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क्या जेएनयू मामले से जुडी है मुरथल रेप की रिपोर्ट? है मीडिया की सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा?

दिल्ली: मुरथल के पास जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए कथित रेप काण्ड की गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझती जा रही है . हर बीतते दिन के साथ नए एंगल निकल कर सामने आ रहे हैं . अगर नहीं सामने आ रहे हैं तो वो विक्टिम जिनके साथ बदसलूकी हुई या फिर पक्के चश्मदीद गवाह. अब एक नई थ्योरी सामने आ रही है जो इस रेप केस को मीडिया, खासकर एबीपी न्यूज़ द्वारा उछले जाने के पीछे कुछ और ही मकसद बता रही है. वो है जेएनयू देशद्रोह काण्ड के समय वकीलों द्वारा एबीपी न्यूज़ की महिला पत्रकार से मिसबिहेव और उस पर मीडिया हाउस की सरकार द्वारा कार्यवाही न किये जाने को लेकर नाराजगी. यह मीडिया हाउस जेएनयू केस में सामान्य जनता की सहानुभूति प्रदर्शन कर रहे वकीलों के प्रति होने के कारण खुल कर तो कुछ नहीं कर पाया लेकिन अपनी महिला पत्रकार से वकीलों द्वारा की गई बदसलूकी और उनसे जबरदस्ती “भारत माता की जय और वन्दे मातरम” बुलवाने की घटना को पचा नहीं पा रहा है.

murthal rape jat agitationदेश को हिला देने का दम्भ भरने वाले बड़े मीडिया हाउस इस बात को लेकर असहज महसूस कर रहे थे और भाजपा सरकार को किसी तरह घेरने की कोशिश में थे. तभी से एबीपी न्यूज़ द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग का रुख कन्हैया कुमार और अन्य छात्रों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण हो गया था.

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इस बीच मुरथल में कथित रेप केस को लेकर वहां बिखरे कपड़ों की आड़ में एबीपी न्यूज़ को एक जोरदार मुद्दा मिल गया जिसे टीआरपी के चलते सभी मीडिया चैनलों ने भी आगे पीछे हथिया लिया. हालांकि कुछ मीडिया चैनल इस मुद्दे पर समझदारी से रिपोर्टिंग कर रहे हैं वहीँ कुछ चैनल “सनसनी” पैदा करने का कोई मौका नहीं चूक रहे.

ताजा मामला है एक “चश्मदीद गवाह” निरंजन सिंह के बयान का, जिसे मीडिया द्वारा ऐसे दिखाया जा रहा है जैसे मामले साबित ही हो गया हो, जबकि खुद निरंजन सिंह का कहना है कि उसका ट्रक मुरथल से करीब 4 किलोमीटर दूर जलाया गया था. 200 मीटर दूर स्थित अमरीक-सुखदेव ढाबा और अन्य ढाबा मालिकों और स्टाफ द्वारा जो घटना नहीं देखी गई, उनपर लगे दसियों सीसीटीवी में रिकॉर्ड नहीं हो पाई, आज लगभग 10 दिन बीतने पर भी जिसकी किसी पीड़ित  ने सामने या अपरोक्ष रूप से रिपोर्ट नहीं की, कोर्ट के आर्डर के बाद भी कोई पीड़ित सामने नहीं आई – उसे इस ट्रक ड्राइवर द्वारा 4 किलोमीटर की दूरी  से देख लिया जाना अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है!

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इस दौरान सबसे चौंकाने वाली बात यह है आर्मी, जो उस समय तक एरिया में डेप्लोय हो चुकी थी, द्वारा इस तरह की किसी भी घटना से स्पष्ट इंकार किये जाने के बाद भी इसका संज्ञान नहीं लिया जा रहा है. प्रशासन पक्षपात कर सकता है, पुलिस पक्षपात कर सकती है, नेता पक्षपात कर सकते हैं लेकिन आर्मी के बयां पर शक करने की कोई वजह दिखाई नहीं पड़ती. खास कर तब जबकि कथित घटना के समय पुलिस नहीं, आर्मी स्थिति के ज्यादा कंट्रोल में थी.

