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कैफी आज़मी Shayari in Hindi दोस्त मैं देख चुका ताजमहल

Kaifi Azmi shayari – Taj Mahal

दोस्त ! मैं देख चुका ताजमहल
…वापस चल

मरमरीं-मरमरीं फूलों से उबलता हीरा
चाँद की आँच में दहके हुए सीमीं मीनार
ज़ेहन-ए-शाएर से ये करता हुआ चश्मक पैहम
एक मलिका का ज़िया-पोश ओ फ़ज़ा-ताब मज़ार

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ख़ुद ब-ख़ुद फिर गए नज़रों में ब-अंदाज़-ए-सवाल
वो जो रस्तों पे पड़े रहते हैं लाशों की तरह
ख़ुश्क हो कर जो सिमट जाते हैं बे-रस आसाब
धूप में खोपड़ियाँ बजती हैं ताशों की तरह

दोस्त ! मैं देख चुका ताजमहल
…वापस चल

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ये धड़कता हुआ गुम्बद में दिल-ए-शाहजहाँ
ये दर-ओ-बाम पे हँसता हुआ मलिका का शबाब
जगमगाता है हर इक तह से मज़ाक़-ए-तफ़रीक़
और तारीख़ उढ़ाती है मोहब्बत की नक़ाब

चाँदनी और ये महल आलम-ए-हैरत की क़सम
दूध की नहर में जिस तरह उबाल आ जाए
ऐसे सय्याह की नज़रों में खुपे क्या ये समाँ
जिस को फ़रहाद की क़िस्मत का ख़याल आ जाए

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दोस्त ! मैं देख चुका ताजमहल
…वापस चल

ये दमकती हुई चौखट ये तिला-पोश कलस
इन्हीं जल्वों ने दिया क़ब्र-परस्ती को रिवाज
माह ओ अंजुम भी हुए जाते हैं मजबूर-ए-सुजूद
वाह आराम-गह-ए-मलिका-ए-माबूद-मिज़ाज

दीदनी क़स्र नहीं दीदनी तक़्सीम है ये
रू-ए-हस्ती पे धुआँ क़ब्र पे रक़्स-ए-अनवार
फैल जाए इसी रौज़ा का जो सिमटा दामन
कितने जाँ-दार जनाज़ों को भी मिल जाए मज़ार

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दोस्त ! मैं देख चुका ताजमहल
…वापस चल

कैफी आज़मी के ये बेहतरीन 25 शेर आपके दिल को गहराइयों तक छू लेंगे

Kaifi Azmi Poetry – Taj Mahal

dost ! main dekh chuka taajamahal
…vaapas chal

maramarin-maramarin foolon se ubalata hiraa
chaand ki aanch men dahake hue simin minaar
jehan-e-shaaer se ye karata hua chashmak paiham
ek malika ka jiyaa-posh o fjaa-taab majaar

khud b-khud fir gae najron men b-andaaj-e-savaal
vo jo raston pe pade rahate hain laashon ki tarah
khushk ho kar jo simat jaate hain be-ras aasaab
dhoop men khopadiyaan bajati hain taashon ki tarah

dost ! main dekh chuka taajamahal
…vaapas chal

ye dhadkata hua gumbad men dil-e-shaahajahaan
ye dar-o-baam pe hansata hua malika ka shabaab
jagamagaata hai har ik tah se majaak-e-tafrik
aur taarikh udhaati hai mohabbat ki nakaab

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chaandani aur ye mahal aalam-e-hairat ki ksam
doodh ki nahar men jis tarah ubaal a jaae
aise sayyaah ki najron men khupe kya ye samaan
jis ko frahaad ki kismat ka khyaal a jaae

dost ! main dekh chuka taajamahal
…vaapas chal

ye damakati hui chaukhat ye tilaa-posh kalas
inhin jalvon ne diya kbr-parasti ko rivaaj
maah o anjum bhi hue jaate hain majaboor-e-sujood
vaah aaraam-gah-e-malikaa-e-maabood-mijaaj

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didani ksr nahin didani taksim hai ye
roo-e-hasti pe dhuaan kbr pe raks-e-anavaar
fail jaae isi rauja ka jo simata daaman
kitane jaan-daar janaajon ko bhi mil jaae majaar

dost ! main dekh chuka taajamahal
…vaapas chal

Kaifi Azmi – Taj Mahal (in Urdu)

