Advertisement

एही सम विजय उपजा न दूजा में कौन सा अलंकार है?

एही सम विजय उपजा न दूजा में कौन सा अलंकार है?

एही सम विजय उपजा न दूजा में कौन सा अलंकार है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
एही सम विजय उपजा न दूजा में उपमा अलंकार है क्योंकि यहाँ विजय की तुलना से की गई है।

एही सम विजय उपजा न दूजा में उपमेय, उपमान, समान धर्म एवं वाचक को स्पष्ट कीजिये

Advertisement

उपमेय – जिसकी उपमा दी जाय। उपर्युक्त पंक्ति में विजय उपमेय है।

उपमान – जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमा दी जाती है। उपर्युक्त पंक्ति में उपमान है।

Advertisement

समान धर्म – उपमेय-उपमान की वह विशेषता जो दोनों में एक समान है। उपर्युक्त उदाहरण में समान धर्म है।

वाचक शब्द – वे शब्द जो उपमेय और उपमान की समानता प्रकट करते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में सम वाचक शब्द है।

Advertisement

एही सम विजय उपजा न दूजा में उपमा अलंकार का कौन सा भेद है?

एही सम विजय उपजा न दूजा में उपमा का भेद है – लुप्तोपमा

Advertisement

उपमा अलंकार- जब काव्य में किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना किसी अत्यंत प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से की जाती है तो उसे उपमा अलंकार कहते हैं

सा, से, सी, सम, समान, सरिस, इव, समाना आदि कुछ अन्यवाचक शब्द है।

उपमा अलंकार के तीन भेद हैं–पूर्णोपमा, लुप्तोपमा और मालोपमा।

(क) पूर्णोपमा – जहाँ उपमा के चारों अंग विद्यमान हों वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है;

जैसे-
हरिपद कोमल कमल से”

(ख) लुप्तोपमा – जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव हो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है;

Advertisement

जैसे-
“पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
लपेटे थे घन जैसे बाल”।

(ग) मालोपमा – जहाँ किसी कथन में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।

जैसे-
“चन्द्रमा-सा कान्तिमय, मृदु कमल-सा कोमल महा
कुसुम-सा हँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।।”

Advertisement

उपमा अलंकार के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ:

उपमा अलंकार – परिभाषा, भेद एवं उदाहरण

Advertisement

Leave a Reply