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गुजरात हाईकोर्ट ने नरोदा पाटिया दंगा मामले में फैसला सुरक्षित रखा

भाजपा प्रमुख अमित शाह को भी गवाह का समन जारी करने की मांग

अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 के नरोदा पाटिया दंगा मामले में विशेष एसआईटी अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा जिसमें नरेन्द्र मोदी सरकार की एक पूर्व मंत्री को 28 वर्ष जेल की सजा मिली हुई है. इस दंगे में 97 लोग मारे गए थे. न्यायमूर्ति हर्ष देवानी और न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा. इसने विशेष जांच दल की तरफ से दायर जनहित याचिका पर भी सुनवाई की जिसने 30 अगस्त 2012 को एसआईटी अदालत द्वारा मामले में 29 आरोपियों को बरी किए जाने को चुनौती दी थी.

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भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री माया कोडनानी को मामले में 28 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई थी जबकि बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.कोडनानी के वकील हार्दिक दवे ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उनके इस आवेदन पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें भाजपा प्रमुख अमित शाह और सात अन्य को अतिरिक्त गवाह के तौर पर समन करने की मांग की गई है.

क्या हुआ था 28 फरवरी 2002 की रात
2007 में तहलका के एक स्टिंग ऑपरेशन में बाबू बजरंगी ने कबूल किया कि 28 फरवरी 2002 की रात नरोदा पाटिया में जो नरसंहार हुआ, वह उनके नेतृत्व में ही किया गया था. इस स्टिंग ऑपरेशन में बाबू बजरंगी ने 97 लोगों को जलाकर मार डालने वाली घटना की सिलसिलेवार जानकारी दी थी. इस स्टिंग के अनुसार सबसे पहले बजरंग दल के कार्यकर्ता बाबू बजरंगी ने 30-32 लोगों को बंदूक व घातक सामानों से लैस किया और उन्हें लेकर नरोदा पाटिया पहुंचे. वहां उन्होंने ऑपरेशन पाटिया शुरू किया और मस्जिद के पीछे एक बड़े गड्ढ़े में जान बचाने के लिए छिपे लोगों पर तेल छिड़ककर आग लगा दी. इतना ही नहीं इसके बाद वे आगे बढ़े और लोगों को दौड़ा-दौड़ाकर मारा और उन्हें एक कुएं में फेंक दिया. फिर उनपर तेल-पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी।

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