भारत में किसानो की आत्महत्या सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है| भारत एक कृषि आधारित राष्ट्र है| अभी भी इस देश के किसानों की स्थिति किसी भी अन्य विकासशील देशों की तुलना में अधिक चिंताजनक है। पिछले दो दशकों में हमारे देश में आत्महत्या करने वाले किसानों की प्रवृत्ति बढ़ रही है। पहली बार यह बेहद चुनौतीपूर्ण मुद्दा सामने आया जब महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कपास की खेती में लगे कुछ किसानों ने अचानक आत्महत्या कर दी। यह प्रवृत्ति जो कि शुरू में महाराष्ट्र के किसानों द्वारा शुरू की गई. देश भर में धीरे-धीरे फैल गई। आज स्थिति और भी खराब हो गई है और लगभग हर राज्य में सरकार को किसानों की आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों से निपटना मुश्किल हो रहा है।
आत्महत्या के कारण: उदारीकरण और वैश्वीकरण
यह उदारीकरण और वैश्वीकरण के कारण है कि सस्ती कीमतों पर अनाज का आयात पहले ही शुरू हो चुका है| दूसरी तरफ हमारे देश के किसानों को खेतों में अपनी तैयार फसलों को जलाने के लिए मजबूर किया जाता है। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?
गरीब किसानो पर ऋण की बढ़ती ब्याज उनको और उनके किसानो को आत्महत्या करने पर मजबूर करता है| कई बार किसान फसल की कटाई के लिए भी ऋण लेते है| परन्तु फसल की सही कीमत न मिलने से वो ऋण चुकाने में असमर्थ होते है|
किसानो की आत्महत्या का निदान महत्वपूर्ण है
सरकार को इस मुद्दे के मूल कारण का निदान करने के लिए अब और बिना समय खोए उचित कदम उठाना जरूरी है| उन्हें नई, सरलीकृत कल्याणकारी योजनाएं पेश करनी चाहिए| जो किसानों को उनकी फसल के लिए अच्छी आधार मूल्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है| खेती के लिए ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध करना चाहिए।
निष्कर्ष: भारत जैसे कृषि देश के लिए, किसान आत्महत्या एक अत्यंत चिंताजनक स्थिति है| यह निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय समस्या है जो तत्काल समाधान की मांग करती है। सरकार को गरीब और भूमिहीन किसानों के लिए और अधिक प्रभावी कल्याणकारी योजनाएं चलनी चाहिए| जिनमें से कुछ फसल बीमा की तरह हो और कुछ न्यूनतम ब्याज दरों पर किसानों को ऋण प्रदान करने सम्बन्धी। अगर ऐसी कल्याणकारी योजनाओं को तुरंत और बिना किसी समय खोये बनाई जाती है| तो केवल तब ही किसानों को आत्महत्या करने से रोका जा सकता है।