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मेरी दो ग़ज़लें

नदिया मुहब्बतों की उमड़ती है मेरी माँ

इमरान ख़ान

नदिया मुहब्बतों की उमड़ती है मेरी माँ,
लेकर मुझे जहान में आई है मेरी माँ।

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दुनिया के वास्ते भले शोला हूँ आग हूँ,
माँ के लिए पर आज भी नन्हा चराग हूँ।

मुझको हथेलियों में छुपाती है मेरी माँ,
लेकर मुझे जहान में आई है मेरी माँ।

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बस अब के बाद न होगा कोई कलाम मेरा

बस अब के बाद न होगा कोई कलाम मेरा,
ऐ मेरे दोस्तों यारों तुम्हें सलाम मेरा।

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वो नूर मेरी निगाहों का खो गया कब का,
नहीं रहा वो मेरा गैर हो गया कब का।

यकीन जिस पे मुझे खुद से भी ज़ियादा था,
उसी के साथ जियूं और मरूं इरादा था।

मगर इरादा बिखर ही गया तमाम मेरा,
बस अब के बाद न होगा कोई कलाम मेरा।

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~ इमरान ख़ान

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