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जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा Nibandh, Jaisa karm karoge vaisa fal milega Essay in Hindi

जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा Essay in Hindi

कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन 

हम जैसे कर्म करते है, हमें उसका वैसा ही फल मिलता है। हमारे द्वारा किये गए कर्म ही हमारे पाप और पुण्य तय करते है। हम अच्छे कर्म करते है तो हमें उसके अच्छे फल मिलते है और अगर हम बुरे कर्म करते है तो हमें उसके बुरे फल मिलते है। हमारे जीवन में जो भी परेशानियां आती हैं, उनका संबंध कहीं ना कहीं हमारे कर्मों से होता है।

कबीरदास जी का ये दोहा हमें हमेशा ये एहसास दिलाता है कि बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है।

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करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय॥

जिस प्रकार चन्दन जैसा जड़ भूरुह अपनी शीतलता के स्वभाव को नहीं त्यागता। उसी प्रकार हमें भी अपनी कल्याणकारी महान् प्रवृत्ति का त्याग नहीं करना चाहिए और हमारे प्रति भले ही कोई व्यक्ति दुर्व्यवहार करे; किन्तु हमें उसके साथ भी सद्व्यवहार ही करना चाहिये, यही इस सूक्ति की सीख है। फलतः जो व्यक्ति दूसरों के प्रति दुर्व्यवहार करता है उसके हृदय में उसका दुर्व्यवहार ही शूल बनकर उसे पीड़ा पहुँचाता है। इसके विपरीत सद्व्यवहार करने वाले के हृदय में उसका ही सव्यवहार उसे सुख, आनन्द एवं पुष्प की शाश्वत सुगन्ध प्रदान करके उसके जीवन में यश एवं कीर्ति रूपी सुगन्ध को प्रत्येक दिशा में द्विगुणित कर देता है।

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‘नम्रता के सम्मुख देवता भी झुक जाते हैं। अतः यदि हमको मानवोचित गुणों को अपनाना है और देवताओं के हृदयों पर भी विजय प्राप्त करनी है, तो इस काव्योक्ति का अर्थ भलीभाँति समझ कर इसे अपने व्यवहार का प्रमुख अंग बनाना चाहिये। दुष्ट व्यक्ति के दुर्व्यवहारों को भी क्षमा कर देना चाहिए; क्योंकि प्रेम वह चुम्बक है जो कुधातु लोहे को भी अपनी ओर बरबस खींच लेता है। पाप से डरो, पापी से नही’ सिद्धान्त के अनुसार हमें अपने प्रति कपट एवं चातुर्य दिखलाने वाले व्यक्ति के प्रति भी निश्छलता का व्यवहार करना चाहिए। इससे हमें स्वतः ही अनेक लाभ हैं।


सर्वप्रथम तो दूसरों को क्षमादान देने वाला व्यक्ति स्वयमेव महान् बन जाता है। ऐसे पुरुष स्वाभाविक रूप से परोपकारी एवं उद्दण्डता रहित होते है। नम्रता दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति के हृदय में दया, क्षमा, उदारता, एवं धैर्य की भावना भरकर उसके अभिमान को नष्ट करती है। ऐसे व्यक्ति को अपने बल, धन या विद्यादि किसी का भी अभिमान नहीं होता। जो व्यक्ति अपकारी के प्रति भी उपकार वृत्ति रखते हैं, ऐसे लोगों का समाज में कोई शत्रु नहीं होता है। अतः उनकी आत्मा निःशंक होकर के सर्वदा प्रफुल्लित रहती है और उनकी आत्मा के अन्दर का तेज़ प्रस्फुटित होता हुआ निरन्तर वृद्धि पाता है।

