जिंदगी कितनी हसीन है पर इसमें हजारों दर्द है।
एक दर्द उस लड़की का भी जो अभी उड़ना ही सीख रही थी कि किसी ने उसके पंख ही काट डाले ओर उस बेचारी को पता भी नहीं चला।
वो इस बात को समझने की कोशिश ही कर रही थी की उस को उस दरिंदे ने प्यार से बेहला कर अपने वश में कर लिया ओर वो मासूम इस बात को समझ ही ना सकीं।
जिसको अपना गुरु माना वही दरिंदे निकले। वह नादान कभी किसी को कुछ ना बता पायी, ना जाने क्यू उसको एक डर था की कही सब उसको ही ना गलत समझ बेठे और उसके अपने उसका साथ दे ना दे।
वह बड़ी अवश्य हो गई पर कभी किसी को बताने की हिम्मत नहीं कर पायी की बाल अवस्था मे उसके साथ क्या हुआ था और आज भी जब वह सब कुछ याद करती है तो खुद से घृणा करती है कि क्यू मै ही क्यू? क्या कसूर था मेरा जो बार बार मेरे साथ ये हुआ..अखिर क्या गलती थी जो ये सजा मिली मुझको जिसका कभी दुनिया वालों को पता भी नहीं चला, क्यू लड़ने की हिम्मत नहीं है उस से जिसने ये किया। किस किस से लड़ना पड़ेगा बस यही सोचकर चुप हू।
अब तो जिंदगी ही निकलती जा रही हैं, पर शायद मरते समय वह जरूर ये सब याद करेगा की उस ने उस मासूम की ज़िंदगी शुरु होने से पहले ही खत्म करदी थी।
“आज भी जब एक बच्ची घर से बाहर निकलती है तो हज़ारों दरिंदे उसपे अपनी नजरे लगाए बेठे होते है, पर वो मासूम हर सुबह यही सोचकर घर से निकलती है की ज़िंदगी बहुत हसीन है”।