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बच्चों की शिक्षाप्रद कहानी – कहानी बात का घाव – Shikshaprad kahani

Bachchon ki Shikshaprad kahani – Bat ka ghav

Bachchon ki Shikshaprad kahani - Bat ka ghavबहुत पुरानी बात है, एक लकड़हारे और शेर में गहरी मित्रता थी। दोनों का मन एक दूसरे के बिना नहीं लगता था। शेर जंगल में रहता था और लकड़हारा गांव में। लकड़हारा लकड़ियां काटकर और उन्हें बेचकर अपनी गृहस्थी चला रहा था। सारे दिन वह जंगल में लकड़ियां काटता था और शेर उसके पास बैठकर उससे बातें किया करता था।

एक दिन लकड़हारे ने शेर की दावत करने की सोची और फिर उसने शेर के सामने दावत का प्रस्ताव रखा। उसने दावत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। लकड़ियां काटने के बाद शाम को लकड़हारा शेर को अपने घर ले गया। शेर को लकड़हारे के साथ देखकर लकड़हारे की पत्नी और बच्चे डर गए। उन्हें डरा देख लकड़हारे ने उनका डर दूर करते हुए बताया कि शेर उसका मित्र है और आज हमारा अतिथि है। लकड़हारे के बताने पर उसके बच्चे खुश हो गए परंतु उसकी पत्नी खुश नहीं हुई। वह बुरा सा मुंह बनाते हुए अंदर घर में चली गई।

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लकड़हारे ने शेर की खूब आवभगत की। उससे जो भी बन पड़ा उसने शेर के लिए किया। रात को सोने का वक्त होने पर लकड़हारे ने शेर को अपने साथ घर में सुलाना चाहा पर उसकी पत्नी ने शेर को घर में सुलाने का विरोध करते हुए कहा कि वह शेर को किसी भी कीमत पर घर में नहीं सोने देगी क्योंकि शेर जैसे खूंखार जीव का कोई भरोसा नहीं होता, ऐसा जीव कभी भी नुकसान पहुंचा सकता है। पत्नी के विरोध करने पर लकड़हारे ने पत्नी को समझाया- ‘यह शेर और शेरों की तरह नहीं है। यह साथ सोने पर किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा।’लेकिन उसकी पत्नी शेर को घर में सुलाने को तैयार नहीं हुई। आखिर हार-थक कर लकड़हारे को अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी। लकड़हारे की पत्नी ने लकड़हारे से शेर के गले में रस्सी बांधकर घर के बाहर खड़े एक पेड़ से बांधने को कहा, पत्नी की बात मानकर लकड़हारे ने ऐसा ही किया।

उस रात अचानक मौसम खराब हो गया, लकड़हारा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घर में आराम से सोता रहा किंतु शेर बेचारा सारी रात पेड़ के नीचे बंधा बारिश और तेज हवा के थपेड़े सहता रहा। सुबह को लकड़हारा सोकर उठा तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसकी वजह से उसका मित्र सारी रात बारिश में भीगता रहा। यह सोचकर लकड़हारे को बहुत दुख हुआ, उसने शेर से माफी मांगी। शेर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है मित्र, यह सब खराब मौसम की मेहरबानी है।’ शेर की बात सुनकर लकड़हारे को खुशी हुई कि उसका मित्र उससे नाराज नहीं है। लकड़हारा लकड़ियां काटने जंगल आया तो शेर भी उसके साथ जंगल चला गया। लकड़हारा एक दो दिन और शेर को अपने घर रोकना चाहता था पर शेर नहीं रूका।

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इन बातों को कई दिन गुजर गए। एक दिन लकड़हारा लकड़ियां काटने के बाद जब घर जाने की तैयारी में था तो शेर उसके पास आया और बोला, ‘मित्र, अपनी कुल्हाड़ी मेरी पीठ पर मारो।’