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इस सिद्धान्त को मानने वाले व्यक्ति प्रत्येक कार्य को बड़ा ही सोच समझकर करते हैं। वे किसी भी कार्य को बिना विचार नहीं करते हैं। ऐसे मनुष्य अपने जीवन में लाभ ही लाभ प्राप्त करते हैं और संसार में यश एवं कीर्ति के भागी बनते हैं। दूसरों को सर्वदा हर्ष प्रदान करने वाले मनुष्य स्वयमेव प्रसन्न व मस्त रहते हैं तथा आत्म-संतोष का अनुभव करते हैं। मधुर व्यवहार करने वालों का संसार में सभी आदर करते हैं। ऐसे मधुर भाषी व्यक्ति संसार में स्वयं प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। समाज उन पर गर्व करता है और वे समाज आदर्श के उदाहरण बनते हैं।


इस श्रेष्ठ सिद्धान्त को न केवल चैतन्य; अपितु जड़ प्राणी भी मानते हैं और अपनी प्रवृत्ति के कारण अपने खाद्य पदार्थों का स्वयमेव उपभोग न कर समाज को प्रदान कर व आते हैं। इतना ही नहीं हम अपने पृथ्वी माँ के वक्षस्थल को चीरते हैं. दायक मीठा जल प्रदान करती है और हम इधर से वृक्षों पर पत्थर मारते उधर से फल देते हैं, उनका शरीर ही परमार्थ के लिए बना है।

आज के इस भौतिक युग में जीवन इतना कटुता, द्वेष एवं प्रतिस्पर्धा की भावना छादित है कि मानव, मानव कहलाने का अधिकारी नहीं रह गया है। आजकल काधिक जन चोरी, मक्कारी, झूठ, बेईमानी आदि दुष्ट प्रवृत्तियों से युक्त हैं। आज समाज में वही श्रेष्ठ माना जाता है जो जितना अधिक दूसरों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करता है। आज अधिकतर लोगों के हृदयों में यह बात घर कर गयी है कि आज के युग में गांधीवादी भूखों मरते नज़र आ रहे हैं। किसी हद तक देखा जाय तो आज की इस राशनिंग व्यवस्था में सत्य बोलने वालों को चीनी, शक्कर, घी कोई भी खाद्य वस्तु भरपेट नहीं मिल पाती और ऐसे भोले सीधे मानव समाज के लिए स्वयमेव खाद्य बन जाते हैं। फिर भी हमें लाभ तो प्राचीन नीति को अपनाने में है। किसी को काटो न; परन्तु फुकार अवश्य रक्खो जिससे समाज में सुरक्षित रह सको।

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इस सिद्धान्त को मानने से नम्रता द्वारा गर्व का समापन होता है और बुद्धि सात्विक होती है। जहाँ बद्धि सात्विक होगी वहाँ आत्मशक्ति का अंकर अवश्य पल्लवित होगा और उसमें एक दिन का पुष्प अवश्य खिलेगा।

कभी कभी हम जान बूझकर गलत काम करते हैं तो कभी अनजाने में गलत काम कर जाते हैं। जिसके कारण हमें आगे चलकर परेशानी उठानी पड़ती हैं। और जब हम पर कोई परेशानी आती हैं तब हम पछताते हैं कि काश हमने ऐसा काम ना किया होता तो शायद आज हम इस मुश्किल में ना पड़ते।

पुराने समय में एक राजा था। वह अक्सर अपने दरबारियों और मंत्रियों की परीक्षा लेता रहता था। एक दिन राजा ने अपने तीन मंत्रियों को दरबार में बुलाया और तीनो को आदेश दिया कि एक एक थैला लेकर बगीचे में जायें और वहाँ से अच्छे अच्छे फल तोड़ कर लायें। तीनो मंत्री एक एक थैला लेकर अलग अलग बाग़ में गए। बाग़ में जाकर एक मंत्री ने सोचा कि राजा के लिए अच्छे अच्छे फल तोड़ कर ले जाता हूँ ताकि राजा को पसंद आये। उसने चुन चुन कर अच्छे अच्छे फलों को अपने थैले में भर लिया। दूसरे मंत्री ने सोचा “कि राजा को कौनसा फल खाने है?” वो तो फलों को देखेगा भी नहीं। ऐसा सोचकर उसने अच्छे बुरे जो भी फल थे, जल्दी जल्दी इकठ्ठा करके अपना थैला भर लिया। तीसरे मंत्री ने सोचा कि समय क्यों बर्बाद किया जाये, राजा तो मेरा भरा हुआ थैला ही देखेगे। ऐसा सोचकर उसने घास फूस से अपने थैले को भर लिया। अपना अपना थैला लेकर तीनो मंत्री राजा के पास लौटे। राजा ने बिना देखे ही अपने सैनिकों को उन तीनो मंत्रियों को एक महीने के लिए जेल में बंद करने का आदेश दे दिया और कहा कि इन्हे खाने के लिए कुछ नहीं दिया जाये। ये अपने फल खाकर ही अपना गुजारा करेंगे।

