पाँवों से लहू को धो डालो – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
हम क्या करते किस रह चलते
हर राह में कांटे बिखरे थे
उन रिश्तों के जो छूट गए
उन सदियों के यारानो के
जो इक इक करके टूट गए
जिस राह चले जिस सिम्त गए
यूँ पाँव लहूलुहान हुए
सब देखने वाले कहते थे
ये कैसी रीत रचाई है
ये मेहँदी क्यूँ लगवाई है
वो: कहते थे, क्यूँ कहत-ए-वफा
का नाहक़ चर्चा करते हो
पाँवों से लहू को धो डालो
ये रातें जब अट जाएँगी
सौ रास्ते इन से फूटेंगे
तुम दिल को संभालो जिसमें अभी
सौ तरह के नश्तर टूटेंगे
चलो फिर से मुस्कुराएं- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं
जो गुज़र गई हैं रातें
उनहें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गई हैं बातें
उनहें याद में बुलाएं
चलो फिर से दिल लगाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं
किसी शह-नशीं पे झलकी
वो धनक किसी कबा की
किसी रग में कसमसाई
वो कसक किसी अदा की
कोई हरफ़े-बे-मुरव्वत
किसी कुंजे-लब से फूटा
वो छनक के शीशा-ए-दिल
तहे-बाम फिर से टूटा
ये मिलन की, नामिलन की
ये लगन की और जलन की
जो सही हैं वारदातें
जो गुज़र गई हैं रातें
जो बिसर गई हैं बातें
कोई इनकी धुन बनाएं
कोई इनका गीत गाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं