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बच्चों की कहानी – स्वर्ग के वस्त्र

एक बार एक युवक दलदल के पास से जा रहा था। अचानक उसे लगा कि कोई दलदल में फंसा हुआ है। वह युवक वहीं रूक गया और दलदल के किनारे तक गया। निकट पहुंचने पर उसने देखा कि कीचड़ में एक हंसिनी फंसी है और उसके पंख में एक नुकीला बाण घुसा हुआ है। उसकी ऐसी दारूण दशा को देखकर युवक का हदय पसीज उठा। उसने उसको दलदल से निकाला और अपनी गोद में बिठाकर उस बाण को भी बाहर निकाल दिया। थोड़ी देर बाद वह हंसनी पीड़ा से मुक्त हो गई। उसको पीड़ा मुक्त देखकर युवक ने उसे खुली हवा में विचरण के लिए छोड़ दिया और आगे चल पड़ा।

एक रोज रात बड़ी सुनसान थी। एक तारा भी आकाश में दिखाई नहीं देता था। युवक अपना कमरा बंद किए कुछ काम कर रहा था कि किसी ने उसक दरवाजा खटखटाया, युवक ने पूछा, ”कौन है?“Bachchon ki kahani - swarg ka vastra

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”मैं बहुत विपत्ति में हूं। क्या आप मुझे एक रात यहां ठहरने का स्थान दे सकेंगे?“ एक पतली और करूण आवाज में किसी ने कहा।

युवक ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ”क्यों नहीं। जरा भी संकोच की बात नहीं है। आइए, आप भीतर आ जाइए।“ युवक के सामने एक बहुत ही सुंदर युवती खड़ी थी।

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युवक उसे देखकर हतप्रभ रह गया। वह बहुत गरीब था। उसके पास न बढ़िया बिछौना थ, न गुदगुदा पलंग, न बड़ा कमरा। उसने दुखी स्वर में कहा, ”देखिए, मुझे बहुत दुख है कि मेरे पास आप जैसी सुंदरियों के लिए अच्छी जगह नहीं है। क्षमा कीजिए। मैं आपकी कुछ सेवा नहीं कर सकता। मेरे यहां तो आपको परेशानी ही होगी।“

”यह आप क्या कह रहे हैं? मैं तो कहीं भी रह सकती हूं। मैं तो एक मामूली लड़की हूं।“ मधुर स्वर में युवती ने कहा।

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आखिर उस युवक ने आदर और लज्जा के साथा उसको अपना छोटा सा कमरा दे दिया और स्वयं एक कोने में सिकुड़कर सेा गया।

अगले दिन प्रातः काल जब युवक गहरी नींद से जागा तो उसने देखा कि लड़की का पलंग खाली है। वह घबराकर उसे देखने के लिए गया तो देखा, वह रसोई में भोजन बना रही है। वह एकदम चिंतित हो गया। उसकी वाणी मूक हो गई और वह जहां का तहां खड़ा रह गया। द्वार पर खड़े उस युवक को देख लड़की ने मुस्कराकर उसका स्वागत कर अपना सिर झुका लिया। उसको मुस्कराते देखकर युवक कांपते स्वर में बोला, ”आप यह क्या कर रही हैं? खाना तो मैं खुद ही बना लेता हूं।“

पर लड़की तो जैसे जवाब सोचकर ही बैठी थी, उसने बड़े मधुर किंतु आज्ञा भरे स्वर में कहा, ”नहीं! आज की ही बात नहीं है, आपको अब कभी भी खाना नहीं बनाना पड़ेगा। आपके लिए और बहुत से काम हैं। आपको वे करने होंगे।“

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यह सुनकर युवक को हैरानी हुआ। उससे कोई जवाब देते न बना। बाद में उसने देखा कि वह लड़की अत्यंत परिश्रमी है। उसे रोटी के लिए जरा भी परिश्रम करने की जरूरत नहीं थी। युवक उससे काम नहीं करवाना चाहता था, परंतु वह स्वयं ही नए नए काम खोज खोजकर रात दिन कुछ न कुछ करती रहती थी।

एक दिन वह युवती कहीं से कपड़ा बुनने की एक मषीन ले आई और घर के बाहर के कच्चे कमरे में उसे रखकर कपड़ा बुनने लगी। उस लड़की के हाथ के बुने हुए कपड़े बहुत सुंदर, पतले और मुलायम होते थे।

धीरे धीरे उसके कपड़ों की सर्वत्र चर्चा होने लगी। यहां तक कि लोगों में यह यकीन फैलने लगा कि यह किसी स्वर्ग की परी के बनाए हुए हैं, क्योंकि और कोई इतने सुंदर कपड़े बना ही नहीं सकता था। कुछ दिनों बाद युवक के कानों में भी यह बात पड़ी और उसने उस लड़की से पूछताछ शुरू की। लड़की को जब पता लगा कि लोग उसके बनाए हुए कपड़ों को देवी कपड़े समझने लगे हैं तो उसे बड़ा हैरानी हुआ और उसने युवक से कहा, ”आपको मेरे इस आग्रह का पालन करना होगा कि जहां मैं कपड़ा बुनती हूं, वहां आप कभी नहीं जा सकते। मुझे आशा है कि आप इस आग्रह के पालन में चूक नहीं करेंगे।“

यद्यपि युवक ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया, लेकिन उसकी जिज्ञासा बढ़ती ही गई। एक दिन बहुत अंधेरी रात थी, युवक चुपचाप उठकर कच्चे मकान की ओर गया और कमरे के अंदर घुस गया। देखता क्या है कि वहां वह युवती तो नहीं है। परंतु एक हंसिनी अपने शरीर के पंखों को उखाड़ उखाड़कर कपड़ा बुन रही है। ऐसे दृष्य को देखते ही युवक के मुंह से जोर की चीख निकल गई।

चीख सुनते ही हंसनी ने अपने शरीर से पंखों का उखाड़ना बंद कर जैसे ही पीछे देखा, युवक हैरानी से उसी की ओर देख रहा था। युवक को देखते ही वह गंभीर हो गई और कुछ रूककर बोली, ”मुझे अपने इस रूप पर बहुत ही लज्जा आ रही है। मैं आजीवन अपनी इस कुरूपता को किसी को भी दिखाना नहीं चाहती थी। परंतु मैं इसमें विफल हो गई। अब मैं आपसे कुछ भी नहीं छिपाऊंगी। मैं वही हंसनी हूं जो एक दिन दलदल में फंसी हुई व्याकुल हो रही थी और आपने दया करके मेरी रक्षा की थी, मुझे जीवन दिया था। आपका यह उपकार मैं कभी नहीं भूल सकी। उसी ऋण को कुछ कम करने के लिए मैं यहा आई थी और दिन रात कपड़ा बुना करती थी। अब तो आपको सब भेद मालूम हो गया है। कृपा करके मुझे विदा कीजिए।“

यह कहते ही वह आकाश में उड़ गई और बादलों से भी आगे चली गई।

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