Jaise ko taisa kahani
एक गांव में चूहों का आतंक छाया हुआ था। हजारों चूहे थे उस गांव में। उनकी तादाद इतनी अधिक थी कि आसपास के गांव वाले उस गांव को चूहों वाला गांव कहकर पुकारते थे।
उस गांव में ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां चूहे न हों। घर में, दुकान में, गोदाम में, खेतों में, खलिहानों में हर जगह चूहे ही चूहे भरे पड़े थे।
ये चूहे ढेरों अनाज खा जाते थे। घर का सामान, कपड़े, कागज पत्र सब कुछ कुतर डालते।
पूरे गांव में चूहों का उत्पात मचा हुआ था। यहां तक कि मासूम बच्चों का कोमल शरीर तक भी ये कुतन लेते थे। चूहों के कारण गांव के लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा था। गांव वाले किसी भी कीमत पर इन चूहों से छुटकारा पाना चाहते थे। इसलिए वह कई बार सभा भी कर चुके थे और कई बार बाहर से शिकारियों को बुला चुके थे, मगर शिकारी भला चूहों को कैसे पकड़ते। चूहे खतरा भांपते ही बिलों में घुस जाते।
कई बार गांव में बिल्लियां लाकर छोड़ी गईं तो गांव में मौजूद कुत्तों के डर से वे स्वयं भाग गईं।
बेचारे गांव वाले थक-हारकर बैठ गए और उन्होंने सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया।
एक दिन जैसे ईश्वर ने उनकी सुन ली। उस दिन एक बांसुरी वाला गांव में आया।
उसने देखा कि गांव के लोग चूहों से ग्रस्त हैं। उसने गांव वालों से कहा, ”मैं गांव के सारे चूहों को खत्म कर दूंगा। पर इसके बदले तुम लोगों को मुझे हजार स्वर्ण मुद्राएं देनी होंगी।“
गांव वालों ने बांसुरी वाले को हजार स्वर्ण मुद्राएं देना स्वीकार कर लिया।
मामला तय होते ही बांसुरी वाला मधुर स्वर में बांसुरी बजाने लगा। बांसुरी की आवाज सुनकर सभी चूहे घरों, दुकानों, गोदामों तथा खेत-खलिहानों से निकलकर दौड़-दौड़कर बाहर आने लगे और बांसुरी की आवाज सुनकर नाचने लगे।
बांसुरी वाला बांसुरी बजाते-बजाते नदी की ओर चल पड़ा।
चूहे भी नाचते-नाचते उसके पीछे चल दिए।
वह नदी के पानी में उतर गया। उसके पीछे-पीछे चूहे भी पानी में उतर गए।
इस तरह सारे चूहे पानी में डूबकर मर गए। इसके बाद बांसुरी वाला गांव में लौटा। उसने गांव वालों से अपना पारिश्रमिक मांगा। पर गांव वालों ने पैसे देने से इन्कार कर दिया। उन्होंने सोचा कि चूहों से मुक्ति तो मिल ही गई है, अब व्यर्थ में हजार स्वर्ण मुद्राएं क्यों दी जाएं।
उनके इन्कार करने पर बांसुरी वाले को बहुत क्रोध आया। उसने तुरन्त उन्हें सबक सिखाने का निर्णय कर लिया।
उनसे बिना कुछ कहे वह मधुर स्वर में बांसुरी बजाने लगा। इस बार बांसुरी की धुन उस धुन से बिल्कुल अलग थी जो उसने चूहों के लिए बजाई थी।
बांसुरी की आवाज सुनकर गांव के सारे बच्चे उसके करीब आ गए और मस्त होकर नाचने लगे।
बांसुरी वाला बांसुरी बजाता रहा और बच्चे मस्ती में नाचते रहे।
बहुत देर तक ये तमाशा चलता रहा। गांव के लोग उत्सुकता से वह तमाशा देखते रहे। फिर, एकाएक ही बांसुरी वाला गांव से बाहर की तरफ चल दिया। बच्चे भी उसके पीछे चल दिए।
अब गांव वाले चौंके। अब उनकी समझ में आया कि क्या होने जा रहा है।
यह बांसुरी वाला तो उनके बच्चों को भी ले जाकर नदी में डुबो देगा।
यह ख्याल मन में आते ही वे दौड़कर गए और बांसुरी वाले के कदमों में गिर पड़े। बोले- ”हमें माफ कर दो और हमारे बच्चों को छोड़ दो। हम तुम्हें दो हजार स्वर्ण मुद्राएं देने को तैयार हैं।“
”नहीं। अब मैं दस हजार स्वर्ण मुद्राएं लूंगा। तुम जैसे बेईमानों के लिए यही दण्ड उचित है।“
इस बार गांव वालों ने चुपचाप दस हजार स्वर्ण मुद्राएं देकर अपने बच्चों को बचाया।