गुनाह होता है इतना सा हर बार मेरा।
के दिल पे रहता नहीं है इख्तियार मेरा।
जालसाजी है आती न ही क़ातिल किसी का
क्यों छापेंगे फोटो फिर अखबार मेरा।
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हुनर कोई पाया न शक़्लोसूरत ही ऐसी
के करता कहीं पे कोई इंतजार मेरा।
मैंने कहने पे तेरे कब कोशिश नहीं की
पर नहीं देता इजाजत है किरदार मेरा।
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