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कट्टी बट्टी का फ्लॉप शो (फिल्म समीक्षा)

कट्टी बट्टी का बहुत इंतज़ार था. इधर कंगना रानौत ने फैशन, क्वीन, तनु वेड्स मनु, फिर तनु मनु पार्ट दो से उम्मीदें इतनी बढ़ा दीं कि कंगना के नाम पर किसी भी फिल्म की एडवांस बुकिंग कराई जा सके. इस बार यह रिस्क इमरान खान के बावजूद लिया. जिनके हिस्से में न तो कोई उम्दा फिल्म है न ही अच्छी एक्टिंग. और न ही कोई अच्छा फिल्म चयन. कट्टी बट्टी की नाव पर सवारी करने चल पड़े कि चलो पतवार तो कंगना के हाथ में है.

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कंगना के अभिनय ने तो निराश नहीं किया. पर फिल्म की कहानी ही ऐसे ऐसे ट्वीस्ट खाए कि दर्शक को चक्कर आ जाए तो कँगना का अभिनय भी क्या करे.

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फिल्म में एक ऎसी लड़की पायल की कहानी है जो बहुत बिंदास सोच की है. कालेज लाइफ में एक लड़का मैंडी उर्फ़ माधव (इमरान खान) उस पर मर मिटता है. पायल उसे प्रेम नहीं करती पर मैंडी के बहुत पीछे पड़ने पर वह प्यार तो नहीं पर टाइम पास के लिए तैयार हो जाती है.
लेकिन बला की खूबसूरत इस डॉल पर मैंडी दिलोजान से फ़िदा है. वह सोचता है पायल भले उसे टाइम पास कह रही है पर वास्तव में वह उसे प्यार करती है. और उसे कभी छोड़ कर नहीं जायेगी.

दोनों लिव इन में रहने लगते हैं. पाँच साल साथ रहने के बाद अचानक एक दिन पायल बिना बताये उसे छोड़ के चली जाती है. मैंडी उसकी खोज में हर संभव जगह भटकता है. एक दिन पायल उसे मिलती है. वह किसी और से शादी करने जा रही है.

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इसके आगे कहानी तो बहुत है और खूब पेंच भी हैं, पर कहानी का रस जैसे निकाल दिया है. इसलिए इसके आगे कहानी पता करनी हो तो कट्टी बट्टी पर दो सौ रूपये खर्च कीजिए  🙂

तब पता लगेगा कि जो पिक्चर इंटरवल तक देखी वह तो सिर्फ मैंडी यानी इमरान खान के नजरिये थी, फिर दूसरा हिस्सा लगेगा कि यह पायल का पक्ष है… इसके बाद तीसरा हिस्सा है जो सबसे ज्यादा पकाऊ है वह निर्देशक का पक्ष है. जिसमें अजीब ही बात पता लगती है. पुरानी फिल्मों की तरह कि हीरोइन को जानलेवा बीमारी है इसलिए वह हीरो से लड़ने और अलग होने का नाटक कर रही थी. इसके बाद पुरानी फिल्मो की तरह ही हीरो परिस्थितियों से जूझता हुआ हीरोइन को हासिल करता है और कहानी का ढर्रात्मक अंत होता है.

कहानी से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं भी मिलती हैं मसलन–
–लड़की कैसी भी आधुनिक मूल्यों की हो और लड़का कितने भी पारंपरिक मूल्यों का हो, अगर लड़की को कायदे से घेर-घार के पीछे पड़ा रहे तो लड़की पट ही जाती है.
–लड़की प्यार में कितना भी न -नुकुर करे, उसको बोदर ही मत करो जी, उसकी हर न -न को हाँ हाँ ही सुनो.

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इसका नाम कट्टी बट्टी नहीं , चट्टी पट्टी भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ना था. फिल्म में गाने और संगीत ठीक ठीक ही हैं, बस किसी तरह गुजर जाते हैं. दृश्यों की भरमार है. फिल्म का ट्रैक ही निर्देशक तय नहीं कर पाया है कि कामेडी बनानी है, या ड्रामा, या कॉमिक या ट्रेजेडी. नतीजा यह कि पिक्चर में सब कुछ ठूँस दिया है.

फिल्म की शुरुआत कुछ उम्मीदों भरी थी. मुझे लगा कि जैसे अब तक कुछ लड़के प्यार को टाइम पास की तरह करते रहे हैं शायद फिल्म लड़की के बहाने इस कहानी को उलट कर दिखायेगी. पर फिल्म का अंत फुल पारम्परिक है. निर्देशक निखिल अडवाणी को लगा होगा कि डी डी एल जे एक ही बार बनी पर देवदास बार बार बनी क्योंकि ट्रेजेडिक लव खूब बिकता है. यह उनकी फिल्म में डायलॉग भी है.

बहरहाल, इसके बाद भी अगर फिल्म देखी जा सकती है तो वह कँगना की दिलकश अदाओं के लिए, उनकी अदाकारी के लिए. हालांकि कँगना बेहद दुबली लगी हैं. कई बार तो कुपोषित भी. या हो सकता है कि बीमारी के कारण ऐसा दिखाया हो. इमरान उनके आगे बच्चे ही लगे हैं.

फिल्म में मैडी के पिता का रोल सुनील सिन्हा ने किया है. एक केयरिंग पिता के रूप में वे बहुत मधुर लगे हैं. उनका आना बहुत स्वाभाविक और ताजगी से भरा है.

जो लोग सलमान टाइप फिल्मे नापसन्द करते हैं वे उससे बचने के लिए इसे देख सकते हैं. क्योंकि उससे तो यह फिल्म ठीक ही है. लेकिन कँगना मैडम …. फिल्म चयन में थोडा सावधान रहिये . हम दर्शक आपको बहुत प्यार करते हैं.

(कट्टी बट्टी का फ्लॉप शो – संध्या नवोदिता)

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संध्या जी हिन्दी की ख्याति प्राप्त कवियित्री एवं लेखिका हैं और समसामयिक विषयों पर अपनी राय बेबाकी से व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं।  उनके फेसबुक पेज के लिए यहाँ से जाएँ – https://www.facebook.com/sandhya.navodita

संध्या नवोदिता

 

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3 thoughts on “कट्टी बट्टी का फ्लॉप शो (फिल्म समीक्षा)

  1. Kangna ki acting kafi achhi lagi par story boring hai. interval se pehle movie achhi hai.

  2. Jabardast review. Maine apne paise barbad kar diye is boring si film par. Kash phle padha hota aapka lekh.

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