Kabir ke dohe in Hindi (kabir ke dohe arth sahit)
जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांहि।।
Jab main tha tab guru nahi, Ab guru hain main nahi
Prem gali ati sankari, Tamain do na samahin
अर्थात (Meaning in Hindi): जब अंहकार रूपी मैं मेरे अन्दर समाया हुआ था तब मुझे गुरू नहीं मिले थे, अब गुरू मिल गये और उनका प्रेम रस प्राप्त होते ही मेरा अंहकार नष्ट हो गया। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि इसमें एक साथ दो नहीं समा सकते अर्थात् गुरू के रहते हुए अंहकार नहीं उत्पन्न हो सकता।
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधू नाहिं।।
Sadhu bhuka bhav ka, Dhan ka bhuka nahin
Dhan ka bhuka jo firai, So to sadhu nahin
अर्थात (Meaning in Hindi): साधु संत प्रेम रूपी भाव के भूखे होते हैं, उन्हें धन की अभिलाषा नहीं होती किन्तु जो धन के भूखे होते हैं। जिसके मन में धन प्राप्त करने की इच्छा होती है वे वास्तव में साधु है ही नहीं।
माला फेरत युग गया, मिटा ना मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मन का फेर।।
Mala ferat yug gaya, Mita na mann ka fera
Kar ka manka daari de, Mann ka mann ka fera
अर्थात (Meaning in Hindi): हाथ में माला लेकर फेरते हुए युग व्यतीत हो गया फिर भी मन की चंचलता और सांसारिक विषय रूपी मोह भंग नहीं हुआ। कबीर दास जी सांसारिक प्राणियों को चेतावनी देते हुए कहते हैं- हे अज्ञानियों हाथ में जो माला लेकर फिरा रहे हो, उसे फेंक कर सर्वप्रथम अपने हदय की माला को शुद्ध करो और एकाग्र चित्त होकर प्रभु का ध्यान करो।
यह तन कांचा कुंभ है, चोट चह दिस खाय।
एकहिं गुरू के नाम बिन, जदि तदि परलय जाय।।
Yah tan kancha kumbh hai, Chott chah dees khaya
Ekhin guru ke naam bin, Jadi tadi parlaye jaya
अर्थात (Meaning in Hindi): यह शरीर मिट्टी के बने हुए कच्चे घड़े के समान है जो चारों ओर से चोट खाता है अर्थात् दुख, व्याधि रूपी चोट से सदैव पीडि़त रहता है। मात्र सदगुरू के नाम का सुमिरन न करने के कारण इस पर अनेक विपत्तियां आ रही हैं अन्यथा इसकी ऐसी दुर्दशा न होती। यह एक न एक दिन नष्ट हो जायेगा।
सब धरती कागद करूं, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र का मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय।।
Sab dharti kagad karun, Likhni sab banray
Saat samundr ka masi karun, Guru gun likha na jaya
अर्थात (Meaning in Hindi):सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज मान लें, जंगलों की लकडि़यों की कलम बना ली जाए तथा सात महा समुद्रों के जल की स्याही बना ली जाये फिर भी गुरू के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि गुरू का ज्ञान असीमित है उनकी महिमा अपरम्पार है।
NCERT SOLUTIONS CLASS 10 हिंदी साखी कबीर