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देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी ने किये थे ऐसे चमकारिक निर्माण

Devtaon Ke Shilpi Vishwakarma Ji Ne Kiye The Aise Chamkarik Nirman

हम में से शायद कुछ ही लोग होंगे जो वास्तव में ये जानते होंगे कि आखिर विश्वकर्मा को देव शिल्पी क्यों कहा जाता है।

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मविद्या की जानकार थीं। उनका विवाह आठवें वसु महर्षि प्रभास के साथ संपन्न हुआ था। विश्वकर्मा इन दोनों की ही संतान थे।

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कहीं-कहीं भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मा जी का पुत्र भी कहा गया है, जिन्हें देवताओं का शिल्पी के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा विश्वकर्मा भगवान को सभी शिल्पकारों और रचनाकारों का भी इष्ट देव माना जाता है।Devtaon Ke Shilpi Vishwakarma Ji Ne Kiye The Aise Chamkarik Nirman

चलिए जानते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने किन-किन स्थानों का निर्माण किया, जिनके आधार पर उन्हें देव शिल्पी की उपाधि प्राप्त हुई।

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की सोने की खूबसूरत लंका का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था।

पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार माल्यवान, माली और सुमाली नामक तीन राक्षस भगवान विश्वकर्मा के पास गए और उनसे अपने लिए भव्य महल और राज्य का निर्माण करने के लिए कहा।

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तब विश्वकर्मा भगवान ने उन्हें बताया कि इन्द्र की आज्ञा पाकर उन्होंने ही त्रिकुट पर्वत पर बसी सोने की लंका का निर्माण किया था, तुम वहां जाकर रह सकते हो। इस तरह लंका पर राक्षसों का आधिपत्य स्थापित हो गया।

जबकि कुछ स्थानों पर यह पढ़ने को मिलता है कि रावण के सौतेले भाई, धन कुबेर के कहने पर ही विश्वकर्मा ने सोने की लंका निर्माण किया था। इस लंका को बाद में धन कुबेर ने ही रावण को दे दिया था।

जब रावण सीता का हरण कर अपने पुष्पक विमान पर बैठाकर उन्हें लंका से जाता है तब वहां तक पहुंचने के लिए भगवान राम की आज्ञा पाकर वानर सेना ने सागर पर पुल बांधा था।

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वाल्मीकि रामायण के अनुसार शिल्पकला में निपुण नल नामक वानर जो विश्वकर्मा का ही पुत्र था, ने रामसेतु का निर्माण किया था। जिस रथ पर बैठकर महादेव ने विद्युन्माली, तारकाक्ष और कमलाक्ष का वध किया था, उस रथ का निर्माण करने वाले भगवान विश्वकर्मा ही थे।

महादेव का यह रथ सोने का था जिसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। इसके अलावा दाहिने पहिए में 12 और बाएं पहिए में 16 आरे थे।

श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी का निर्माण करने वाले भी भगवान विश्वकर्मा ही थे। इस नगरी के आधार पर भगवान विश्वकर्मा ने अपनी वैज्ञानिक समझ की एक अद्भुत मिसाल पेश की थी।

द्वारका नगरी की लंबाई और चौड़ाई, दोनों ही 48 कोस की थी। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस नगरी में भवन, सड़के, गलियों और चौराहों का निर्माण किया गया था।

देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा को समर्पित विश्वकर्मा दिवस भी मनाए जाने की परंपरा है। दिवाली के अगले दिन बड़ी धूम-धाम से विश्वकर्मा दिवस मनाया जाता है और इस दिन सभी कारीगर अपने-अपने औजारों की पूजा करते हैं।

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