नफरत की उमर मौला तू क्यूँ लम्बी बनाता है
किसी एक को मनाऊ तो दूजा रूठ जाता है
ये धरती तो तेरी है मौला अम्बर भी तेरा ही है
मोहब्बत की उमर मौला फिर क्यूँ छोटी बनाता है
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