Arti puri hone ke bad arti kyon lete hain?
पूजा के बाद हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान और बाद में अनेक परंपराएं निभाई जाती हैं। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3 बार पुष्प अर्पित करते हैं। ढोल, नगाड़े, घड़ियाल आदि भी बजाते हैं व अंत में आरती लेते हैं।
दरअसल, आरती उतारने के बाद दोनों हथेलियां को दीप की ज्योति पर कुछ क्षण रखकर उनका स्पर्श अपने मस्तक, कान, नाक, आंखे, मुख, छाती, पेट, पेट का निचला भाग, घुटने व पैरों पर करें। इसे आरती ग्रहण करना चाहते हैं। मान्यता है कि आरती के बाद दीप से निकलने वाली तरंगे जो कि गोलाकार पद्धति से गतिमान होती हैं, आरती लेने वाले जीव के चारों ओर इन तरंगों का कवच निर्माण होता है। इस कवच को तरंग कवच कहते हैं। किसी भी व्यक्ति का आरती लेते समय आरती के प्रति भाव जितना अधिक होगा, उतना ही यह कवच अधिक समय तक बना रहेगा। इससे विचारों की सत्विकता में भी वृद्धि होती है और वह ब्रहमण्ड की ईश्वरीय तरंगों की अधिक मात्रा में ग्रहण कर सकता है। इससे मन से नकारात्मक विचार तो मिटते ही हैं, साथ ही बहुत पुण्य मिलता है।