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जीवन का हर दिन होली है ! (Holi par Kavita)

जीवन का हर दिन होली है !

Holi par kavita jeevan ka har din holi haiकहीं एक नन्हा सा बिरवा उपज रहा है, धीरे-धीरे
सोख  रहा है  थोड़ा पानी,  थोड़ी  मिट्टी, धीरे-धीरे
बड़ा एक दिन होगा, उसकी  शाखों पर  होंगे पत्ते
भर  देगा   हरियाली  मेरी  आँखों  में,  धीरे-धीरे
जीवन का हर दिन होली है !

 

 
जिसकी   चादर   में   सिमटे,  ये   सूरज,   तारे  हैं  सारे
जिसके आँचल में आ सिमटे बादल, अपना  सब कुछ वारे
जिसका  विस्तार, निमंत्रण  पाखी को  देता है, उड़  जा रे
उस  नीले  अम्बर   का  नीलापन,  मेरी  आँखों  के  धारे
जीवन का हर दिन होली है !

 

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दिनभर जलकर, थककर, दिनकर का स्वर्णिम-ओज  हुआ खाली
ठंडी   बयार    के    मंद – मंद    झोंकों   ने   थपकी    दे   डाली
मानस-मन   की   सारी   पीड़ा,  ज्यों   अपने  अंतस   में   पाली
ढलती   शामों   ने   आकर   मेरी   आँखों   में   भर   दी   लाली
जीवन का हर दिन होली है !

 

 
पीली-राखी,  पीली-हल्दी,  पीली सरसों,  पीली चादर
सिन्दूर  सुहागन  मांगों में,  धानी-धानी लहरी चूनर
प्रेम-पिपासु नयनों में बिखरा-बिखरा दूध और केसर
रंगों का उत्सव मनता है पल-पल में देखो जीवन भर

जीवन का हर दिन होली है !

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– पुष्पेन्द्र वीर साहिल
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