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अक्षय तृतीया का महत्व क्यों?

Akshay tritiya ka kya mahatva hai?

Akshay tritiya ka kya mahatv haiवैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। यह स्वयं सिद्व समय है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान, हवन, पूजन या साधना अक्षय (संपूर्ण) होता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में अक्षय तृतीया तिथि से जुडे और भी कई रोचक तथ्यों का वर्णन मिलता है जो इसकी महत्व को दर्शाते हैं। यह तथ्य इस प्रकार हैं:

इस दिन किए जाने वाले स्नान, हवन, जप सहित सभी काम और दिया हुआ दान अक्षय होता है। यानी इनका क्षय नहीं होता है और ये अनन्त फल देते हैं। इसीलिए यह शुभ तिथि अक्षय तृतीया के नाम से जानी जाती है।

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o इस दिन से ही भगवान बद्रीनाथ के पट खुलते हैं।
o वर्ष में एक बार वृन्दावन के श्री बाँके बिहारी के मंदिर में शरीर विग्रह के चरण दर्शन होते हैं।
o धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान नर – नारायण ने अवतार लिया था।
o भगवान विष्णु के अवतार श्री परशुरामजी का अवतार भी इसी दिन हुआ था।
o भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार भी इसी दिन माना जाता है।
o स्वयंसिद्ध समय होने के कारण सबसे अधिक विवाह भी इसी दिन होते हैं।
o इस दिन शुभ एवं पवित्र कार्य करने से जीवन में सुख-शांति आती है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है।
o अक्षय तृतीया पूजन कैसे करें? व्रत के दिन ब्रहम समय में सोकर उठें। घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र जल से स्नान करें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। निम्न मंत्र से संकल्प करें
o ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल
o प्राप्तये भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिश्ये।
o संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
o शोडशोकपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
o भगवान विष्णु को सुंगधित पुष्प माला पहनाएं।
o नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें।
o अगर हो सके तो विष्णु सहस्त्रनाम का जप करें।
o अंत में तुलसी जल चढ़ा कर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इस दिन उपवास रखें।
o इस दिन मंगल कार्य जो किए जा सकते हैं इस दिन समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदें, नया सामान, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं।

वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। यह हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन। इसीलिए इन्हें वर्ष भर के साढ़े तीन मुहूर्त भी कहा जाता है।

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वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया था। दक्षिण भारत में परशुराम जयन्ती का खास महत्व है। धार्मिक महाकाव्यों में त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन को बताया जाता है। यह भी माना जाता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के रूप में अवतार लिया था। इस दिन भगवान बद्रीनाथ के पट भी खुलते हैं। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन खत्म हुआ था। द्वापर युग का अंत और त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन हुई थी। कहीं कहीं तो ये भी कहते हैं कि अमृतरूपी गंगा भी इसी दिन पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।

इस दिन यदि भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त किया जाय तो घर में धन धान्य एवं सुख समृद्धि की कमी नहीं होती है। इसी दिन भगवान कृष्ण एवं सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था। भगवान कृष्ण चंद्रवशींय हैं। चंद्रमा इस दिन उच्च का होता है। चंद्रमा मन का कारक भी है और सुदामा साक्षात् निस्वार्थ भक्ति का प्रतीक है।

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