यूनान के सुप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात अपने शिष्यों से घिरे बैठे थे। तभी एक ज्योतिषी आया जो चेहरा देखकर भविष्य बताने का दावा करता था। सुकरात के विचार जितने सुन्दर होते थे उतने ही वह बदशक्ल थे।
उस ज्योतिषी ने सब के सामने सुकरात के बारे में कहा, ‘यह व्यक्ति महाक्रोधी है। यह बात इसके नथुनों की बनावट से स्पष्ट प्रतीत हाती है।
यह सुनकर सुकरात के शिष्यों को क्रोध आ गया। लेकिन ज्योतिषी निर्भयतापूर्वक आगे बोला, ‘इस व्यक्ति के ललाट व शीश की रचना से पता चलता है कि यह लोभी भी है। ठोड़ी से लगता है कि यह सनकी है। होंठों व दांतों को देखने से पता चलता है कि यह देशद्रोह के लिए सदैव उत्सुक रहता है।’
यह सब सुनकर सुकरात ने ज्योतिषी को पुरस्कार देकर विदा किया। यह देखकर सुकरात के शिष्य असमंजस में पड़ गए।
सुकरात ने अपने शिष्यों के विस्मय को दूर करने के लिए ध्येय से कहा, ‘ज्योतिषी ने जो भी अवगुण बताए, वह सब मुझमें विद्यमान हैं। सत्य को छिपाना व्यर्थ है, मैं उन सब अवगुणों को स्वीकार करता हूं। हां, ज्योतिषी ने एक गलती कर दी… उसने मेरे ज्ञान का विचार नहीं किया। ज्ञान शक्ति के कारण ही मैं अपने तमाम अवगुणों को नियंत्रित किए रहता हूं। ज्योतिषी ने मात्र यही एक बात नहीं बताई।’