Asthiyon ko 10 din tak sambhal kar kyon rakha jata hai?
अस्थियों को पूरे दस दिन सुरक्षित रखा जाता है, फिर ग्यारहवें दिन श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। आखिर दस दिन तक अस्थियों का संचय क्यों किया जाता है? हड्डियों में ऐसी कौन सी विशेष बात होती है जो शरीर के सारे अंग और हिस्से छोड़कर उनका ही संचय किया जाता है। वास्तव में अस्थि संचय का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही वैज्ञानिक भी।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा उसी स्थान पर रहती है, जहां उस व्यक्ति की मृत्यु हुई। आत्मा पूरे तेरह दिन अपने घर में ही रहती है। उसी की तृप्ति और मुक्ति के लिए तेरह दिन तक श्राद्ध और भोज आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। अस्थियों को मृत व्यक्ति का प्रतीकात्मक रूप में माना गया है। जो व्यक्ति मरा है, उसके दैहिक प्रमाण के तौर पर अस्थियां का संचय किया जाता है।
अंतिम संस्कार के बाद देह के अंगों में केवल हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं, जो लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियां कहते हैं। इन अस्थियों में ही व्यक्ति की आत्मा का वास भी माना जाता है। जलाने के बाद ही चिता से अस्थियां ली जाती हैं, क्योंकि मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु पैदा होते हैं, जिनसे बीमारियों की आकांक्षा होती है। जलने के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और रोगाणु खत्म हो जाते हैं और बची हुई हड्डियों भी जीवाणु मुक्त होती हैं। इनके छूने या इन्हें घर लाने से किसी प्रकार की हानि का डर नहीं होता है। इस अस्थियों का श्राद्ध कर्म आदि क्रियाओं के बाद किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
अगर आप गंगा किनारे है तो उसी दिन अस्थि विसर्जित कर दे अन्यथा घर के बहर किसी पेड़ पर अस्थि कलश लटका देना चाहिए और दस दिन के भीतर गंगा में विसर्जन करना चाहिए । दस दिन के भीतर अस्थि गंगा में विसार्जन करने पर प्राणी को गंगा घाट पर मरने का फल मिलता है ।