नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाने के साथ ही नार्थ-ईस्ट की इस सुदूर स्टेट को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां चरम पर हैं। कांग्रेस पार्टी ने भाजपा पर राजनीतिक फायदे के लिए उसकी सरकार गिराने और राज्य में अवैधानिक तरीके से प्रेसिडेंट रूल लगाने का आरोप लगते हुए इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। कांग्रेस पार्टी की अरुणाचल प्रदेश में केंद्र की भाजपा सरकार के राष्ट्रपति शासन लगाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई जिसमें केंद्र सरकार ने अपनी सफाई दी है।
इस मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश किए एफिडेविट में केंद्र की एनडीए सरकार ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है और ऐसे में वहां पर चीन से वॉर के संभावित खतरे को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लगाया जाना बेहद जरूरी और राष्ट्रहित में लिया गया फैसला है। ज्ञात हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस की याचिका पर 27 जनवरी को नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
कांग्रेस सरकारों के समय राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा कर चुनी हुई सरकाओं को अस्थिर करने के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं । इसकी शुरुआत विशेष रूप से श्रीमती इंदिरा गांधी के जमाने में हुई बताया जाता है । श्रीमती गांधी के समय में गैर-कोंग्रेसी सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने , दल-बदल कर कांग्रेस की सरकार बनवाने और विपक्षी पार्टियों के विधायकों की खरीद-फरोख्त कर सरकार गिराने-बनाने के अनेकों आरोप कांग्रेस को झेलने पड़े हैं । लेकिन यह पहली बार है कि भाजपा सरकार पर एक चुनी हुई कांग्रेस सरकार को अस्थिर कर उसे गिराने का आरोप लगा है।
पाठकों की जानकारी के के लिए ज्ञात हो कि केंद्र के प्रेसिडेंट रूल लगाने के फैसले को कांग्रेस ने सर्व्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) समेत तमाम प्रमुख विपक्षी दल भी इसे लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं। दरअसल अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने को राज्यों की विपक्ष की सरकारें अपने लिए खतरे की घंटी मान रही हैं ।
केंद्र सरकार का रूख यह है कि विगत में इस विवाद के दौरान कांग्रेस के मुख्यमंत्री और स्पीकर ने असंवैधानिक तरीकों से विश्वास मत हासिल करने की कोशिश की थी । मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष द्वारा विधानसभा परिसर को ताला बंद किये जाना कुछ ऐसा है जैसे कि भारतीय संविधान की मर्यादा को तक पर रख दिया जाये। अपने एफिडेवट में सरकार ने कहा कि राज्य के हालात को देखते हुए वहां प्रेसिडेटं रूल लगाए जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया था ।
अरुणाचल में पिछले कई दिनों से राजनीतिक उठापटक चल रही है। कांग्रेस सरकार 42 में से 21 विधायक बागी हो गए हैं। 16-17 दिसंबर को सीएम नबाम टुकी के कुछ विधायकों ने बीजेपी के साथ नो कॉन्फिडेंस मोशन पेश किया और सरकार की हार हुई। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस सरकार असेंबली भंग करने के मूड में नहीं थी और जोड़-तोड़ की तमाम कोशिशें करने में लगी हुई थी। पूर्व सीएम नबाम टुकी के कहा कि अरुणाचल के लोग इस फैसले से नाराज हैं। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मिलेगा।
पिछले रविवार को नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई कैबिनेट मीटिंग में इस पर चर्चा हुई थी। बाद में, सिफारिश को प्रेसिडेंट के पास भेज दिया गया। प्रेसिडेंट ने राज्य में ‘संवैधानिक संकट’ मानकर सिफारिश को मंजूरी दे दी। गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू के मुताबिक, यह कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई है।
अरुणाचल असेंबली में कुल 60 सीटें हैं। 2014 में हुए इलेक्शन में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। बीजेपी के 11 और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (PPA) को पांच सीटें मिलीं। पीपीए के 5 एमएलए कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसके बाद सरकार के पास कुल 47 एमएलए हो गए। लेकिन मौजूदा हालात में सीएम टुकी के पास सिर्फ 26 विधायकों का ही सपोर्ट है। सरकार बचाने के लिए कांग्रेस को कम से कम 31 विधायकों का सपोर्ट चाहिए। इन हालात में मुख्यमंत्री की सरकार का गिरना तय था।
इस बीच खबर है कि बीजेपी के तेज-तर्रार सांसद और असंतुष्ट नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट कर इस मसले में भाजपा के रूख की आलोचना की है। शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी ही पार्टी के निर्णय पर तंज कस्ते हुए कहा है कि, “पीएम मोदी को अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन की सलाह किसने दी?” मायने यह कि शत्रुघ्न सिन्हा की नजरों में यह एक मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शी कदम है और भविष्य में भाजपा को इस कदम से नुक्सान होने की सम्भावना है।