ग़ज़ल
हमारी हर समय रहने लगी है जान खतरे में
कभी दीवाली खतरे में कभी रमज़ान खतरे में
किसी के ऐतराज़ों में उलझकर रह गयी श्रद्धा
कहीं पर हव्य खतरे में कहीं लोबान खतरे में
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ज़रा सी बात पर पड़ते दिखाई देने लगते हैं
मेरे अल्लाह खतरे में तेरे भगवान खतरे में
नहीं महफूज़ दिखती है यहां इंसान की हस्ती
यहां है शान खतरे में वहां सम्मान खतरे में
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घिरे रहते हमेशा ही यहां पर खौफ के बादल
सियासत की वज़ह से आ गया इंसान खतरे में
सुगम अब फूलने ,फलने के पहले सूख जाते हैं
दुआएं सख्त खतरे में सभी वरदान खतरे में
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(महेश कटारे सुगम )
महेश कटारे सुगम हिंदी और बुंदेली कविता का एक मशहूर नाम हैं। उनके फेसबुक पेज के लिए यहाँ से जाएँ https://www.facebook.com/maheshkatare.sugam
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