बहार आई तो जैसे एक बार- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
बहार आई तो जैसे एक बार
लौट आये हैं फिर अदम से
वो ख़्वाब सारे, शबाब सारे
जो तेरे होंठों पे मर मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिये थे
निखर गये हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुशकबू हैं
जो तेरे उशाक का लहू हैं
उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाले-अहवाले-दोस्तां भी
ख़ुमारे-आग़ोशे-महवशां भी
ग़ुबारे-ख़ातिर के बाब सारे
तेरे हमारे
सवाल सारे, जवाब सारे
बहार आई तो खुल गए हैं
नये सिरे से हिसाब सारे
तुम अपनी करनी कर गुज़रो – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
अब कयूं उस दिन का ज़िकर करो
जब दिल टुकड़े हो जायेगा
और सारे ग़म मिट जायेंगे
जो कुछ पाया खो जायेगा
जो मिल न सका वो पायेंगे
ये दिन तो वही पहला दिन है
जो पहला दिन था चाहत का
हम जिसकी तमन्ना करते रहे
और जिससे हरदम ड्रते रहे
ये दिन तो कितनी बार आया
सौ बार बसे और उजड़ गये
सौ बार लुटे और भर पाया
अब कयूं उस दिन की फ़िकर करो
जब दिल टुकड़े हो जायेगा
और सारे ग़म मिट जायेंगे
तुम ख़ौफ़ो-ख़तर से दरगुज़रो
जो होना है सो होना है
गर हंसना है तो हंसना है
गर रोना है तो रोना है
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
जो होगा देखा जायेगा
कुछ इश्क किया कुछ काम किया – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
वो लोग बहुत ख़ुश-किस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते-जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया