Chanakya Neeti – Bhai-Bandhu par Chanakya ke anmol vichar
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः। मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता॥
पुत्रहीन के लिए घर सुना हो जाता है, जिसके भाई न हों उसके लिए दिशाएं सूनी हो जाती हैं, मूर्ख का हृदय सूना होता है, किन्तु निर्धन के लिए सब कुछ सूना हो जाता है ।
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥
किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है । दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है ।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
जिस देश में सम्मान न हो, जहाँ कोई आजीविका न मिले , जहाँ अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहाँ विद्या-अध्ययन सम्भव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए ।
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे। राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥
बीमार होने पर, असमय शत्रु से घिर जाने पर, राजकार्य में सहायक रूप में तथा मृत्यु पर श्मशान भूमि में ले जाने वाला व्यक्ति सच्चा मित्र और बन्धु है ।
यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः। यस्यार्थाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः॥
जिस व्यक्ति के पास पैसा है लोग स्वतः ही उसके मित्र बन जाते हैं । बन्धु- बान्धव भी उसे आ घेरते हैं । जो धनवान है उसी को आज के युग में विद्वान् और सम्मानित व्यक्ति माना जाता है
प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागश्च बन्धुषु। स्वयमाक्रम्य भोक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्॥
समय पर जागना, लड़ना, भाईयों को भगा देना और उनका हिस्सा स्वंय झपटकर खा जाना, ये चार बातें मुर्गे से सीखें ।
माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः। बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥
जिस मनुष्य की माँ लक्ष्मी के समान है, पिता विष्णु के समान है और भाई-बन्धु विष्णु के भक्त है, उसके लिए अपना घर ही तीनों लोकों के समान है ।
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा। शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः॥
सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, भाई धर्म है, दया मित्र है, शान्ति पत्नी है तथा क्षमा पुत्र है, ये छः ही मेरे सगे- सम्बन्धी हैं ।
स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिताः। ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः॥
देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से, भाई- बन्धु स्नान- पान से तथा विद्वान वाणी से प्रसन्न होते हैं ।