एक बार एक बाज एक कबूतर का पीछा करते हुए एक बहेलिए के जाल में फंस गया। बाज ने फड़फड़ाकर जाल काटने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा। तभी उसने बहेलिए को आते देखा। वह भय से कांप गया।
वह दयनीय दृष्टि से बहेलिए को देखकर कहने लगा- ”श्रीमान, मैंने आपको कभी कोई हानि नहीं पहुंचाई है और न ही भविष्य में ऐसी कोई सम्भावना है। तो फिर आपने मुझे क्यों पकड़ लिया है? आपसे प्रार्थना है कि कृपया मुझे अपने जाल से स्वतंत्र कर दें।“
यह सुनकर बहेलिया हंसा और कहने लगा- ”मैं जानता हूं कि तुमने मुझे कोई हानि नहीं पहुंचाई है, मगर यह बताओ कि कबूतर ने तुम्हें कौन सा कष्ट दिया था? एक कबूतर तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सकता, मगर फिर भी तुम उसे मारना चाहते थे। सुनो हे बाज! मैं तुम्हें आजाद नहीं कर सकता। तुम्हारे साथ वही होगा, जो होना चाहिए।“
निष्कर्ष- दूसरों से वैसा ही बर्ताव करें, जैसा आप अपने लिए चाहते हैं।