चार चोर थे। चारों ही मिलकर चोरी करते थे और जो भी माल मिलता था, उसे आपस में बांट लिया करते थे।
वे थे तो इकट्ठे, मगर थे बड़े स्वार्थी। हरेक चोर यही सोचता रहता था कि किसी दिन मोटा माल हाथ लगे तो अपने बाकी साथियों को मारकर सारा माल स्वयं ही हथिया लूं।
मगर आज तक ऐसा मौका नहीं आया था।
एक रात उन्होंने एक नगर सेठ के यहां सेंध लगाई। उनके हाथ खूब माल लगा। उन्होंने सारा धन एक थैले में भरा और उसे लेकर जंगल की ओर भाग निकले।
दो दिन तक वे भूखे-प्यासे जंगल में छिपे रहे।
वे जानते थे कि नगर सेठ के यहां सेंध लगाने की वारदात से शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस फैल गई होगी। वे अभी कुछ दिन तक और जंगल में ही छिपे रहना चाहते थे।
मगर मजबूरी यह थी कि उनके पास खाने-पीने का सामान नहीं था। जहां तक सम्भव था, उन्होंने भूख बर्दाश्त की।
मगर जब भूख बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उन्होंने फैसला किया कि उनके दो साथी शहर जाकर वहां का माहौल भी देख आएं और खाना भी ले आएं।
ऐसा निश्चय कर उनमें से दो शहर की ओर चल दिए।
शहर जाकर उन्होंने खूब जमकर खाया और दोनों ने योजना बनाई की अपने दो साथियों को ठिकाने लगाकर सारा माल खुद ही हड़प लें। अतः उन्होंने अपने साथियों के खाने में जहर डाल दिया। उनमें से भी प्रत्येक यही सोच रहा था कि जब हम दो रह जाएंगे, तो इसे मारकर मैं अकेला ही सारा माल हथिया लूंगा।
इधर, जंगल में दोनों चोरों ने खाने का सामान लाने गए अपने साथी चोरों की हत्या कर डालने की योजना बना ली थी। वे भी उन्हें अपने रास्ते से हटाकर सारा धन आपस में बांट लेना चाहते थे।
चारों चोरों ने दो ग्रुप बनाकर अपनी अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य किया।
पहला ग्रुप ज्यों ही जहरीला भोजन लेकर जंगल में पहुंचा कि दूसरे ग्रुप ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने लाठियां बरसाकर उनकी जान ले ली। फिर वे निश्चित होकर भोजन करने बैठ गए। मगर जहरीला भोजन खाते ही वे दोनों तड़प-तड़प कर मर गए।
इस प्रकार इन बुरे लोगों का अंत भी बुरा ही हुआ।