Kaifi Azmi shayari – Dusra banwas (Ram ban-baas se jab laut ke ghar men aae)
राम बन-बास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक़्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
छे दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मिरे घर में आए
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ
प्यार की काहकशाँ लेती थी अंगड़ाई जहाँ
मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र में आए
धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मिरा लोग जो घर में आए
शाकाहारी थे मेरे दोस्त तुम्हारे ख़ंजर
तुम ने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मिरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आए
पाँव सरजू में अभी राम ने धोए भी न थे
कि नज़र आए वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोए बिना सरजू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे
राजधानी की फ़ज़ा आई नहीं रास मुझे
छे दिसम्बर को मिला दूसरा बनबास मुझे
कैफी आज़मी के ये बेहतरीन 25 शेर आपके दिल को गहराइयों तक छू लेंगे
Kaifi Azmi Poetry – Dusra banwas
Ram ban-baas se jab laut ke ghar men aae
yaad jangal bahut aaya jo nagar men aae
raks-e-divaanagi aangan men jo dekha hogaa
chhe disambar ko shri Ram ne socha hogaa
itane divaane kahaan se mire ghar men aae
jagamagaate the jahaan raam ke kdamon ke nishaan
pyaar ki kaahakashaan leti thi angadaai jahaan
mod nafrat ke usi raahagujr men aae
dharm kya un ka thaa, kya jaat thi, ye jaanata kaun
ghar n jalata to unhen raat men pahachaanata kaun
ghar jalaane ko mira log jo ghar men aae
shaakaahaari the mere dost tumhaare khanjar
tum ne baabar ki taraf fenke the saare patthar
hai mire sar ki khtaa, jkhm jo sar men aae
paanv sarajoo men abhi raam ne dhoe bhi n the
ki najr aae vahaan khoon ke gahare dhabbe
paanv dhoe bina sarajoo ke kinaare se uthe
Ram ye kahate hue apane dvaare se uthe
raajadhaani ki fja aai nahin raas mujhe
chhe disambar ko mila doosara banabaas mujhe
Kaifi Azmi – Dusra banwas (in Urdu)(Ram ban-baas se jab laut ke ghar men aae)
