ईमानदार तेनालीराम – Honest Tenaliraman Story in Hindi
तेनाली की लोकप्रियता से अन्य दरबारी ईर्ष्यालु हो गया थे। वजह थी राजा कृष्णदेव का तेनाली को विशेष दर्जा देना। एक बार सभी दरबारियों ने आपस मे चर्चा की कि किसी तरह तेनाली को महाराजा की नजरों मे नीचे दिखाया जाए। इसके लिए सबने मिलकर एक योजना बनाई।
अगले दिन जब दरबार लगा तो सभी दरबारियों ने तेनाली के खिलाफ राजा के कान भरने शुरू कर दिए। एक मंत्री बोला – ‘महाराजा, आजकल तेनाली आपकी कृपा का फायदा उठा कर प्रजा को डरा धमाकाकर बहुत धन एकत्रित कर रहा है।‘ राजा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। राजा ने धमकाकर उसे बैठा दिया। अन्य दरबारी सहम गए, मगर वो भी कहाँ चुप रहने वाले थे। अगली सुबह सभी ने चल चलकर एक गरीब किसान को दरबार मे पेश कर दिया। उस किसान ने कहा – ‘महाराज! तेनाली ने मुझसे काफी रकम ऐंठकर मेरे खेत मे शाही नहर से सिचाई का पानी दिलाने का वादा किया था। लेकिन न तो अब तक पानी आया है और न ही वो मेरे पैसे दे रहे है।
राजा ने उस किसान को तेनाली के खिलाफ कार्यवाही करने का आश्वासन देकर भेज दिया। सभी दरबारी अपनी चाल पर खुश थे। थोड़ी देर बाद तेनाली दरबार मे आया तो राजा ने सभी के सामने तेनाली को किसान की बात की सच्चाई जानने के बारे मे पूछा। तेनाली ने बहुत सफाई दी मगर कृष्णदेव राय ने तेनाली को दरबार से निकल जाने को कहा। तेनाली दुखी मन से घर पहुचा। अगले दिन दरबार मे एक सेवक तेनाली का खत लेकर आया।
तेनाली ने लिखा था- “महाराजा, आपने मेरी देशभक्ति और ईमानदारी पर शक किया है। अब मेरे जीवन का क्या लाभ? अतः मे आत्महत्या कर रहा हूँ। आप सदा खुश रहें। अंतिम प्रणाम- आपका तेनालीराम।“
राजा खत सुनते ही तेनाली की याद में रोने लगे। सभी दरबारी जिन्होंने तेनाली पर झूठे आरोप लगाए थे, वे भी तेनाली को ईमानदार कहने लगे। सभी मन ही मन खुश थे कि चलो तेनाली से पीछा छूटा। तभी दरबारियों मे से एक साधारण-सा किसान भेस बदलकर राजा के सामने आ गया। वो तेनाली ही था। वो हाथ जोड़कर बोला – “महाराजा, आपने और दरबारियों ने एक स्वर में मेरी ईमानदारी स्वीकार करके मुझे मरने से बचा लिया।‘ तेनाली को देखकर दरबारी सन्न और राजा प्रसन्न हो गए।