دوسْتَ ! مَیں دیکھَ چُکا تاجَمَہَلَ
…واپَسَ چَلَ

مَرَمَرِیں-مَرَمَرِیں پھُولوں سے اُبَلَتا ہِیرا
چاںدَ کِی آںچَ میں دَہَکے ہُئے سِیمِیں مِینارَ
زیہَنَ-اے-شاءایرَ سے یے کَرَتا ہُءآ چَشْمَکَ پَیہَمَ
ایکَ مَلِکا کا زِیا-پوشَ او فَزا-تابَ مَزارَ

خُدَ بَ-خُدَ پھِرَ گاے نَزَروں میں بَ-اَںدازَ-اے-سَوالَ
وو جو رَسْتوں پے پَڑے رَہَتے ہَیں لاشوں کِی تَرَہَ
خُشْکَ ہو کَرَ جو سِمَٹَ جاتے ہَیں بے-رَسَ آسابَ
دھُوپَ میں کھوپَڑِیاں بَجَتِی ہَیں تاشوں کِی تَرَہَ

دوسْتَ ! مَیں دیکھَ چُکا تاجَمَہَلَ
…واپَسَ چَلَ

یے دھَڑَکَتا ہُءآ گُمْبَدَ میں دِلَ-اے-شاہَجَہاں
یے دَرَ-او-بامَ پے ہَںسَتا ہُءآ مَلِکا کا شَبابَ
جَگَمَگاتا ہَے ہَرَ اِکَ تَہَ سے مَزاقَ-اے-تَفَرِیقَ
اَورَ تارِیخَ اُڑھاتِی ہَے موہَبَّتَ کِی نَقابَ

چاںدَنِی اَورَ یے مَہَلَ آلَمَ-اے-ہَیرَتَ کِی قَسَمَ
دُودھَ کِی نَہَرَ میں جِسَ تَرَہَ اُبالَ آ جائے
اَیسے سَیْیاہَ کِی نَزَروں میں کھُپے کْیا یے سَماں
جِسَ کو فَرَہادَ کِی قِسْمَتَ کا خَیالَ آ جائے

دوسْتَ ! مَیں دیکھَ چُکا تاجَمَہَلَ
…واپَسَ چَلَ

یے دَمَکَتِی ہُئی چَوکھَٹَ یے تِلا-پوشَ کَلَسَ
اِنْہِیں جَلْووں نے دِیا قَبْرَ-پَرَسْتِی کو رِواجَ
ماہَ او اَںجُمَ بھِی ہُئے جاتے ہَیں مَجَبُورَ-اے-سُجُودَ
واہَ آرامَ-گَہَ-اے-مَلِکا-اے-مابُودَ-مِزاجَ

دِیدَنِی قَسْرَ نَہِیں دِیدَنِی تَقْسِیمَ ہَے یے
رُو-اے-ہَسْتِی پے دھُءآں قَبْرَ پے رَقْسَ-اے-اَنَوارَ
پھَیلَ جائے اِسِی رَوزا کا جو سِمَٹا دامَنَ
کِتَنے جاں-دارَ جَنازوں کو بھِی مِلَ جائے مَزارَ

دوسْتَ ! مَیں دیکھَ چُکا تاجَمَہَلَ
…واپَسَ چَلَ

Kaifi Azmi – Taj Mahal (in Punjabi)

ਦੋਸ੍ਤ ! ਮੈੰ ਦੇਖ ਚੁਕਾ ਤਾਜਮਹਲ
…ਵਾਪਸ ਚਲ

ਮਰਮਰੀੰ-ਮਰਮਰੀੰ ਫੂਲੋੰ ਸੇ ਉਬਲਤਾ ਹੀਰਾ
ਚਾਦ ਕੀ ਆਚ ਮੇੰ ਦਹਕੇ ਹੁਏ ਸੀਮੀੰ ਮੀਨਾਰ
ਜੇਹਨ-ਏ-ਸ਼ਾਏਰ ਸੇ ਯੇ ਕਰਤਾ ਹੁਆ ਚਸ਼੍ਮਕ ਪੈਹਮ
ਏਕ ਮਲਿਕਾ ਕਾ ਜਿਯਾ-ਪੋਸ਼ ਓ ਫਜਾ-ਤਾਬ ਮਜਾਰ

