गुरू नानक देव सिक्खों के प्रथम गुरू थे। उन्होंने ही ‘सिक्ख धर्म’ की स्थापना की। वह एक महापुरूष व महान धर्म प्रवर्तक थे। उन्होंने संसार की अज्ञानता को दूर कर आध्यात्मिक शक्तियों को अपनाने के लिये प्रेरित किया।
गुरू नानक देव का जन्म सन् 1526 ई. में पंजाब में तलवंडी नामक गांव में हुआ था। यह स्थान पाकिस्तान में ‘ननकाना साहिब’ के नाम से सिक्खों का तीर्थ स्थल है। गुरू नानक देव की माँ धार्मिक स्वभाव की थीं। उनके संस्कारों का गुरू नानक देव पर गहरा असर पड़ा।
गुरू नानक देव जी बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे मगर उनका मन स्कूली शिक्षा में नहीं लगता था। साधु संतों और विद्धवानों की संगति इन्हें अच्छी लगती थी। इनके पित ने सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षित करने के लिये इन्हें पशुपालन का काम दिया मगर नानक देव का अधिकतर समय भगवान की भक्ति एवं साधना में ही बीतता था।
गुरू नानक देव के जीवन में अनेक अद्भुत और असाधारण घटनायें घटीं। जिससे यह सिद्ध हो गया कि यह एक महान आत्मा हैं। नानक के उपदेशों और ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें ‘देव’ व गुरू कहने लगे।
गुरू नानक देव एक महान आत्मा थे। उन्होंने सदैव सादा जीवन एवं उच्च विचारों को प्राथमिकता दी। वह चाहते थे कि उनके अनुयायी उच्च सिद्धातों का पालन करें। उन्होंने लोगों को प्रेरित करने के लिये कहा-
‘रैन गंवाई सोई कै, दिवस गंवाया खाय।
हीरे जैसा जन्मु है, कौड़ी बदले जाय।’
गुरू नानक देव मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। गुरू नानक देव ने सत्तर वर्ष की आयु तक अपने ज्ञान व उपदेश द्वारा लोगों का मार्गदर्शन किया। उनके उपदेश व उनकी शिक्षा आज भी अमरवाणी के रूप में हमारे बीच उपस्थित है जो आज भी हमें प्रेरित करती हैं। सिक्ख धर्म के अनुयायी, गुरू नानक देव की अराधना एवं भक्ति करते हैं उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।