رامَ بَنَ-باسَ سے جَبَ لَوٹَ کے گھَرَ میں آئے
یادَ جَںگَلَ بَہُتَ آیا جو نَگَرَ میں آئے
رَقْسَ-اے-دِیوانَگِی آںگَنَ میں جو دیکھا ہوگا
چھے دِسَمْبَرَ کو شْرِی رامَ نے سوچا ہوگا
اِتَنے دِیوانے کَہاں سے مِرے گھَرَ میں آئے
جَگَمَگاتے تھے جَہاں رامَ کے قَدَموں کے نِشاں
پْیارَ کِی کاہَکَشاں لیتِی تھِی اَںگَڑائی جَہاں
موڑَ نَفَرَتَ کے اُسِی راہَگُزَرَ میں آئے
دھَرْمَ کْیا اُنَ کا تھا، کْیا زاتَ تھِی، یے جانَتا کَونَ
گھَرَ نَ جَلَتا تو اُنْہیں راتَ میں پَہَچانَتا کَونَ
گھَرَ جَلانے کو مِرا لوگَ جو گھَرَ میں آئے
شاکاہارِی تھے میرے دوسْتَ تُمْہارے خَںجَرَ
تُمَ نے بابَرَ کِی تَرَفَ پھیںکے تھے سارے پَتّھَرَ
ہَے مِرے سَرَ کِی خَتا، زَخْمَ جو سَرَ میں آئے
پاںوَ سَرَجُو میں اَبھِی رامَ نے دھوئے بھِی نَ تھے
کِ نَزَرَ آئے وَہاں خُونَ کے گَہَرے دھَبّے
پاںوَ دھوئے بِنا سَرَجُو کے کِنارے سے اُٹھے
رامَ یے کَہَتے ہُئے اَپَنے دْوارے سے اُٹھے
راجَدھانِی کِی فَزا آئی نَہِیں راسَ مُجھے
چھے دِسَمْبَرَ کو مِلا دُوسَرا بَنَباسَ مُجھے
Kaifi Azmi – Dusra banwas (in Punjabi)(Ram ban-baas se jab laut ke ghar men aae)
ਰਾਮ ਬਨ-ਬਾਸ ਸੇ ਜਬ ਲੌਟ ਕੇ ਘਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਯਾਦ ਜੰਗਲ ਬਹੁਤ ਆਯਾ ਜੋ ਨਗਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਰਕ੍ਸ-ਏ-ਦੀਵਾਨਗੀ ਆਗਨ ਮੇੰ ਜੋ ਦੇਖਾ ਹੋਗਾ
ਛੇ ਦਿਸਮ੍ਬਰ ਕੋ ਸ਼੍ਰੀ ਰਾਮ ਨੇ ਸੋਚਾ ਹੋਗਾ
ਇਤਨੇ ਦੀਵਾਨੇ ਕਹਾ ਸੇ ਮਿਰੇ ਘਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਜਗਮਗਾਤੇ ਥੇ ਜਹਾ ਰਾਮ ਕੇ ਕਦਮੋੰ ਕੇ ਨਿਸ਼ਾ
ਪ੍ਯਾਰ ਕੀ ਕਾਹਕਸ਼ਾ ਲੇਤੀ ਥੀ ਅੰਗਡਾਈ ਜਹਾ
ਮੋਡ ਨਫਰਤ ਕੇ ਉਸੀ ਰਾਹਗੁਜਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਧਰ੍ਮ ਕ੍ਯਾ ਉਨ ਕਾ ਥਾ, ਕ੍ਯਾ ਜਾਤ ਥੀ, ਯੇ ਜਾਨਤਾ ਕੌਨ
ਘਰ ਨ ਜਲਤਾ ਤੋ ਉਨ੍ਹੇੰ ਰਾਤ ਮੇੰ ਪਹਚਾਨਤਾ ਕੌਨ
ਘਰ ਜਲਾਨੇ ਕੋ ਮਿਰਾ ਲੋਗ ਜੋ ਘਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਥੇ ਮੇਰੇ ਦੋਸ੍ਤ ਤੁਮ੍ਹਾਰੇ ਖੰਜਰ
ਤੁਮ ਨੇ ਬਾਬਰ ਕੀ ਤਰਫ ਫੇੰਕੇ ਥੇ ਸਾਰੇ ਪਤ੍ਥਰ
ਹੈ ਮਿਰੇ ਸਰ ਕੀ ਖਤਾ, ਜਖ੍ਮ ਜੋ ਸਰ ਮੇੰ ਆਏ
ਪਾਵ ਸਰਜੂ ਮੇੰ ਅਭੀ ਰਾਮ ਨੇ ਧੋਏ ਭੀ ਨ ਥੇ
ਕਿ ਨਜਰ ਆਏ ਵਹਾ ਖੂਨ ਕੇ ਗਹਰੇ ਧਬ੍ਬੇ
ਪਾਵ ਧੋਏ ਬਿਨਾ ਸਰਜੂ ਕੇ ਕਿਨਾਰੇ ਸੇ ਉਠੇ
ਰਾਮ ਯੇ ਕਹਤੇ ਹੁਏ ਅਪਨੇ ਦ੍ਵਾਰੇ ਸੇ ਉਠੇ
ਰਾਜਧਾਨੀ ਕੀ ਫਜਾ ਆਈ ਨਹੀੰ ਰਾਸ ਮੁਝੇ
ਛੇ ਦਿਸਮ੍ਬਰ ਕੋ ਮਿਲਾ ਦੂਸਰਾ ਬਨਬਾਸ ਮੁਝੇ
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