अब जेल में तीनो मंत्रियों के पास अपने अपने थैलो के अलावा और कुछ नहीं था। जिस मंत्री ने अच्छे अच्छे फल चुने थे, वो बड़े आराम से फल खाता रहा और उसने बड़ी आसानी से एक महीना फलों के सहारे गुजार दिया। जिस मंत्री ने अच्छे बुरे गले सड़े फल चुने थे वो कुछ दिन तो आराम से अच्छे फल खाता रहा रहा लेकिन उसके बाद सड़े गले फल खाने की वजह से वो बीमार हो गया। उसे बहुत परेशानी उठानी पड़ी और बड़ी मुश्किल से उसका एक महीना गुजरा। लेकिन जिस मंत्री ने घास फूस से अपना थैला भरा था वो कुछ दिनों में ही भूख से मर गया।

दोस्तों ये तो एक कहानी है। लेकिन इस कहानी से हमें बहुत अच्छी सीख मिलती है कि हम जैसा करते हैं, हमें उसका वैसा ही फल मिलता है। ये भी सच है कि हमें अपने कर्मों का फल ज़रूर मिलता है। इस जन्म में नहीं, तो अगले जन्म में हमें अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।

कर्मणेव अधिकरषते
मा फलेषु कदाचन
करम किये जा फल की
इच्छा मत कर ऐ इंसान
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
करम किये जा फल की
इच्छा मत कर ऐ इंसान
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान

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रूप चाँद है रेसम वाला
कपडे का व्यापारी
बीस बरस तक साथ में रहकर
भाग गयी इसकी नारि
और अगर वो साथ में
रह्ती मर जाती बेचारी
पति देव के मन भाई
थी बाला एक कुवारी
पति बना पत्नी का
दुसमन संकट में थी जान
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान

मृगनयनी सी चंचल
बाल मन में लिए उदासी
दुःख के अंदर दब इहइ
है सुख की है अभिलाषी
किसी के घर की राजकुमारी
बानी किसी की दासी
मज़बूरी के आँख में
ासु पलके फिर भी प्यासी
पल पल ढोये अरमानो
के गंगा जल से कौन
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान

कौन सी दुविधा आपके
चरणो में इनको ले आयी
किस चिन्ता में मग्न है
दोनों क्यों आन्हके पथरायी
ये मरे हुए है या जीवित
बस मरने ही वाले है देवी
इन दोनों दोस्तों ने मिलकर
कैसी चाल चली
एक कंस मामा बन बैठा
एक दुर्योधन भाई
कृष्ण कंस का तोड़ेगा
फिर कलयुग में अभिमान
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान

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पंहुचा हुआ है साधु क्या
क्या चमत्कार दिखलाए
भोली जनता बोले ईश्वर
रूप बदल के आये
वेद शास्त्रों की भासा कल
ये ढोंगी क्या जाने
ये पूजा करवाएं अपनी
प्रभु को क्या पहचाने
ये साधु के भेष में
डाकू रोज़ पाखण्ड रचाये
ऋषियों को बदनाम
करे सन्तो पे डाब लगाये
दिन में डाके डाले पापी
रात में काटल कराये
सच बोले सन्यासी
कभी न हो इसका कल्याण
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
करम किये जा फल की
इच्छा मत कर ऐ इंसान
जैसे करम करेगा
वैसे फल देगा भगवान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान
यह है गीता का ज्ञान.

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