एक नया तथ्य भी सामने आया है जिसमें कहा गया है कि घटना स्थल पर बरामद कपडे एक गारमेंट शॉप से लुटे गए थे जो कि लूटपाट के बाद वहां से भागते समय गिर गए थे.

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कुछ लोगों का कहना है कि ये कपडे उस स्थान पर कुछ समय पहले ठहरे हुए गड़िया-लुहार जाती के लोगों के थे

कुछ लोगों का कहना है कि ये कपडे अपनी कर से अपना सामान लेकर भागते समय महिलाओं के बैग से गिर गए थे.

साथ ही बरामद 3-4 कपडे कथित तौर से 10 या 30 महिलाओं की संख्या से कम हैं. यानी रेप हुआ कि नहीं हुआ? हुआ तो क्या 10 महिलाओ के साथ हुआ जैसा कि मीडिया द्वारा अभी तक बताया जा रहा है. दरअसल 10 महिलाओं की संख्या इतने विश्वास के साथ मीडिया द्वारा रिपोर्ट की जा रही है जैसे कि मीडिया के पास पक्के सबूत हों. लेकिन वो सबूत सामने नहीं आ रहे हैं जिससे मामले में अफवाह का दौर ज्यादा और सच्चाई कम होती जा रही है.

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ध्यान रहे कि केंद्र और हरयाणा दोनों में भाजपा की सरकार है और इस तरह से हरयाणा में कथित रेप की खबर चला कर मीडिया चैनलों और कुछ अखबारों द्वारा सरकार को असहज करने का प्रयास किया जा रहा है. मीडिया खबर चला कर आराम से बैठा है और सरकार की मुश्किल ये है 4 इनरवेयर की तस्वीर मीडिया में चलने के बाद हरयाणा सरकार को सूझ नहीं रहा कि कैसे साबित करे कि रेप नहीं हुआ. रही बात पुलिस के यह कहने की कि कोई रेप नहीं हुआ, कोई शिकायत नहीं आई और किसी ने रिपोर्ट नहीं लिखवाई, उस पर अब कोई यकीन नहीं कर रहा क्यूंकि कुछ तो इस आंदोलन में पुलिस की विफलता और कुछ मीडिया में पहले ही ये रिपोर्ट चला कर कि पुलिस ने पीड़ितों को धमका कर भेज दिया, पुलिस का बयान किसी के गले उतरने वाला नहीं है. हरयाणा सरकार की हालत ऐसी है कि सूझ नहीं रहा कि इस समस्या से कैसे जान छुड़ाए. वहीँ यूपी  में जाटों के वोटों पर नजर गड़ाए बैठी भाजपा को मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मिली जाट बिरादरी के समर्थन की चिंता सत्ता रही है.

ये बात और है कि टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा बड़ी जिम्मेदारी से इस मामले की रिपोर्टिंग की गई है और मामले के साबित न होजाने तक किसी भी तरह के फ़ाइनल जजमेंट को अवॉयड कर तथ्यों के आधार पर रेस्पोंसिबल रिपोर्टिंग की जा रही है. उदाहरण के लिए hindustantimes.com में छपी इस रिपोर्ट पर नजर डालिये:

hindustan times murthal rape case report
source http://www.hindustantimes.com

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हिन्दीवार्ता का यह कहना नहीं है कि रेप हुआ या नहीं. अगर हुआ है तो अपराधियों को कानून के तहत कड़ी से कड़ी सजी दी जानी चाहिए और नहीं हुआ है तो जाट आरक्षण आंदोलन की आलोचना या समर्थन आरक्षण के मुद्दे तक रहना चाहिए या इस दौरान हुई हिंसा तक रहना चाहिए. रेप केस का एंगल सिर्फ सनसनी फ़ैलाने के लिए इस आंदोलन के साथ जोड़ा जाना उचित नहीं है और स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है.

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