शेर की ये बात सुनकर लकड़हारा चौंक गया, उसने सोचा शायद शेर उससे मजाक कर रहा है। शेर ने दोबारा कुल्हाड़ी मारने को कहा, तो लकड़हारा हैरानी से बोला, ‘यह तुम क्या कह रहे हो मित्र….. मैं भला तुम्हें कुल्हाड़ी कैसे मार सकता हूं।’

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लकड़हारे के इनकार करने पर शेर दहाड़ते हुए बोला, ‘अगर, तुमने मेरा कहा नहीं माना तो मैं तुम्हें मारकर खा जाऊंगा।’ शेर का बदला रूप देखकर लकड़हारा डर गया। उसकी समझ में नहीं आया कि उसका मित्र उससे कुल्हाड़ी मारने को क्यों कह रहा है। उसने इस बारे में शेर से पूछा किंतु शेर ने उसे कुछ नहीं बताया। शेर ने तीसरी बार चेतावनी देते हुए कुल्हाड़ी मारने के लिए कहा। मरता क्या न करता, लकड़हारे ने अपनी जान बचाने के लिए शेर की पीठ पर कुल्हाड़ी दे मारी। कुल्हाड़ी लगते ही शेर की पीठ पर गहरा जख्म हो गया। जिससे खून बहने लगा। शेर लकड़हारे को आश्चर्यचकित छोड़ अपनी गुफा की आरे चला गया।

अगले दिन लकड़हारा डरते-डरते जंगल में लकड़िया काटने गया कि पता नहीं आज उसके प्रति शेर का कैसा व्यवहार होगा। शेर ने लकड़हारे के साथ और दिन की ही तरह व्यवहार किया तो लकड़हारे के दिल को तसल्ली हुई। शेर की पीठ का जख्म वक्त के साथ-साथ भरता गया।

एक दिन शेर ने लकड़हारे से अपने जख्म के बारे में पूछा तो लकड़हारे ने खुश होते हुए बताया, ‘मित्र तुम्हारा जख्म अब पूरी तरह भर गया है।’ लकड़हारे के बताने पर शेर गंभीर होते हुए बोला, ‘जानना चाहते हो मित्र, मैंने तुमसे अपनी पीठ पर कुल्हाड़ी क्यों लगवाई थी?’

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शेर के कहने पर लकड़हारे ने हामी भर दी। वह भी यह बात जानते को उत्सुक था। शेर उसे बताने लगा। घर आया अतिथि भगवान के समान होता है मित्र और अतिथि का आदर बड़े प्रेम से किया जाता है। मैं भी तुम्हारा अतिथि था किंतु तुमने और तुम्हारी पत्नी ने मेरा आदर करने की जगह मेरा अपमान किया। तुम्हारी पत्नी का व्यवहार मेरे प्रति दुत्कारने वाला था, पत्नी के कहने पर तुमने मुझे घर से बाहर पेड़ से बांध दिया, जहां मैं सारी रात बारिश के मौसम में भीगता रहा। उस दिन की बात का जख्म मेरे दिल पर आज भी ताजा है। मैंने तुमसे अपनी पीठ पर कुल्हाड़ी इसीलिए लगवाई थी ताकि मैं तुम्हें दिखा सकूं कि चोट का जख्म तो भर जाता है किंतु बात का जख्म कभी नहीं भरता। एक बात कान खोलकर सुन लो, तुम्हारी और मेरी मित्रता केवल आज तक थी। आज के बाद न मैं तुम्हारा मित्र हूं और न ही तुम मेरे मित्र हो और अगर आज के बाद तुम मुझे इस जंगल में दिखाई दे गए तो मैं तुम्हें अपना भोजन बना लूंगा। शेर अपनी बात पूरी करने के बाद चला गया।’

लकड़हारा ठगा-सा शेर को जाते हुए देखता रहा। अपनी पत्नी के गलत व्यवहार की वजह से आज उसने अपना पुराना मित्र खो दिया था। उसे बहुत पछतावा हुआ किंतु अब पछताने से क्या फायदा था। लकड़हारा दुखी मन से गांव की तरफ चल दिया।

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