ਖੁਦ ਬ-ਖੁਦ ਫਿਰ ਗਏ ਨਜਰੋੰ ਮੇੰ ਬ-ਅੰਦਾਜ-ਏ-ਸਵਾਲ
ਵੋ ਜੋ ਰਸ੍ਤੋੰ ਪੇ ਪਡੇ ਰਹਤੇ ਹੈੰ ਲਾਸ਼ੋੰ ਕੀ ਤਰਹ
ਖੁਸ਼੍ਕ ਹੋ ਕਰ ਜੋ ਸਿਮਟ ਜਾਤੇ ਹੈੰ ਬੇ-ਰਸ ਆਸਾਬ
ਧੂਪ ਮੇੰ ਖੋਪਡਿਯਾ ਬਜਤੀ ਹੈੰ ਤਾਸ਼ੋੰ ਕੀ ਤਰਹ

ਦੋਸ੍ਤ ! ਮੈੰ ਦੇਖ ਚੁਕਾ ਤਾਜਮਹਲ
…ਵਾਪਸ ਚਲ

ਯੇ ਧਡਕਤਾ ਹੁਆ ਗੁਮ੍ਬਦ ਮੇੰ ਦਿਲ-ਏ-ਸ਼ਾਹਜਹਾ
ਯੇ ਦਰ-ਓ-ਬਾਮ ਪੇ ਹਸਤਾ ਹੁਆ ਮਲਿਕਾ ਕਾ ਸ਼ਬਾਬ
ਜਗਮਗਾਤਾ ਹੈ ਹਰ ਇਕ ਤਹ ਸੇ ਮਜਾਕ-ਏ-ਤਫਰੀਕ
ਔਰ ਤਾਰੀਖ ਉਢਾਤੀ ਹੈ ਮੋਹਬ੍ਬਤ ਕੀ ਨਕਾਬ

ਚਾਦਨੀ ਔਰ ਯੇ ਮਹਲ ਆਲਮ-ਏ-ਹੈਰਤ ਕੀ ਕਸਮ
ਦੂਧ ਕੀ ਨਹਰ ਮੇੰ ਜਿਸ ਤਰਹ ਉਬਾਲ ਆ ਜਾਏ
ਐਸੇ ਸਯ੍ਯਾਹ ਕੀ ਨਜਰੋੰ ਮੇੰ ਖੁਪੇ ਕ੍ਯਾ ਯੇ ਸਮਾ
ਜਿਸ ਕੋ ਫਰਹਾਦ ਕੀ ਕਿਸ੍ਮਤ ਕਾ ਖਯਾਲ ਆ ਜਾਏ

ਦੋਸ੍ਤ ! ਮੈੰ ਦੇਖ ਚੁਕਾ ਤਾਜਮਹਲ
…ਵਾਪਸ ਚਲ

ਯੇ ਦਮਕਤੀ ਹੁਈ ਚੌਖਟ ਯੇ ਤਿਲਾ-ਪੋਸ਼ ਕਲਸ
ਇਨ੍ਹੀੰ ਜਲ੍ਵੋੰ ਨੇ ਦਿਯਾ ਕਬ੍ਰ-ਪਰਸ੍ਤੀ ਕੋ ਰਿਵਾਜ
ਮਾਹ ਓ ਅੰਜੁਮ ਭੀ ਹੁਏ ਜਾਤੇ ਹੈੰ ਮਜਬੂਰ-ਏ-ਸੁਜੂਦ
ਵਾਹ ਆਰਾਮ-ਗਹ-ਏ-ਮਲਿਕਾ-ਏ-ਮਾਬੂਦ-ਮਿਜਾਜ

ਦੀਦਨੀ ਕਸ੍ਰ ਨਹੀੰ ਦੀਦਨੀ ਤਕ੍ਸੀਮ ਹੈ ਯੇ
ਰੂ-ਏ-ਹਸ੍ਤੀ ਪੇ ਧੁਆ ਕਬ੍ਰ ਪੇ ਰਕ੍ਸ-ਏ-ਅਨਵਾਰ
ਫੈਲ ਜਾਏ ਇਸੀ ਰੌਜਾ ਕਾ ਜੋ ਸਿਮਟਾ ਦਾਮਨ
ਕਿਤਨੇ ਜਾ-ਦਾਰ ਜਨਾਜੋੰ ਕੋ ਭੀ ਮਿਲ ਜਾਏ ਮਜਾਰ

ਦੋਸ੍ਤ ! ਮੈੰ ਦੇਖ ਚੁਕਾ ਤਾਜਮਹਲ
…ਵਾਪਸ ਚਲ

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