकालिक क्रिया के उदाहरण:
राम खाना खाने के बाद हसता हैं।
रचना के आधार पर क्रिया के भेद:
बनावट के आधार पर क्रिया के चार भेद हैं:
1 . संयुक्त क्रिया
2 . नामधातु क्रिया
3 . प्रेरणार्थक क्रिया
4 . पूर्वकालिक क्रिया
5 . तात्कालिक क्रिया
संयुक्त क्रिया:
संयुक्त का मतलब होता है जुड़ा हुआ, जिस वाक्य में एक साथ दो क्रियाएं जुड़ी हुई हों उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं जैसे: रमा खाना बना चुकी । श्याम बाजार से आ चुका।
इन वाक्यों में ” बना चुकी” और “आ चुका” दो क्रियाओं के मिलने से बनीं है जिसमें एक मुख्य क्रिया और दूसरी सहायक क्रिया कहलाती है। अतः ऐसी क्रिया जिसमें सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के संपन्न होने में सहायता प्रदान करता है उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
संयुक्त क्रिया के भेद
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के 11 मुख्य भेद हैं:
आरम्भबोधक: जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं। जैसे: आंधी चलने लगी।
समाप्तिबोधक: जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया’ है। धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। जैसे: वह पढ़ चुका है।
अवकाशबोधक: जिससे क्रिया को निष्पत्र करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह ‘अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया’ है। जैसे: वह मुश्किल से सोने न पाया।
अनुमतिबोधक: जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह ‘अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया’ है। जैसे: मुझे जाने दो।
नित्यताबोधक: जिससे कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह ‘नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया’ है। जैसे: तोता पढ़ता रहा। मुख्य क्रिया के आगे ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।
आवश्यकताबोधक: जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ‘आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया’ है। जैसे: तुम्हें यह काम करना चाहिए। साधारण क्रिया के साथ ‘पड़ना’ ‘होना’ या ‘चाहिए’ क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
निश्र्चयबोधक: जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे ‘निश्र्चयबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं। जैसे: अब खा ही लो। इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।
इच्छाबोधक: इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है। जैसे: मैं खेलना चाहता हूँ। क्रिया के साधारण रूप में ‘चाहना’ क्रिया जोड़ने से इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
अभ्यासबोधक: इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में ‘करना’ क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। जैसे: मैं वीणा बजाया करता हूँ।
शक्तिबोधक: इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है। जैसे: मैं पत्थर उठा सकता हूँ। इसमें ‘सकना’ क्रिया जोड़ी जाती है।
पुनरुक्त संयुक्त क्रिया: जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ‘पुनरुक्त संयुक्त क्रिया’ कहते हैं। जैसे: संबंधियों से मिलते-जुलते रहा करो।
नामधातु क्रिया:
संज्ञा सर्वनाम और विशेषण में प्रत्यय जोड़ने से जिस शब्द का निर्माण होता है उसे नामधातु कहते हैं । इन नाम धातुओं में ” ना” जोड़ने से जिस क्रिया का निर्माण होता है उसे नामधातु क्रिया कहते हैं। उदाहरण के लिए, बात से बतियाना, लात से लतियाना, साठ से सठियाना,अपना से अपनाना।,
प्रेरणार्थक क्रिया:
जिस क्रिया से यह पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य ना करके किसी अन्य को प्रेरित करके कार्य संपन्न करवाता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे: शिक्षक ने बच्चों से पाठ पढ़वाया। मालिक ने नौकर से काम करवाया ।
इन वाक्यों से यह पता चलता है कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए इसे हम प्रेरणार्थक क्रिया कहते है ।
पूर्वकालिक क्रिया:
जिस क्रिया से यह पता चले कि मुख्य क्रिया के संपन्न होने से पूर्व एक अन्य क्रिया संपन्न हो चुकी है उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं जैसे: वह नहाकर स्कूल जाएगा । वह खाना बनाकर बाजार जाएगी।
उपर्युक्त वाक्य में रेखांकित शब्द नहाकर और बनाकर पूर्वकालिक क्रिया के उदाहरण है।
तात्कालिक क्रिया:
मुख्य क्रिया के संपन्न होते ही घटित होने वाली क्रिया तात्कालिक क्रिया कहलाती है जैसे वह जहर खाते ही मर गया। स्कूल से आते ही वह पढ़ने बैठ गया ।
तात्कालिक क्रिया की पहचान यह है कि इसमें “ही” बलाघात का प्रयोग अवश्य होता है।
क्रिया के संबंध में विशेष बातें:
1 . कर्ता द्वारा संपन्न कार्य क्रिया कहलाती है।
2 . प्रयोग के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं अकर्मक और सकर्मक।
3 . बनावट के आधार पर क्रिया के मुख्य पांच भेद हैं: : संयुक्त क्रिया, नामधातु क्रिया, प्रेरणार्थक क्रिया, पूर्वकालिक क्रिया और तात्कालिक क्रिया।
4 . तात्कालिक क्रिया और पूर्वकालिक क्रिया में यह अंतर है कि जहां पूर्वकालिक क्रिया में सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के पूर्व होती है जबकि तात्कालिक क्रिया में सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के बाद घटित होती है।